शुरू हुए नवरात्र, देवी पूजा की आसान विधि
By: Team Aapkisaheli | Posted: 15 Oct, 2012
मंगलवार 16 अक्टूबर से शारदीय नवरात्र शुरू हो रहे हैं। नवरात्र के नौ दिनों तक देवी मां की पूजा की जाती है। इस बार नवरात्र नौ दिनों के न होकर आठ दिन के हैं। नवरात्र में देवी मां की पूजा की जाती है। आइये जानते हैं किस तरह की जाती है देवी की पूजा। देवी की कभी भी उपासना की जा सकती है, क्योंकि शास्त्राज्ञा में चंडी हवन के लिए किसी भी मुहूर्त की अनिवार्यता नहीं है।
नवरात्रि में इस आराधना का विशेष महत्व है। इस समय के तप का फल कई गुना व शीघ्र मिलता है। इस फल के कारण ही इसे कामदूधा काल भी कहा जाता है। देवी या देवता की प्रसन्नता के लिए पंचांग साधन का प्रयोग करना चाहिए। पंचांग साधन में पटल, पद्धति, कवच, सहस्त्रनाम और स्त्रोत हैं। पटल का शरीर, पद्धति को शिर, कवच को नेत्र, सहस्त्रनाम को मुख तथा स्त्रोत को जिह्वा कहा जाता है। इन सब की साधना से साधक देव तुल्य हो जाता है। सहस्त्रनाम में देवी के एक हजार नामों की सूची है। इसमें उनके गुण हैं व कार्य के अनुसार नाम दिए गए हैं। सहस्त्रनाम के पाठ करने का फल भी महत्वपूर्ण है। इन नामों से हवन करने का भी विधान है।
इसके अंतर्गत नाम के पश्चात नम: लगाकर स्वाहा लगाया जाता है। हवन की सामग्री के अनुसार उस फल की प्राчप्त होती है। सर्व कल्याण व कामना पूर्ति हेतु इन नामों से अर्चन करने का प्रयोग अत्यधिक प्रभावशाली है। जिसे सहस्त्रार्चन के नाम से जाना जाता है। सहस्त्रार्चन के लिए देवी की सहस्त्र नामावली जो कि बाजार में आसानी से मिल जाती है कि आवश्यकता पडती है। इस नामावली के एक-एक नाम का उच्चारण करके देवी की प्रतिमा पर, उनके चित्र पर, उनके यंत्र पर या देवी का आह्वान किसी सुपारी पर करके प्रत्येक नाम के उच्चारण के पश्चात नम: बोलकर भी देवी की प्रिय वस्तु चढाना चाहिए। जिस वस्तु से अर्चन करना हो वह शुद्ध, पवित्र, दोष रहित व एक हजार होना चाहिए। अर्चन में बिल्वपत्र, हल्दी, केसर या कुंकुम से रंग चावल, इलायची, लौंग, काजू, पिस्ता, बादाम, गुलाब के फूल की पंखुडी, मोगरे का फूल, चारौली, किसमिस, सिक्का आदि का प्रयोग शुभ व देवी को प्रिय है। यदि अर्चन एक से अधिक व्यक्ति एक साथ करें तो नाम का उच्चारण एक व्यक्तिको तथा अन्य व्यक्तियों को नम: का उच्चारण अवश्य करना चाहिए।
अर्चन की सामग्री प्रत्येक नाम के पश्चात, प्रत्येक व्यक्ति को अर्पित करना चाहिए। अर्चन के पूर्व पुष्प, धूप, दीपक व नैवेद्य लगाना चाहिए। दीपक इस तरह होना चाहिए कि पूरी अर्चन प्रक्रिया तक प्रज्वलित रहे। अर्चनकर्ता को स्नानादि आदि से शुद्ध होकर धुले कपडे पहनकर मौन रहकर अर्चन करना चाहिए। इस साधना काल में आसन पर बैठना चाहिए तथा पूर्ण होने के पूर्व उसका त्याग किसी भी स्थिति में नहीं करना चाहिए। अर्चन के उपयोग में प्रयुक्त सामग्री अर्चन उपरांत किसी साधन, ब्राrाण, मंदिर में देना चाहिए। कुंकुम से भी अर्चन किए जा सकते हैं।
इसमें नम: के पश्चात बहुत थोडा कुंकुम देवी पर अनामिका-मध्यमा व अंगूठे का उपयोग करके चुटकी से चढाना चाहिए। बाद में उस कुंकुम से स्वयं को या मित्र भक्तों को तिलक के लिए प्रसाद के रूप में दे सकते हैं। सहस्त्रार्चन नवरात्र काल में एक बार कम से कम अवश्य करना चाहिए। इस अर्चन में आपकी आराध्य देवी का अर्चन अधिक लाभकारी है। अर्चन प्रयोग बहुत प्रभावशाली, सात्विक व सिद्धिदायक होने से इसे पूर्ण श्रद्धा व विश्वास से करना चाहिए।