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बदलें खुद को

By: Team Aapkisaheli | Posted: 12 July, 2012

बदलें खुद को
बदलाव किसी भी समय पर लाया जा सकता है। इसके लिए उम्र की कोई सीमा नहीं होती। जब लोग अपनी बुरी आदतों को बुरी समझने लगते हैं, तभी से बदलाव की शुरूआत होने लगती है। कुछ लोगों को अपनी इन बुरी आदतों को बनाए रखने में मजा आता है। वह बदलाव से डरते हैं। आइए जानें, बदलाव के कुछ तरीके बनें
आशावादी- आशावादी और निराशावादी बनना भी किसी न किसी रूप में आदत है। इंसान किसी काम को या तो सुख पाने के लिए या दुख से बचने के लिए करता है। जब तक नुकसान से ज्यादा लाभ होता है, तब तक वह उस आदत को जारी रखता है। पर जब नुकसान ज्यादा होने लगता है तब उस इंसान को समझ में आता है और तब वह बदलाव लाना चाहता है।
आदतें बदलें- अपनी आदतों पर कंट्रोल करें। इंसान को बचपन से अच्छी आदतें अपनाने की आदत डालनी चाहिए ताकि ब़डे होने पर उसका चरित्र निर्माण हो सके। वैसे इसकी शुरूआत कभी भी की जा सकती है। हर अच्छा या बुरा तजुर्बा हमें कोई-न-कोई नई बात सिखाता है। नई आदतें सीखने में वक्त लगता है , मगर अच्छी आदतें एक बार सीख ली जाएं तो जीवन भर काम आती हैं। जरूरत इस बात की होती है कि पुरानी बुरी आदतों को बदलकर नई अच्छी आदतों को अपनाया जाए। बु री आदतों को नहीं अपनाना, उन पर काबू पाने से आसान तरीका है। खुशमिजाजी और चि़डचि़डापन भी आदतें हैं। किसी के लिए अच्छा बनना लगातार प्रयासों का नतीजा होता है, जब तक कि अच्छा व्यवहार और नजरिया आदत का रूप नहीं ले लेता है।
आत्म मूल्यांकन- इंसान खुद को जिस तरह से आंकता है उसके चेतन और अवचेतन मन में वही बस जाता है। इंसान जब किसी विास को बार-बार दोहराता है, तो यह उसके अवचेतन मन में गहराई से बैठ जाता है और असलियत का रूप ले लेता है। बार-बार दोहराया गया झूठ सच मान लिया जाता है। आत्म मूल्यांकन सकारात्मक या नकारात्मक भी हो सकता है।
आत्म अनुशासन- शुरू-शुरू में आत्मसुझाव मन को स्वीकार नहीं भी हो सकता है। किसी भी आदत को अपना बनाने में या उसे दूर करने के लिए प्रयास की जरूरत होती है, मगर इस पर अमल करना उतना सरल भी नहीं है। आत्मसुझाव को हकीकत में लाने के लिए अपने मन पर कंट्रोल करें, जिसके लिए आत्म अनुशासन बहुत जरूरी है। आत्म अनुशासित रहने से खुशियां घटती नहीं बल्कि बढती है।
स्वयं से तर्क करें- जिन परिस्थितियों में नकारात्मक विचार आते हैं, उनसे तरीके से सामना करना सीखें। नकारात्मकता का जवाब सकारात्मकता के अलावा कुछ भी नहीं हो सकता, यह बात मन में बैठा लें। इसके बाद जो भी नकारात्मक विचार मन में आए, उसके साथ तर्क करना सीखें और वह भी सकारात्मकता के साथ। जिस प्रकार से नकारात्मक विचार लगातार आते रहते हैं, ठीक उसी तरह से आप स्वयं को सकारात्मक विचारों के लिए प्रेरित करें।

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