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रिश्तों की मर्यादा!

By: Team Aapkisaheli | Posted: 22 Mar, 2012

रिश्तों की मर्यादा!
हर रिश्ते की अपनी एक मर्यादा होती है लेकिन जब कोई मर्यादा को लांघ जाता है तो रिश्ते अपनी गरिमा ही नहीं विश्वास भी खो बैठते हैं। आखिर क्यों बन जाते हैं ऎसे अमर्यादित रिश्ते जिनकी समाज में कोई जगह नहीं है! कई बार कुछ ऎसी शर्मनाक घटनाएं अखबारों की सुर्खियां बनी होती हैं जिन्हें पढ़कर मन घृणा और शर्म से भर जाता है और ऎसी खबरों को पढकर बस एक ही ख्याल दिमाग में आता है कि रिश्तों की मर्यादा को कौन सा कीडा खाए जा रहा है। आखिर समाज किस गर्त में जा रहा है,जहां ल़डका अपनी मौसी की बेटी को भगाकर ले गया, कहीं दामाद ने सास के संग भागकर विवाह कर लिया तो कहीं बहू ने अपने ससुर को पति बना लिया तो कहीं भताजे ने अपनी हमउम्र बुआ से ही विवाह कर लिया।रिश्तों को कलंकित कर देने वाले ए कृ त्यों के पीछे भी लोगों ने तर्क गढ़ा प्यार का। क्या वाकई ये सभी घटनाएं प्यार को दर्शाती हैं। ब़डे बुजुर्गो से ये तो सुना था कि इंसान प्यार में जात-पांत, धर्म नहीं देखता है लेकिन ये कभी नहीं सुना था कि इंसान प्यार में रिश्तों की पवित्रता क ी दहलीज को भी लांघ जाता है। शर्म से गडा देने वाली ये घटनाएं आखिर क्यों संस्कारों से भरे इस समाज में घटित हो रही हैं।
मनोचिकित्सकों के अनुसार ऎसी घटनाएं जीवन में आई तीव्रता का परिणाम है और जब जिंदगी की ग़ाडी अति तीव्रता से चलती और बिना किसी नियम के चलती है तो दुर्घटना होने के अवसर उतने ही बढ़ जाते हैं। कई बार ऎसा भी होता है कि लडका या लडकी अपने मौसेरे या चचरे भाई-बहन में अपने भावी जीवनसाथी के गुण देखने लगते हैं। कई कारण होते हैं जिनकी वजह से अमुक लडका या लडकी उनके रोलमॉडल बन जाते हैं और वैसे ही गुण वाला इंसान या वही इंसान उनके दिलो-दिमाग में रच बस जाता है तो वो उसे पाने के लिए रिश्तों की मर्यादा को तोडने से भी परहेज नहीं करते हैं।
रिश्तों को कलंकित न होने दें
मनोचिकित्सकों के अनुसार रिश्तों के कलंकित होने का कोई एक मुख्य कारण नहीं हो सकता,बहुत सारी छोटी-छोटी वजहें हाती हैं जो समाज में ऎसी विकृति को जन्म देती हैं।
जिंदगी में आई तीव्रता- रिश्तों को झुठलाने के पाछे एक कारण जिंदगी में आई तीव्रता है। आजकल सब कुछ बहुत फास्ट हो गया है किसी के पास सही-गलत सोचने का समय ही नहीं है। जो कुछ भी लोगों को अपनी सुविधानुसार सही लगता है वो उस कार्य को कर डालते हैं। मिसाल के तौर पर पहले लोग रोटी बनाने के लिए गेहूं लाते थे, उसे साफ करते थे और धूप दिखाकर उसे चक्की पर पिसवाने के लिए भेजते थे। इतनी कडी मेहनत के बाद शुद्ध और पौष्टिक भोजन खाने को मिलता था। लेकिन आज सभी को खाना तुरन्त बनने वाला चाहिए, इसलिए अब सब कुछ पैक्ड मिलने लगा है। कुछ ऎसा ही आज के रिश्तों में होने लगा है। कोई लडका या लडकी अपने आसपास के रिश्तों में ही अपना भावी जीवनसाथी ढूंढने लगते हैं। उन्हें लगने लगता है जब उन्हें जब घर में ही सब कुछ मिल रहा है तो बाहर जाने की जरूरत ही नहीं है।
संयुक्त परिवारों का टूटना- पहले जहां संयुक्त परिवार हुआ करते थे जिसमें चाचा- ताऊ, उनके बच्चो व दादा-दादी सब एक साथ एक ही घर में रहा करते थे। जिस कारण बच्चाों को शुरू से ही रिश्तों का सम्मान करना और संस्कारों की शिक्षा मिलती थी। आजक ल एकल परिवार होने के कारण लोग कई-कई सालों तक अपने रिश्तेदारों से नहीं मिलते और जब जब सालों बाद मिलते हैं तो इन रिश्तों की अहमियत समझ ही नहीं पाते हैं। उनके लिए उनके चचेरे-मौसेरे बच्चो, अंकल-आंटी के हमउम्र लडका या लडकी ही रहते हैं उनके बीच भाई-बहन वाला रिश्ता कभी पनप ही नहीं पाता है।
समय का अभाव-आजकल माता-पिता या लोगों के पास समय नहीं होता है। माता-पिता और बच्चो एक साथ कई-कई हफ्तों तक साथ बैठकर बात तक नहीं करते हैं। ऎसे में न किसी को रिश्ते-नाते, संस्कार समझाने का समय मिलता है,न किसी को समझाने का। हर कोई अपना काम जल्दी से जल्दी और अपने हिसाब से करना चाहता है। माता-पिता अपनी जिंदगी में व्यस्त रहते हैं और बच्चो अपनी जिंदगी में। इसलिए घर में कुछ गलत भी होता है तो किसी को पता नही चल पाता है।
टीवी का असर-पहले जहां घर के सभी सदस्य साथ बैठ टीवी पर आने वाले कार्यक्रम देखते थे वहीं आज के बदलेे परिवेश में सभी लोग अपने-अपने कमरों में टीवी देखना पसन्द करते हैं। एक साथ टीवी देखने पर माता-पिता को पता होता था कि बच्चो क्या देख रहे हैं, लेकिन अब उनको इस बारे में कुछ पता नहीं होता कि बच्चो कैसे कार्यक्रम देख रहे हैं,वेे क्या जानकारी ले रहे हैं। बच्चो टीवी से अधकचरा ज्ञान लेकर, उसे सही मानकर अपनी जिंदगी में उतार लेते हैं। वे घर के बडे-बुजुर्गो से सही-गलत के बारे में जानना भी पसन्द नहीं करते हैं ।
छोटे घर-कई बार खबर पढने को मिलती है कि सगे भाई-बहन में अनैतिक रिश्ते पाये गये। इसका कारण है कि आजकल शहरों में छोटे घर होते हैं। पहले की तरह बडे-बडे घर नहीं होते हैं। महंगाई और जगह की क मी के कारण फ्लैट मे केवल दो या तीन ही कमरे होते हैं जहां एक कमरे में माता-पिता और दूसरे में भाई-बहन सोते हैं जबकि शास्त्रों में कहा गया है कि एक उम्र के बाद हमउम्र स्त्री और पुरूष को एक-साथ कमरे में नहीं सोना चाहिए। लेकिन आजकल घर छोटे होने की वजह से कमरा शेयर करना मजबूरी बन गई है। लेकिन ये भी सत्य है कि जवान लडके और लडकी के शरीर मे कुछ बदलाव आते हैं। हार्मोंस में बदलाव होने के कारण व्यक्ति में उत्तेजना पैदा होती है और खास लम्हों में व्यक्ति गलतियां कर बैठता है। ऎसा व्यक्ति जानबूझकर नहीं करता बल्कि भावनाएं उससे करवा देती हैं।
कैसे बचाएं रिश्तों की मर्यादा
जब सभी व्यक्ति अपने परिवार में संस्कारों और रिश्तों के सम्मान की भावना को साथ लेकर चलेंगे तो कोई भी व्यक्ति गलत काम करने से पहले सौ बार सोचेगा। परिवार में रिश्तां की गरिमा रहे इसके लिए अभिभावकों और बच्चाों को ही इसको गहराई से समझना होगा-
बच्चाों से बातचीत करें-माता-पिता दोनों ही नौकरीपेशा क्यों न हों, घर आने के बाद अपने बच्चाों के साथ बैठ बातचीत जरूर करें । परिवार के सभी लोग रात का भोजन साथ ही करें। इसी दौरान पूरे दिन में हुई बातों और कार्यों के बारे में अपने बच्चाों से पूछें, उनके दोस्तों व उनक ी संगत के बारे में जानकारी अवश्य लें।
रिश्तों की सीमा में रहें- घर के बडे सदस्य हों या छोेटे, सभी को अपनी सीमा में रहना सिखाएं। अभिभावक अपने बच्चाों को रिश्तों का महत्व समझाएं, उन्हें बताएं कि हर रिश्ते की अपनी एक गरिमा होती है,उन्हें उस सीमा रेखा के अंदर रहना सिखाएं। इसके बावजूद बच्चो का मन किसी रिश्ते की ओर आकर्षित हो रहा है तो उसे मारें-पीटे नहीं बल्कि प्यार से समझाएं।
एक-दूसरे पर भरोसा करें-अभिभावक और बच्चो दोनों ही एक-दूसरे पर भरोसा करें। यदि अभिभावक अपने बच्चाों पर भरोसा करेंगे तो बच्चो उनसे कोई भी बात नहीं छुपाएंगे, उन्हें कोई भी बात आपसे करने में डर नहीं लगेगा और वो कोई भी काम करने से पहले आपसे जरूर पूछेंगे। ऎसे में बच्चो के मन में अगर कोई गलत बात आती है और वो आपसे शेयर करता है तो आप उन्हें ऎसा करने से रोक सकते हैं ।
सही यौन शिक्षा-अभिभावक सही समय पर अपने बच्चाों को सही यौन शिक्षा दें। उन्हें बताएं कि एक ही ब्लड ग्रुप में संबंध बनाने से क्या-क्या परेशानी हो सकती है। ऎसा करने से बच्चाों को सही जानकारी होगी तो वे इधर-उधर से अधकचरा ज्ञान नहीं लेेंगे और अज्ञान या जिज्ञासावश कोई भी गलत कदम उठाने से बच जाएगा। जासूसी न करें, निगाह रखें-अभिभावक अपने बच्चाों की जासूसी न करें बल्कि उनके ऊपर निगाह रखें। उन्हें इतनी भी छूट नहीं दें कि वेे हमेशा अपनी मनमानी करें और न ही इतनी सख्ती रखें कि बच्चाों को लगने लगे कि आप उनकी जासूसी कर रहे हैं। प्रतिदिन शाम को माता-पिता अपने बच्चाों के काम की जानकारी लें। प्रतिदिन ऎसा करने से बच्चाों को भी नहीं लगेगा कि आप उनके ऊपर निगाह रख रहे हैं ।

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