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एमबीए में करियर के लिए बेस्ट ऑप्शन

By: Team Aapkisaheli | Posted: 31 Dec, 2012

एमबीए में करियर के लिए बेस्ट ऑप्शन
फाइनैंस एमबीए करना सही विकल्प हो सकता है। फाइनैंस में एमबीए करना सही ऑप्शन हो सकता है। पर यह भी सच है कि इसकी पढाई करने वाले स्टूडैन्टस को अमूमन किसी सीए की तुलना में क्वांटिटेटिव फाइनैंस, टैक्सेशन और ऑडिट जैसे अह्म टॉपिक्स की जानकारी कम ही होती है। जबकि मार्केट टें्रड और मांग को देखते हुए इन्हें जानना भी काफी जरूरी है। सुपर स्पेशियलिटी वाले एमबीए दरअसल एमबीए प्रोग्राम की फिलोसफी के ही खिलाफ जाते हैं, उदाहरण के लिए फाइनैंस में एमबीए को लें। इसे करने वाले छात्र को किसी सीए की तुलना में क्वांटिटेटिव फाइनैंस, टैक्सेशन और ऑडिट आदि की जानकारी कम होती है। इसके बावजूद कंपनियां अभी भी वित्त में एमबीए कोर्स किए हुए लोगों को नियुक्त करती हैं। यह साबित करता है कि एंप्लायर्स किसी खास टॉपिक की समझवाले एंप्लाई की जगह वास्ट नॉलेज वाले लोगों को रखना पसंद करते हैं। ऎसे में आज सुपर स्पेशियलिटी वाले एमबीए कार्यक्रमों से फिलहाल बचा जाए तो बेहतर है, क्योंकि ऎसे प्रोग्राम अमूमन किसी मैनेजमेंट प्रोग्राम की मूल भावना का उल्लंघन करते हैं।

कई भूमिकाओं में होते हैं सीनियर मैनेजर्स इंपीरियल कॉलेज बिजनेस स्कूल, लन्दन के एमबीए प्रोग्राम के डीन प्रोफेसर सायमन स्टॉकले के अनुसार स्पेशियलिटी वाले एमबीए अपवाद हैं दुनिया भर के कुछ टॉप बिजनस स्कूल अपने छात्रों को स्पेशियलिटी नहीं लेने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। यह इस तथ्य को मान्यता देता है कि सीनियर लेवल पर मैनेजमेंट की भूमिका को बांटा नहीं जा सकता है। हालांकि कोई खास इंडस्ट्री पूरी इकोनमी में बेहतर प्रदर्शन करता है, तो ऎसी स्थिति में मैनेजमेंट प्रोग्राम जल्दी ही बाहर भी हो जाते हैं और मीडियम या लांग टर्म के लिए सामान्य एमबीए ही बेहतर साबित होते हैं।

जॉब मार्केट में जरूरत बिजनेस स्कूलों की ऎसी स्पेशियलिटी वाले प्रोग्राम तभी शुरू करने चाहिए, जब उनके पास इसके लिए सही रिसोर्सेज और इन्फ्रास्ट्रच्कर हों। अन्यथा बेहतर एजुकेशन की उम्मीद बेमानी ही है। भारत में वाले स्पेशियलिटी एमबीए कोर्स अनुभवी फैकल्टी के अभाव में प्रभावित होते हैं। इनके एजुकेशनल मॉडल परंपरागत बिजनस स्कूल से काफी अलग होते हैं। दरअसल ये प्रोग्राम्स किसी खास सेक्टर की जरूरत के अनुरूप बनाए जाते हैं। प्रोग्रामचलाने में और इसकी रूपरेखा तैयार करने में इंडस्ट्री की सक्रिय भागीदारी जरूरी होती है। छात्रों को इसके लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए कि वे क्लास में बनी समझ और शिक्षा को नियमित इंटर्नशिप और प्रोजेक्ट्स के दौरान अजमाएं और यह इस प्रकार के कार्यक्रम की पहचान भी होनी चाहिए। भारतीय बिजनस स्कूलों का अप्रोज सामान्यतया लोकल होता है और वे पुराने केस स्टडी और मेथडोलाजी का इस्तेमाल करते हैं। नए बिजनेस स्कूलों में वह सब होता है, जिसकी जरूरत है, पर इसे जॉब मार्केट को स्वीकार्य करने में समय लगेगा, क्योंकि इन्हें स्वयं को साबित करना बाकी है। फैकल्टी और रिसर्च भारत के अधिकांश बी-स्कूलों में मजबूत नहीं है। पर स्पेशियलिटी वाले एमबीए प्रोग्राम्स, जिसे उद्योगों का समर्थन मिला हो और जो सीधे उनकी जरूरतों को पूरा करते हैं, उन्हें जॉब के बाजार में मान्यता मिलती है।

सबसे अधिक पढाई जनरल मैनेजमेंट की अगर छात्र किसी खास उद्योग जैसे कि वाइन, स्पोट्स आदि में काम करने को इच्छुक हैं तो एक स्पेशियलिटी वाला एमबीए प्रोग्राम आपको बेहतरीन मौका उपलब्ध करा सकता है। बशर्ते वे अपने रास्ते से ना भटकें एमबीए का पाठयक्रम अनेक छात्रों के लिए जीवन बदल देने वाला होता है। ऎसे में आप नहीं चाहेंगे कि कोई इंडस्ट्री एक समय के बाद आपके लायक नहीं रहे और आप उसमें घुटन महसूस करें। यही कारण है कि सारी दुनिया में एमबीए प्रोग्राम का एक बडा हिस्सा जो कि 95 फीसदी से ज्यादा है, जनरल मैनेजमेंट का है।

दुधारी तलवार हो सकती है स्पेशियलिटी स्पेशलाइजेशन एक दुधारी तलवार की तरह है। जब गलाकाट प्रतियोगिता होती है तो आपके हिस्से भीड-भाड वाला भाग ही आता है। आपके लिए कंपीटिशन टफ हो जाएगा। क्योंकि आप एक ही सेक्शन में पूरी तरह फिट हो पाएंगे, ना कि हर जगह। जबकि संस्थान को मल्टि-टास्किंग वाले एंप्लाई चाहिए। उस वक्त आपको यह दुख हो सकता है कि आप इतने योग्य नहीं हैं कि आप दूसरों के हिस्से में बंटवारा कर सकें।

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