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स्क्रीनिंग, जागरूकता और नई तकनीक से दें कैंसर को मात

By: Team Aapkisaheli | Posted: 06 Apr, 2019

स्क्रीनिंग, जागरूकता और नई तकनीक से दें कैंसर को मात
नई दिल्ली। कैंसर एक घातक रोग है। कैंसर की जितनी पीड़ा रोगी को होती है, उतनी ही पीड़ा उसके परिवार को भी होती है। पिछले कुछ समय में कैंसर की रोकथाम और इसे मात देने के लिए काफी जागरूकता फैलाने का प्रयास किया गया है, बावजूद इसके यह लगातार पांव पसार रहा है, जिसका एक कारण यह भी है कि अमूमन बहुत छोटे-छोटे पहलुओं पर हम अक्सर ध्यान नहीं देते जो धीरे-धीरे घातक रूप ले लेता है।

कैंसर केवल धूम्रपान अथवा मदिरा सेवन से नहीं बल्कि खराब जीवनशैली के चलते भी पैर पसारता है। विश्व स्वास्थ्य दिवस के अवसर पर दिल्ली स्थित राजीव गांधी कैंसर इंस्टीट्यूट एवं रिसर्च सेंटर के विशेषज्ञों ने कैंसर से जुड़े तथ्यों एवं लगातार नयी तकनीक के चलते आये बदलाव के विषय में जानकारी साझा की और कैंसर स्क्रीनिंग को लेकर अधिक जागरूकता लाने की बात पर जोर दिया है।

विशेषज्ञों के अनुसार करोंड़ों लोग कैंसर से पीडि़त हैं और अगले 10 वर्षों में करीबन डेढ़ करोड़ लोगों को कैंसर हो सकता है,  जिनमें आधे मरीजों का इलाज मुश्किल होगा। जिसका कारण है समय पर जांच ना कराना, परन्तु यह आंकड़े बदले जा सकते हैं अगर लोग जागरूक रहें और शंका होने पर स्क्रीनिंग कराने से ना घबरायें।

कैंसर का ईलाज सम्भव है अगर सही समय में जाच और इसका पता चल जाये। इसलिए सही समय पर कराई गई स्क्रीनिंग और सही इलाज कैंसर को मात देने में सक्षम हो सकते हैं।

स्तन (ब्रेस्ट) कैंसर : जीवन में हर 25 में से 1 महिला को ब्रेस्ट कैंसर होने की संभावना हो सकती है। इससे स्क्रीनिंग के जरिये आसानी से बचा जा सकता है। डॉक्री जांच (क्लिनिकल ब्रेस्ट एग्जामिनेशन) या अपने आप की जांच के जरिये। 45 वर्ष से बड़ी महिलाओं को इसकी शंका होने पर उन्हें एक खास ब्रेस्ट एक्सरे (मेमोग्राफी) करावानी चाहिए।

मुंह का कैंसर : अपने देश में तम्बाकू, बीड़ी-सिगरेट, खैनी-गुटखा और पाने मसाले इत्यादि का बहुतायत में इस्तेमाल होता है, ज्यादा शराब पीना भी ओरल कैंसर का कारण है। इसकी स्क्रीनिंग में डॉक्टर मुंह और गले में छाले, असामान्य रंग बदलाव, गांठों को देखकर समझते हैं। गर्दन में गांठ भी इस कैंसर का एक लक्षण है, यह लक्षण कैंसर में परिवर्तित न हो इसके लिए डॉक्टरी जांच बेहद आवश्यक है।

सर्वाइकल कैंसर : सर्वाइकल कैंसर (गर्भाश्य ग्रीवा कैंसर) महिलाओं में दूसरा प्रमुख कैंसर है। समय पर स्क्रीनिंग से इस कैंसर को रोका जा सकता है, सरल स्क्रीनिंग के तीन विभिन्न तरीके डॉक्टरी सलाह व परामर्श से पता चल सकते हैं। कोलोरक्टल कैंसर, प्रोस्टेट कैंसर सहित कई अन्य कैंसर भी स्क्रीनिंग के माध्यम से पकड़े जा सकते हैं और समय रहते इनकी जांच व इलाज सम्भव है।

कैंसर रिस्क के बारे में डॉक्टर से परामर्श लेना और उनकी सलाह अनुसार स्क्रीनिंग आपको कैंसर से दूर रहने में मदद करेगी। ओरल (मुंह-गला), ब्रेस्ट (स्तन), सर्वाइकल (गर्भाशय ग्रीवा), फेफड़े (लंग) कैंसर की शंका में ज्यादा सावधान रहने की आवश्यकता है। सही समय में जांच और ईलाज आपको कैंसर से दो कदम आगे रखेगा।


कैंसर के इलाज में इम्यूनोथेरेपी अधिक कारगर:


राजीव गांधी कैंसर इंस्टीट्यूट एंड रिसर्च सेंटर के मेडिकल ओंकोलॉजी डायरेक्टर डॉ. विनीत तलवार बताते हैं कि कैंसर के इलाज की दिशा में इम्यूनोथेरेपी एक गेम चेंजिंग थेरेपी के रूप में सामने आई है। कैंसर के इलाज में लगातार इसका इस्तेमाल बढ़ रहा है, क्योंकि इम्यूनोथेरेपी से इलाज के बाद मरीज का जीवन अन्य पद्धति से इलाज के मुकाबले कहीं बेहतर रहता है। लंबे समय तक कैंसर के इलाज में केवल कीमोथेरेपी का प्रयोग हो रहा था। आज टागेर्टेड और इम्यूनोथेरेपी का प्रयोग बढ़ रहा है। टागेर्टेड थेरेपी की दवाएं सीधे कैंसर वाली जगह पर असर करती हैं। कैंसर की ज्यादा से ज्यादा कोशिकाओं को खत्म करने और सर्वाइवल रेट बढ़ाने के लिए पारंपरिक कीमोथेरेपी की दवाओं के साथ ही टागेर्टेड थेरेपी की दवाएं भी दी जाती हैं।
स्टेट ऑफ द आर्ट थेरेपी कही जाने वाली इम्यूनोथेरेपी के मामले में शरीर के इम्यून सिस्टम को इस तरह से तैयार किया जाता है कि शरीर खुद ही कैंसर कोशिकाओं से लड़ता है और उन्हें बाहर निकाल देता है। कैंसर की जल्द जांच पर जोर देते हुए डॉ. तलवार ने कहा कि अगर आप किसी भी समस्या का 3-4 सप्ताह से इलाज करा रहे हों और स्थिति नियंत्रण में नहीं आ रही हो, तो गंभीरता से जांच करानी चाहिए। अगर गले में खराश हो, बुखार हो, कहीं गांठ बन रही हो, खून बह रहा हो या अन्य कोई परेशानी हो, तो जल्द जांच करा लेनी चाहिए।

मस्कूलोस्केलेटल ओंकोंलॉजी कंसल्टेंट डॉ. मनीष पू्रथी कहते हैं, ‘‘लोगों के जीवन को सुरक्षित करने और युवाओं के अंगों की सुरक्षा के लिए हड्डियों और सॉफ्ट टिश्यू के कैंसर सारकोमा के बारे में जागरूकता बढ़ाने की सख्त जरूरत है।’’

 यद्यपि इसके मामले बहुत कम सामने आते हैं, लेकिन हड्डियों और सॉफ्ट टिश्यू का यह कैंसर बहुत कम उम्र में शिकार बनाता है। कई मामलों में उम्र के दूसरे और तीसरे दशक में ही यह लोगों को शिकार बना लेता है। इस कैंसर का इलाज इसलिए भी बेहद जरूरी होता है, क्योंकि मरीज को आगे औसतन 50-60 साल की उम्र और भी बितानी होती है।

डॉ. प्रूथी कहते हैं कि इसके बारे में जागरूकता फैलाने की जरूरत है, क्योंकि अक्सर इसका पता काफी देर से लग पाता है और कम उम्र में ही मरीज को अपना अंग खोना पड़ता है। आमतौर पर अंगों में ट्यूमर का पता नहीं लग पाता है या अनुचित सर्जरी हो जाती है। इस तरह के मामले में ज्यादा नुकसान होने और अंग के खोने का खतरा बढ़ जाता है। हमें अंग की कार्यप्रणाली को सुचारू रखते हुए कैंसर का इलाज करने की जरूरत होती है। इसलिए अगर हाथ-पैरों में लगातार दर्द या सूजन लगे, तो सारकोमा विशेषज्ञ से कंसल्ट कर लेना चाहिए।

वहीं, आरजीसीआईएंडआरसी के हेड एंड नेक सर्जिकल ओंकोलॉजी चीफ और सीनियर कंसल्टेंट डॉ. मुदित अग्रवाल कहते हैं कि कैंसर के इलाज के लिए होने वाली सर्जरी के कारण किसी अंग का प्रभावित होना और निशान रह जाना बेहद आम बात हैं, लेकिन नई रोबोटिक सर्जरी से अंगों की हिफाजत के रास्ते खुले हैं। कैंसर के इलाज की नई तकनीकों ने अंगों की हिफाजत में मदद की है; इससे मरीज न केवल ठीक होते हैं, बल्कि कैंसर के इलाज के कारण उनके किसी अंग को नुकसान भी नहीं पहुंचता।

डॉ. अग्रवाल बताते हैं, ‘‘थायरॉयड कैंसर की सर्जरी के बाद मरीज के शरीर पर निशान रह जाता है। रोबोटिक सर्जरी की मदद से हम इस तरह के निशान से मरीज को बचा सकते हैं, विशेषतौर पर युवा मरीजों को।’’

प्रोस्टेट कैंसर देश में सबसे तेजी से बढऩे वाले कैंसर में शुमार है, इसके इलाज के लिए पारंपरिक तौर पर सर्जरी करनी पड़ती है, लेकिन सर्जरी की कई चुनौतियां भी हैं। अब रोबोटिक सर्जरी के ईजाद ने इन चुनौतियों को कम किया है। यूरोलॉजिकल कैंसर विशेषरूप से प्रोस्टेट कैंसर के इलाज की दिशा में रोबोटिक सर्जरी वरदान साबित हो रही है। इस सर्जरी से अब तक बेहतर नतीजे देखने को मिले हैं।

इसके विषय में जेनिटो यूरो सर्जिकल ओंकोलॉजी कंसल्टेंट डॉ. अमिताभ सिंह का कहना है कि पारंपरिक सर्जरी की तुलना में रोबोटिक सर्जरी के कई फायदे हैं। यह सर्जरी पारंपरिक सर्जरी की तुलना में इसलिए बेहतर है, क्योंकि इसमें बहुत छोटा चीरा लगाना पड़ता है, इससे कम खून गिरता है, कम दर्द होता है, घाव जल्दी भरता है, मरीज को अस्पताल में कम रुकना पड़ता है और ऑपरेशन के बाद कम दर्दनिवारक दवाओं का सेवन करना पड़ता है। डॉ. अमिताभ ने बताया कि किडनी, यूरीनरी ब्लेडर, टेस्टिकुलर कैंसर, यूरेटर कैंसर जैसे सभी प्रकार के यूरोलॉजिकल कैंसर में रोबोटिक सर्जरी कारगर साबित हो सकती है। गायनेकोलॉजी में यूटरिन कैंसर और सर्विक्स कैंसर में इसका प्रयोग किया जा रहा है।

मेडिकल ओंकोलॉजी कंसल्टेंट डॉ. पंकज गोयल ने मेटास्टेटिक ब्रेस्ट कैंसर के हार्मोनल ट्रीटमेंट को भी क्रांतिकारी उपलब्धि बताया है। डॉ. गोयल के मुताबिक, साइक्लिन इनहिबिटर्स कही जाने वाली नई दवाओं ने मेटास्टेटिक ब्रेस्ट कैंसर के इलाज की दिशा में क्रांतिकारी बदलाव किया है। टागेर्टेड थेरेपी में प्रयोग होने वाली इन दवाओं से मेटास्टेटिक या स्टेज-4 कैंसर के मामले में बहुत अच्छे नतीजे मिले हैं। मेटास्टेटिक कैंसर उस कैंसर को कहते हैं, जो शरीर के अन्य अंगों में फैल जाता है। उन्होंने बताया कि नई दवाओं ने ब्रेस्ट कैंसर के इलाज की दिशा में उम्मीद की नई किरण दिखाई है।

कैंसर के इलाज की दिशा में एक अन्य उपलब्धि पर बोलते हुए आरजीसीआई एंड आरसी में इंटरवेंशनल रेडियोलॉजी कंसल्टेंट डॉ. अभिषेक बंसल ने कहा, ‘‘इंटरवेंशनल ओंकोलॉजी में बेहद छोटे चीरे की मदद से कैंसर का इलाज किया जाता है; यह तकनीक तेजी से आगे बढ़ रही है और कैंसर के इलाज के क्षेत्र में चौथे स्तंभ की तरह सामने आई है। पारंपरिक तौर पर सर्जरी, कीमोथेरेपी और रेडिएशन कैंसर के इलाज के तीन तरीके हैं।’’

डॉ. बंसल ने कहा, ‘‘इंटरवेंशनल ओंकोलॉजी के कई फायदे हैं, जैसे; चिकित्सक ब्लेड का इस्तेमाल किए बिना एंजियोग्राफी या अन्य तरीकों से कैंसर की जगह तक पहुंचते हैं। इसके 90 फीसदी मामलों में लोकल एनस्थीसिया से काम चल जाता है। साथ ही करीब 60 से 70 प्रतिशत मरीजों को उसी दिन छुट्टी मिल जाती है। इस विधि में चिकित्सक धमनियों, नसों या अन्य माध्यमों से ट्यूमर तक पहुंचकर इलाज करते हैं। उदाहरण के तौर पर लीवर कैंसर में अब तक सर्जरी ही एकमात्र विकल्प थी। अब सर्जरी के बजाय हम उन धमनियों में कीमोथेरेपी का प्रयोग करते हैं, जिनके जरिये ट्यूमर तक खून पहुंचता है। ऐसा करने से कीमोथेरेपी सीधे ट्यूमर तक पहुंच जाती है और शरीर को कोई नुकसान नहीं होता। इसके बाद उस धमनी को बंद कर दिया जाता है, जिससे ट्यूमर खुद-ब-खुद खत्म हो जाता है।’’

(IANS)

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