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बापू की याद में...

By: Team Aapkisaheli | Posted: 01 Oct, 2012

बापू की याद में...
मोहन दास करम चंद गांधी का जन्म 2 अक्टूबर, 1869 को पोरबंदर में हुआ था, जो गुजरात राज्य का एक तटीय कस्बा है। लगभग 18 वर्ष की उम्र में वे कानून की पढाई करने के लिए तथा एक बेरिस्टर के रूप में प्रशिक्षण पाने के लिए इंग्लैन्ड गए। करीब 6 साल बाद उन्होंने स्वयं अपनी आंखों से पूर्वाग्रह देखा, जहां उन्हें एक अश्वेत होने के कारण रेल के प्रथम श्रेणी के डिब्बे से बाहर निकाल दिया गया, जबकि उनके पास यात्रा का वैध टिकट था।
यह घटना उनके जीवन का एक निर्णायक मोड बनी। वर्ष 1917-18 के दौरान बिहार के चम्पारण नामक स्थान के खेतों में पहली बार भारत में सत्याग्रह का प्रयोग किया । यहां अकाल के समय गरीब किसानों को अपने जीवित रहने के लिए जरूरी खाद्य फसलें उगाने के स्थान पर नील की खेती करने के लिए जोर डाला जा रहा था। उन्हें अपनी पैदावार का कम मूल्य दिया जा रहा था और उन पर भारी करों का दबाव था।
गांधी जी ने गांव के जमींदारों के खिलाफ विरोध किया, जिसके परिणाम स्वरूप उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। जमींदारों के खिलाफ चारों तरफ से विरोध प्रदर्शन होने पर जल्द ही गांधी जी को छोड कदया गया और जमींदारों ने किसानों के पक्ष मेंएक करारनामे पर हस्ताक्षर किए, जिससे उनकी स्थिति में सुधार आया।
इस सफलता से प्रेरणा लेकर महात्मा गांधी ने भारतीय स्वतंत्रता के लिए कई आंदोलन जैसे- असहयोग आंदोलन, नागरिक अवज्ञा आंदोलन, दांडी यात्रा तथा भारत छोडो आंदोलन की शुरूआत की। महात्मा गांधी बापू के इस आदर्श जीवन को प्रतिवर्ष 2 अक्टूबर को गांधी जयंती के रूप में आत्मबोध कर उनके द्वारा किए गए भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में असाधारण योगदान के लिए कोटि-कोटि नमन करते हैं। महात्मा गांधी का यह कथन आज हमें सत्य और अहिंसा के मागँ पर चलकर आजादी के कर्तव्य बोध की प्रेरणा व उनके जीवन-दर्शन की जिज्ञासा पैदा करता है।

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