दक्षिण चीन सागर में भारत के सुनामी चेतावनी तंत्र को चीन का समर्थन

By: Team Aapkisaheli | Posted: 11 Jun, 2017

दक्षिण चीन सागर में भारत के सुनामी चेतावनी तंत्र को चीन का समर्थन
बीजिंग। विवादित दक्षिण चीन सागर में सुनामी चेतावनी प्रणाली स्थापित करने की भारत की योजना का चीन ने समर्थन किया है। चीन इस पूरे समुद्री क्षेत्र पर अपना दावा करता है। चीन को लगता है कि एक प्रभावी सुनामी चेतावनी तंत्र तटवर्ती देशों के लिए फायदेमंद होगा। इस तरह का तंत्र स्थापित करने की संभावना तलाशने संबंधी भारत के निर्णय पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए चीनी विदेश मंत्रालय ने कहा कि सुनामी पूर्व चेतावनी शोध को मजबूत करना सभी पक्षों के हित में है।

मंत्रालय ने आईएएनएस से कहा, ‘‘चीन और संबद्ध देशों को संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों की आवश्यकताओं के अनुसार दक्षिण चीन सागर में उपयुक्त सुविधाओं और प्रणालियों को स्थापित करना है।’’ मंत्रालय ने कहा है, ‘‘प्रासंगिक पक्ष मौजूदा सहयोग तंत्र के तहत प्रासंगिक सहयोग के मुद्दों पर चर्चा कर सकते हैं।’’पिछले महीने भारत सरकार के एक अधिकारी ने कहा था कि नई दिल्ली ने दक्षिण चीन सागर में सुनामी की जल्द चेतावनी प्रणाली को स्थापित करने की योजना बनाई है।

इससे पहले बीजिंग कई मौकों पर नई दिल्ली को इस विवादित जल क्षेत्र से दूर रहने की चेतावनी दे चुका है। इस सागर पर ब्रुनेई, मलेशिया, फिलीपींस, ताइवान और वियतनाम अपना दावा करते हैं। बीजिंग वियतनाम की तटीय सीमा पर भारत के ओएनजीसी विदेश लिमिटेड(ओवीएल) की उपस्थिति पर अपना विरोध जता चुका है। वियतनाम के तट पर ओवीएल हाइड्रोकार्बन को खोज कर रहा है। गहरे समुद्र में स्थित 128 तेल कुंओं में दोहन के लिए वियतनाम ने 2016 में भारत को एक साल के विस्तार दे दिया था। ये तेल कुंए विवादित दक्षिण चीन सागर का हिस्सा हैं।

पिछले महीने, पीपुल्स लिबरेशन आर्मी में रहे एक सैन्य विशेषज्ञ सोंग जोंगपिंग ने दक्षिण चीन सागर में सिंगापुर के साथ संयुक्त नौसैन्यअभ्यास के लिए भारत की आलोचना की थी और उन्होंने नई दिल्ली पर बीजिंग को न उकसाने के वादे को तोडऩे का आरोप लगाया था। पिछले साल चीन ने दक्षिण चीन सागर में सुनामी चेतावनी केंद्र स्थापित किया था। दक्षिण चीन सागर के रास्ते प्रत्येक वर्ष 50 खरब डॉलर का वैश्विक व्यापार होता है।
जहां एक ओर चीन और अन्य तटीय देश ऊर्जा से भरपूर जल वाले इस सागर पर अपना दावा करते हैं, वहीं अमेरिका इस जल क्षेत्र के रास्ते नौवहन की स्वतंत्रता के अधिकार पर जोर देता है। इन सबके बीच यह विश्व का सबसे विवादित क्षेत्र बन गया है।   



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