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बच्चों से संवाद रखना पेरेंट्स की जिम्मेदारी

By: Team Aapkisaheli | Posted: 16 May, 2012

बच्चों से संवाद रखना पेरेंट्स की जिम्मेदारी
करियर की डगर पर बच्चों को तेज गति से चलते देखना हर माता-पिता को अच्छा लगता है। स्कूल के स्तर पर वे मार्गदर्शन देते हैं, पढाई के लिए मदद भी करते हैं। बच्चां के स्कूली अध्ययन के दौरान के 10 से 12 वर्ष काफ ी महत्वपूर्ण होते हैं, इस कारण कि बच्चा इसी उम्र में बडा होता है। वो किशोरवय की दहलीज पर कदम रख चुका होता है। इस उम्र में दोस्ती भी खूब होती है और बच्चे ज्यादा से ज्यादा समय स्कूल और अपने मित्रों के बीच बिताते हैं। ये समय होता है, जब किसी भी परिवार में माता-पिता भी बच्चों के लिए पैसा जुटाने के लिए मेहनत करते हैं, नौकरी करते हैं। ऎसे में बच्चों से संवाद पहले जैसा नहीं रह पाता, जैसा होना चाहिए। संवाद कम होने लगता है और बातचीत पढ़ाई और कòरियर तक सीमित होने लगती है।
आज के युग में बच्चों की मांग की पूर्ति माता-पिता काफ ी जल्दी कर देते हैं। मांग कहें या आज के युग की मजबूरी, मोबाइल और कम्प्यूटर जल्द से जल्द बच्चों के हाथ लग जाते हैं। इस कारण बचा हुआ समय जब घर परिवार के सदस्य मिल बैठकर बातचीत कर सकते हैं, बच्चे इस छोटी उम्र में सोशल नेटवकिंüग साइट से नाता जोड लेते हैं। उन्हें ये पता नहीं होता, वे ऎसा क्यों कर रहे हैंक् बस उनके दोस्त कर रहे हैं, इसलिए वे करते हैं। मोबाइल पर एसएमएस मैसेज की बौछारों के बीच उनके लिए घरवालों के पास केवल पॉकेट मनी मांगने का समय होता है। बात जब कॉलेज की आती है तब ये स्थिति और भी गंभीर होने लगती है और संवादहीनता की स्थिति दिनों-दिन बढती ही जाती है। क्या कभी इस बारे में सोचा है कि ऎसी स्थिति क्यों आती है । ऎसा शायद इसलिए कि बचपन में पेरेंट-टीचर्स मीट से लेकर अन्य बातों पर आप ध्यान देते थे। बडी क्लास में जाने के बाद कई माता-पिता इस मीट को केवल औपचारिकता मानने लगते हैं और स्कूल नहीं जाते। दरअसल अपने बच्चों से संवाद बनाने की जिम्मेदारी माता-पिता की ही होती है।
घर में मां अपने स्तर पर बच्चों से संवाद स्थापित करने की जिम्मेदारी जरूर निभाती है, जिसमें दोस्तों के बारे में जानकारी आदि पर ये स्कूल स्तर तक ठीक है, जब असल में करियर की डगर पर तेज गति से चलने की बात आती है तब माता-पिता अपने आपको असहाय महसूस करते हैं। इसमें भी दो पक्ष हैं। कुछ माता-पिता बच्चों से ज्यादा विभिन्न पाठ्यक्रमों की जानकारी रखते हैं और अपने अनुसार बच्चों को मार्गदर्शित करते हैं जबकि कुछ माता-पिता बिलकुल भी जानकारी नहीं रखते और सब कुछ बच्चों पर छोड देते हैं, जबकि इसके बीच का रास्ता निकालना जरूरी है। बच्चों की रूचि और उनकी क्षमता को आंकने वाले माता-पिता ही होते हैं।
वे सोच-समझकर और बच्चों से बात करके मार्गदर्शित करे तब इससे बेहतरीन कुछ भी नहीं, पर समस्या वहीं आती है कि संवादहीनता की स्थिति हो जाती है। माता-पिता और घर के अन्य सदस्यों को इस बात का जरूर ध्यान रखना चाहिए कि बच्चों और खासतौर पर किशोरवय के बच्चों के हाथों में गैजेट्स कब दे और कितनी जिम्मेदारी के साथ दें। किशोरवय बच्चों से उनकी भाषा उनके माहौल के अनुकूल बात करेंगे तब बात बनेगी। आज के बच्चे और खासतौर पर किशोरवय और कॉलेज गोइंग बच्चे किसी भी बात को लेकर भाषण या सीख लेना नहीं चाहते। इस कारण वे माता-पिता की बातों को भी नजरअंदाज आसानी से कर जाते हैं। अगर आपको संवाद स्थापित करना है तब पहले उनकी भावनाओं को समझें और उनके विचारों को जानें और फि र अपनी बात को तर्क के साथ रखेंगे तब बात बनेंगी। इस बात का ध्यान जरूर रखें कि संवाद आपको ही स्थापित करना होगा और इसके लिए पहल भी आपको ही करना होगी और माहौल भी आपको ही बनाना होगा। अगर आपने थोडा भी एकाकी होने का मौका दे दिया तब परिणाम काफ ी अलग हो सकते हैं।

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