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गर्भवती महिला की उचित देखभाल

By: Team Aapkisaheli | Posted: 26 Oct, 2017

गर्भवती महिला की उचित देखभाल
मां बनना किसी भी महिला के लिए जिन्दगी का सबसे सुखद अहसास होता है, क्योंकि गर्भावस्था में स्त्री के शरीर में एक नये जीव का निर्माण होता है और कई प्रकार के उपापचयन सम्बन्धी परिवर्तन भी होते हैं। अत: भ्रूण के उचित विकास हेतु उचित ढंग से प्रसव हेतु तथा जन्म के बाद भी कोई परेशानी न हो, उसके लिए गर्भवती स्त्री का स्वस्थ रहना आवश्यक है और स्वस्थ रहने के लिए सन्तुलित आहार का होना अति आवश्यक है। इस अवस्था के दौरान गर्भवती की सेहत की देखभाल बहुत ध्यानपूर्वक करनी चाहिए। गर्भवती होने के बाद नियमित डाक्टर से सम्पर्क तो रखना ही चाहिए, साथ ही हर माह अपनी जांच भी करवाते रहना चाहिए, ताकि इससे होने वाली परेशानी के बारे में पहले पता चलता रहे।

गर्भवती महिला की देखभाल में परिवार के लोगों की भूमिका महत्तवपूर्ण होनी चाहिए। आइएं जानते हैं कैसेक् गर्भवस्था में स्त्री के लिए नियमित रूप से डॉक्टरी जांच करवाना अति आवश्यक है ताकि वह यह सुनिश्चित कर सके कि वह और उसका शिशु दोनों स्वस्थ हैं तथा शिशु का विकास ठीक प्रकार से हो रहा है और वह खुद गर्भवस्था, प्रसव और उसके पश्चात् हो सकने वाली उलझनों से बच सके। पहली जांच कब- गर्भ में शिशु के विकास की इस नाजुक घडी में आपको चिकित्सक से दवाईं ले। दूसरे जांच-एक्सरे करवाएं और बायरल रोगं जो आप के शिशु में जन्मजात दोष उत्पन्न कर सकते हैं के बारे में पूरी जानकारी लेना जरूरी है। और आपको अपना शारीरिक निरीक्षण तथा कुछ लैबोरेटरी टेस्ट करवाने चाहिए। जैसे- यूरिन टेस्ट शुगर- गर्भवती स्त्री की यूरिन की जांच उसमें शक्कर की उपस्थिति को परखने के लिए की जाती है। यदि उपस्थित हो, तो उस स्त्री के रक्त में शक्कर की मात्रा की जांच, पहले खाली पेट और फिर दोबारा एक सीमित मात्रा में ग्लूकोज सामान्यत:75 ग्राम ग्रहण करने के दो घंटे बाद की जाती है।

यदि मधुमेह का असर हल्का है तो खान-पान में थोडा-सा फेरबदल करने पर ही शुगर नियंत्रित हो जाती है जबकि शुगर अधिक होने पर इन्सूलिन के इंजेक्शन भी लगाने पड सकते है। गर्भावस्था के शुरूआती 6 महीने तक हर माह डाक्टर से चेकअप कराना जरूरी होता है। चैकअप में मां का वजन, ब्लडप्रैशर, बच्चो का विकास व उस के दिल की धडकन को देखा जाता है। अगर फिर भी कोई परेशानी होती है तो डाक्टर उस का इलाज करना शुरू कर देते है। गर्भवती महिला को चौथे माह में आयरन और कैल्सियम की गोलियां दी जाती हैं।

आयरन की गोलियां महिला का हीमोग्लोबिन बढाने का काम करती हैं और कैल्सियम हडि्डयों में आने वाली कमजोरी को दूर करता है। गर्भवती को एंटि-टिटनैस के 2 इंजैक्शन लगाये जाते है पहला, पांच में माह में, दूसरा छठे महीने में लगाया जाता है। गर्भवती महिला को गर्भावस्था के सातवें माह में दो बार चैकअप जरूर करवाना चाहिए, अगर शिशु को शारीरिक समस्या होने का खतरा हो, तो डाक्टर के द्वारा प्रसव सातवें माह में ही करा दिया जाता हैं ताकि आगे होने वाली परेशानियों से शिश् को बचाया जा सकें। गर्भवती महिला को आठवें माह में अपना खास ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि इस अवस्था में मां को बच्चो की हलचल का अहसास या दर्द कम होता है तो, तुरंत डाक्टर के पास जाना चाहिए।
कुछ समय की ही दूरी है, जीवन भर की नहीं।

#घरेलू उपाय से रखें पेट साफ


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