भृंगराज से त्रिफला तक, भारतीय आयुर्वेद ने रूस में बनाई मजबूत जगह
By: Team Aapkisaheli | Posted: 06 Dec, 2025
नई दिल्ली । भारत और रूस की मित्रता काफी पुरानी है। एक-दूसरे की
संस्कृति को सम्मान देने के साथ ही हर क्षेत्र में दोनों देश रूचि लेते
हैं। बात आयुर्वेद की हो तो मित्र राष्ट्र इसमें भी पीछे नहीं। भृंगराज,
त्रिफला से लेकर अन्य औषधियों समेत भारतीय आयुर्वेद ने रूस में खास जगह
बनाई है।
आयुर्वेद भारत की सदियों पुरानी पद्धति है। वात-पित्त-कफ के
संतुलन, पंचकर्म, रसायन चिकित्सा और दिनचर्या पर आधारित यह विश्व की सबसे
प्राचीन चिकित्सा प्रणाली है। आयुर्वेद को विश्व स्वास्थ्य संगठन की भी
मान्यता प्राप्त है। आयुर्वेद भारत में मॉडर्न मेडिसिन के समानांतर नेशनल
हेल्थ सिस्टम का अभिन्न अंग बन चुका है। रूस में भी आयुर्वेद का तेजी से
प्रभाव बढ़ता जा रहा है।
रूस, भारत के बीच लंबे समय से साझेदारी रही है,
जो समय की कसौटी पर खरा भी उतरी है। इसी कड़ी में सदियों पुरानी भारतीय
चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद को रूस में 1989 से ही आधिकारिक मान्यता और
लोकप्रियता मिल रही है। यह सफर उस समय शुरू हुआ जब दुनिया के सबसे भयानक
परमाणु दुर्घटनाओं में से एक चेर्नोबिल परमाणु दुर्घटना घटित हुई। इसके बाद
सोवियत डॉक्टरों ने विकिरण से प्रभावित बच्चों और मरीजों के इलाज के लिए
आयुर्वेद की ओर रुख किया।
अमेरिका की रिसर्च बेस्ड नेशनल लाइब्रेरी ऑफ
मेडिसीन साइंस की ऑफिशियल वेबसाइट पर रूस में बढ़ती आयुर्वेद की लोकप्रियता
को लेकर विस्तार से जानकारी मिलती है।
भारत सरकार के सहयोग से 1989 में
बेलारूस के मिन्स्क में पहला आयुर्वेदिक केंद्र खोला गया। भारतीय
चिकित्सकों ने रूसी डॉक्टरों के साथ मिलकर विकिरण बीमारी के लक्षणों जैसे
सिरदर्द, अनिद्रा, जोड़ों का दर्द, कमजोर इम्यूनिटी आदि पर सफलतापूर्वक काम
किया। इसके बाद 1996-98 के बीच मास्को में 85 चेरनोबिल पीड़ितों पर किए गए
आयुर्वेदिक उपचार में अधिकांश मरीजों को पूर्ण या आंशिक राहत मिली और उनकी
रोग प्रतिरोधक क्षमता में उल्लेखनीय सुधार दर्ज किया गया।
साल 1990 में
सोवियत स्वास्थ्य मंत्रालय ने आयुर्वेद को रूसी स्वास्थ्य प्रणाली में
शामिल करने के लिए अलग विभाग बनाया और मॉस्को में पहला ट्रेनिंग कोर्स शुरू
किया, जिसमें 250 से अधिक डॉक्टरों को आयुर्वेद के लिए ट्रेनिंग दी गई।
1991 में रूसी पारंपरिक चिकित्सा संघ की स्थापना हुई।
साल 1996 से 2005
तक मॉस्को के नामी आयुर्वेद सेंटर में डॉक्टर नौशाद अली, डॉक्टर मोहम्मद
अली और डॉक्टर उन्नीकृष्णन जैसे भारतीय विशेषज्ञों ने 15 सौ से अधिक मरीजों
का इलाज किया। साल 2003 में शुरू हुई वश्य आयुर्वेद परियोजना और 2005
में बने आयुर्वेद रूस-भारत संघ ने इसे और गति दी। आज रूस की पीपुल्स
फ्रेंडशिप यूनिवर्सिटी के इंस्टीट्यूट ऑफ ओरिएंटल मेडिसिन में आयुर्वेद
विभाग है। भारतीय प्रोफेसर हर साल बड़ी संख्या में रूसी डॉक्टर्स को
प्रशिक्षण देते हैं।
रूसी बाजार में च्यवनप्राश, त्रिफला गुग्गुलु,
ब्राह्मी रसायन, मेदोहर गुग्गुलु, महामंजिष्ठादि, भृंगराज जैसी भारतीय
औषधियां और आंवला, अश्वगंधा, बाला, महानारायण जैसे दर्जनों तेल उपलब्ध हैं।
यही नहीं, देश में 1 हजार से अधिक स्पा सेंटर हैं जिनमें से आधे से अधिक
पंचकर्म, अभ्यंगम, हर्बल स्टीम बाथ जैसी शुद्ध आयुर्वेदिक सेवाएं देते हैं।
रूस के बच्चे-बूढ़े, जवान सभी शारीरिक और मानसिक समस्याओं से राहत के लिए आयुर्वेद का सहारा ले रहे हैं ।
--आईएएनएस
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