क्यों होती हैं दुराचारी और अधर्मी संतान 
   By: Team Aapkisaheli | Posted: 15 July, 2015
    
  
        
        गर्भ धेहि सिनीवालि गर्भ धेहि प्रथुषटुके।
गर्भ ते अश्विनी देवावाधंतां पुष्करस्त्रजौ।।
अर्थात "हे सिनीवाली देवी! एवं हे विस्तृत जघनों वाली पृथुषटुका देवी! आप इस स्त्री को गर्भाधारण करने की सामथ्र्य दें और उसे पुष्ट करें। कमलों की माला से सुशोभित दोनों अश्विनीकुमार तेरे गर्भ पुष्ट करें।"
वर्जित संभोग-संतानप्राप्ति के उद्देश्य से किए जाने वाले संभोग के लिए अनेक वर्जनाएं भी निर्धारित की गई है, जैसे गंदी या मलिन-अवस्था में, मासिकधर्म के समय, प्रात: या सायं की संधिवेला में अथवा, चिंता, भय, क्रोध आदि मनोविकारों के पैदा होने पर गर्भाधान नहीं करना चाहिए। दिन में गर्भाधान से उत्पन्न संतान दुराचारी और अधर्मी होती है। दिति के हिरण्यकशिपु जैसा महादानव इसलिए उत्नन्न हुआ था कि उसने आग्रहपूर्वक अपने स्वामी कश्यप के द्वारा संध्याकाल में गर्भाधान करवाया था। श्राद्ध के दिनों, पर्वो व प्रदोष-काल में भी संभोग करना शास्त्रों मे वर्जित है। काम को हमारे यहां बहुत पवित्र भावना के रूप में स्वीकर किया गया है। गीता में कहा है-
धर्माविरूद्धो भूतेषु कामो�स्मि।
शुभमुहूर्त में शुभमंत्र से प्रार्थना करके गर्भाधान करें। इस विधान से कामुकता का दमन तथा मन शुभभावना से युक्त हो जाता है।