याद रहेगा हंगल का संवाद "इतना सन्नाटा क्यों है भाई"

By: Team Aapkisaheli | Posted: 26 , 2012

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याद रहेगा हंगल का संवाद
आजादी के दिन 1975 में प्रदर्शित हुई जी.पी. सिप्पी की फिल्म शोले ने एक तरफ जहां बॉक्स ऑफिस पर जमकर तहलका मचाया वहीं इस फिल्म ने उन सितारों को भी लोकप्रियता के चरम पर पहुंचाया जिन्होंने इस फिल्म के छोटे-छोटे किरदारों को अभिनीत किया था। इन्हीं में एक किरदार था रहीम चाचा का, जिसने अवतार कृष्ण हंगल उर्फ ए.के. हंगल ने जीया था। उनके द्वारा बोला का संवाद "इतना सन्नाटा क्यों है भाई" आज भी दर्शकों के जेहन में घूमता है। अविस्मरणीय बने इस संवाद को बोलने वाले इस कलाकार का रविवार सुबह मुम्बई में निधन हो गया।

भारतीय सिनेमा इतिहास में ए.के. हंगल पहले ऎसे चरित्र अभिनेता थे जो रंगमंच से फिल्मों में आए और वो भी 50 वर्ष की आयु में। ए.के. हंगल रंगमंच के मझे हुए अदाकार थे। मुंबई के आशा पारेख अस्पताल में उन्होंने आखिरी सांस ली। हंगल के बेटे विजय ने यह जानकारी दी। हंगल ने फिल्म शोले में रहीम चाचा के किरदार से अपने अभिनय की छाप छोडी। 95 साल के हंगल को 16 अगस्त को अस्पताल में भर्ती कराया गया था। 13 अगस्त को हंगल गिर गए थे। पीठ में चोट लगने के कारण उन्हें मुम्बई के सांता क्रूज में आशा पारिख के अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां उनकी सर्जरी हुई। सर्जरी होने के बावजूद उनती सेहत में कोई सुधार नहीं हुआ। बाद में पता चला कि उन्हें सीने में दर्द और सांस लेने में तकलीफ है। इसके बाद उन्हें वेंटीलेटर पर रखा गया लेकिन उनकी सेहत में कोई सुधार नहीं हुआ। इसके चलते वेंटीलेटर हटा दिया गया। उनके परिवार में एक बेटा विजय है। उनकी पत्नी का पहले ही निधन हो गया था। उनका बेटा विजय हंगल बॉलीवुड में कैमरामैन व फोटोग्राफर है। विजय की पत्नी का भी 1994 में निधन हो गया था। उनके कोई संतान नहीं है। चरित्र अभिनेता पद्म भूषण अवतार किशन हंगल का जन्म एक फरवरी 1914 को कश्मीरी पंडित परिवार में अविभाजित भारत में पंजाब राज्य के सियालकोट में हुआ था। उनके पिता का नाम पंडित हरी किशन हंगल था।

उनका बचपन पेशावर में गुजरा। वहां उन्होंने 1936 में थियेटर में अभियन करना शुरू किया। हंगल के दादा पहले न्यायाधीश थे। पिता के रिटायरमेंट के बाद हंगल परिवार पेशावर से कराची आ गया था। बंटवारे के बाद हंगल परिवार 1949 में बंबई आ गया। हंगल तीन साल पाकिस्तान में जेल में भी रहे। साल 1966 से 2005 के अपने फिल्मी करियर में उन्होंने करीब 250 फिल्मों में काम किया। मुंबई में हंगल बलराज साहनी व कैफी आजमी के साथ इप्टा थियेटर से जुड गए। हंगल ने फिल्मी करियर 50 साल की उम्र में शुरू किया। उनकी पहली फिल्म थी बासु भट्टाचार्य की तीसरी कसम (1966)। बासु भट्टाचार्य ने उन्हें मुम्बई में एक नाटक के दौरान देखा था। वे उनकी अदाकारी से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उन्हें अपने निर्देशन में बनने वाली फिल्म तीसरी कसम के लिए साइन किया। इस फिल्म में उन्होंने राजकपूर और वहीदा रहमान के साथ अभिनय किया। हंगल ने कभी इस बात को महЮव नहीं दिया कि उन्हें दिया जा रहा किरदार छोटा है या बडा। उन्होंने हर किरदार को पूरी शिद्दत के साथ परदे पर जिया। फिर वह चाहे शोले का रहीम चाचा हो या दीवार का स्कूल मास्टर। हंगल के करियर को परवान चढाने में ऋषिकेश मुखर्जी की विशेष भूमिका रही उन्होंने उन्हें अपने निर्देशन में बनी हर फिल्म में लिया। उन्होंने गुड्डी, अनामिका, अभिमान, दीवार, नमक हराम, शोले, शौकीन, आईना, काली घटा जैसी सुपर हिट फिल्मों में काम किया। वे हाल ही में टीवी सीरियल मधुबाला में दिखाई दिए थे। हंगल आखिरी बार अमोल पालेकर की फिल्म पहेली (2005) में नजर आए। आठ फरवरी 2011 को हंगल मुंबई में फैशन डिजाइनर रियाज गांजी के शो में व्हीलचेयर पर आए। सरकार ने हंगल को 2006 में पk भूषण से सम्मानित किया।
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