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विदेश में पढाई के लिए जाने जरूरी बातें

By: Team Aapkisaheli | Posted: 09 May, 2012

विदेश में पढाई के लिए जाने जरूरी बातें
अच्छी यूनिवर्सिटी में दाखिले की तमन्ना हर छात्र रखता है, वहीं, विदेशी संस्थान भी श्रेष्ठ उम्मीदवारों का इंतजार करते हैं। जानिए वे भावी छात्रों में कौन-सी खूबियां खोजते हैं। अरसे से विदेशी धरती आपको बुला रही है, और आप नए परिवेश में जीवन के अनुभव के लिए तैयारी कर रहे हैं। पढाई के लिए विदेश जाने से बेहतर मौका क्या होगाक् लेकिन यह जानना भी महत्वपूर्ण है कि आप जिस यूनिवर्सिटी में दाखिले का सपना पाल रहे हैं, उसके लिए जरूरी काबिलियत आप में है या नहीं। ताकि अगर कुछ कमियां हैं तो उन्हें समय रहते दूर किया जा सके। यह जानने के लिए कि यूनिवर्सिटी को विदेशी उम्मीदवारों में किन गुणों की तलाश रहती है,ये जानने के लिए हमने कई संस्थानों से बात की,चूंकि यूनिवर्सिटीज के आकार, नियमों, रणनीतिक योजनाओं आदि में बहुत विविधता होती है इसलिए उम्मीदवारों के मूल्यांकन का तरीका भी भिन्न है। लेकिन कुछ बुनियादी चीजों पर ध्यान देना जरूरी है। दिलचस्पी और खुद को ढालने की प्रवृत्ति संस्थान पहली बात यह देखते हैं कि भावी छात्र मेजबान देश और महाद्वीप में ईमानदारी से दिलचस्पी रखते हों। फ्रांस की यूनिवर्सिटी ऑफ स्ट्रॉसबर्ग में ग्रांड इकोल प्रोग्राम इन मैनेजमेंट (एमबीए) की डायरेक्टर इसाबेल बार्थ बताती हैं, "यूरोप और फ्रांस में दिलचस्पी होनी चाहिए। हालांकि फ्रेंच आनी जरूरी नहीं है।" अध्ययन के लिए चुने गए देश या महाद्वीपों में दिलचस्पी होनी इसलिए जरूरी है क्योंकि कुछ कोर्स ऎसे स्थानीय परिस्थितियों से प्रभावित होते हैं। उदाहरण के तौर पर फ्रेंच रिविरा के शहर मोनाको में फाइनांस, लक्जरी गुड्स एंड सर्विसेस (विलासिता की वस्तुएं और सेवाएं) और इंटरनेशनल मैनेजमेंट जैसे कुछ विषय हैं, जिन्हें विदेशी छात्र तरजीह देते हैं। इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ मोनाको में कòरियर्स एंड कॉरपोरेट रिलेशंस की डायरेक्टर, सोफी डि लोरेंजो कहती हैं, "मास्टर्स इन लक्जरी गुड्स एंड सर्विसेस, मास्टर्स इन लक्जरी रिटेल मैनेजमेंट, और इंटरनेशनल वेल्थ मैनेजमेंट जैसे प्रोग्रामों के लिए भारतीय आवेदकों की संख्या बढ़ रही है।" विदेशी संस्थानों को ऎसे छात्रों की भी तलाश रहती है, जिनके बारे में वह समझते हैं कि वे उनके सामाजिक मूल्यों और संस्कृति के अनुकूल खुद को ढाल लेंगे।इसके अलावा खुली-उदार मानसिकता, विदेशी संस्कृति में घुल-मिल जाने की उत्सुकता और प्रतिबद्धता जैसे गुण आवश्यक हैं। जिज्ञासु प्रवृत्ति और विश्व दृष्टिकोण जैसे गुणों को डार्टमाउथ (न्यू हैम्पशायर) का टक स्कूल ऑफ बिजनेस भी तरजीह देता है।अंतर्राष्ट्रीय परिवेश में दो साल बिताने की चाह और खुली सोच बेहद जरूरी खूबी है।" ग्रेड और कार्य अनुभव अब जानेें सबसे जरूरी बात : ग्रेड्स यानी अंक बहुत मायने रखते हैं। टक स्कूल ऑफ बिजनेस की क्रिस्टी का कहना है, "अच्छा ग्रेड (जीएमएटी और इंडरग्रेजुएट स्तर पर) सबसे ब़डी कसौटी है, जिसके आधार पर हम भावी छात्र का मूल्यांकन करते हैं।" भारतीय छात्रों और उत्तरी अमेरिका के विश्वविद्यालयों के बीच शैक्षिक संपर्क को बढ़ावा देने वाली संस्था, केआईसी यूनिवअसिस्ट के डायरेक्टर स्वराज नंदन भी इस बात से सहमत हैं कि छात्र की अकादमिक प्रतिभा का आंकलन करने के लिए यूनिवर्सिटीज पिछली परीक्षा के ग्रेड्स और प्रवेश परीक्षाओं के परिणाम देखती है। केआईसी यूनिवअसिस्ट के साझीदार संस्थानों में यूनिवर्सिटी ऑफ सिनसिनाटी, इंडियाना यूनिवर्सिटी, परड्यू यूनिवर्सिटी, इंडियानापोलिस, ड्यूक्यूसन यूनिवर्सिटी, पित्सबर्ग, यूनिवर्सिटी ऑफ नॉर्दन आईओवा और यूनिवर्सिटी ऑफ केंटुकी आदि शामिल हैं। टक स्कूल ऑफ बिजनेस ने अपने मैनेजमेंट प्रोग्राम के लिए तीन से पांच साल के कार्य अनुभव की स्पष्ट शर्त रखी है। यूनिवर्सिटी ऑफ स्ट्रासबोर्ग की प्रो. बार्थ इसी बात को थोडे विनम्र शब्दों में रखती हैं, "कुछ कार्य अनुभव तो निश्चित रूप से मददगार होता है।" इसके अलावा यूनिवर्सिटीज बहुमुखी प्रतिभा वाले छात्रों को भी खोजती रहती हैं, वो वहां के छात्र समुदाय के लिए उपयोगी हो सकें। इस गुण को एक्स्ट्रा कòरिकुलर एक्टीविटीज में छात्र की भागीदारी के स्तर से परखा जाता है। जिससे छात्र में नेतृत्व क्षमता और पहल करने जैसे गुणों का पता चलता है। भाषा पर अधिकार और वित्तीय सामथ्र्य एक अन्य जरूरी गुण है-स्थानीय भाषा में संवाद की योग्यता। कोर्स को समझने और अपने विचारों को बांटने के लिहाज से यह गुण बहुत मायने रखता है। केआईसी यूनिवर्सिटी के स्वराज कहते हैं, "अन्य एशियाई देशों की तुलना में भारतीय छात्रों को अंग्रेजी बोलने और लिखने में मुश्किल का सामना नहीं करना प़डता, फिर भी यह आश्वस्ति आवश्यक है कि आप भाषा की बुनियादी जरूरतें पूरी करते हो।" उम्मीदवार को एक व्यक्तिगत निबंध भी लिखना होता है जो आवेदन के साथ भेजा जाता है। इससे पता चलता है कि छात्र जो कोर्स के अनुकूल हैं, उसके इरादे और लक्ष्य कोर्स के अनुकूल हैं या नहीं। विदेशी यूनिवर्सिटी भावी छात्र से यह अपेक्षा भी रखती है कि वह अपनी आर्थिक स्थिति के बारे में पूरी जानकारी दें। संस्थान सुनिश्चित करना चाहते हैं कि छात्र कोर्स का खर्च वहन करने में सक्षम है। स्कॉलरशिप्स अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय अंडरग्रेजुएट और ग्रेजुएट प्रोग्रामों के लिए स्कॉलरशिप देती हैं। स्कॉलरशिप्स की राशि और देने का तरीका अलग-अलग होता है। कुछ के तहत हर साल तय राशि दी जाती है तो कुछ में कोर्स के पहले साल एक निश्चित ग्रेड लाने की शर्त लगी होती है जो बाद के वर्षो में भी यह जारी रहती है। यूनिवर्सिटी ऑफ स्ट्रॉसबर्ग किसी किस्म की स्कॉलरशिप नहीं दी जाती, क्योंकि यहां विदेशी छात्र भी उन सेवाओं का लाभ उठा सकते हैं, जो सरकारी यूनिवर्सिटी में दाखिला लेने वाले फ्रेंच छात्रों को मिलती है। लेकिन फ्रांस के निजी बिजनेस स्कूलों में दाखिला लेने वाले विदेशी छात्रों को यह सुविधा नहीं मिलती। प्रो. बार्थ का कहना है, "फ्रांस के निजी क्षेत्र के कॉलेजों की तुलना में हमारे मास्टर्स प्रोग्राम के लिए ट्यूशन फीस बहुत कम (7,5000 फ्रैंक प्रति वर्ष) है।" दूसरी ओर, टक स्कूल ऑफ बिजनेस की दाखिला नीति "नीड ब्लाइंड" है यानि दाखिला सबसे होनहार छात्रों को ही दिया जाता है, आर्थिक स्थिति या राष्ट्रीयता पर गौर नहीं किया जाता। क्रिस्टी सेंट जॉन बताते हैं छात्र अपनी वर्तमान आर्थिक स्थिति के आधार पर एक साल ट्यूशन फीस जितना उधार ले सकते हैं। इस साल हमने अपने इंटरनेशनल लोन प्रोग्राम के लिए कुछ शर्ते रखी हैं। संस्थान एमबीए में प्रवेश लेने वाले जरूरतमंद छात्रों की आर्थिक मदद के लिए वित्तीय संसाधनों की पहचान को प्रतिबद्ध है। सचेत रहें दाखिले के लिए किसी विदेशी यूनिवर्सिटी की पहचान करने के बाद आपको वहां के इंटरनेशनल एडमिशन डिपार्टमेंट से संपर्क कर स्कॉलरशिप्स और आवेदन की अंतिम तिथि की जानकारी लेनी चाहिए। संस्थान के बारे में अधिक जानकारी के लिए वहां के एडमिशन ऑफिसर के संपर्क में भी रहना चाहिए। चूंकि यूनिवर्सिटी में जाने के बाद स्थितियां बिना किसी पूर्व सूचना के बदल सकती हैं, इसलिए आवश्यक है कि आप पूरी तैयारी के साथ नए प़डाव की ओर कदम बढ़ाएं। सावधानी से चुनें सलाहकार विदेश में सही संस्थान और कोर्स के चयन के लिए खुद से प्रयास करें तो बेहतर। आपकी नासमझी का फायदा उठाने को एजेंट तैयार बैठे हैं... अगर आप विदेश में जाकर पढाई करने का सपना देख रहें हैं तो पहले इस बारे में पूरी तरह रिसर्व कर लें कि क्या पढें, कहां से पढें और इस दिशा मे कैसे आगे बढें।ग्रेजुएशन के बाद इस मामले में पेशेवर सलाहकार की सलाह लेना ठीक रहेगा। लेकिन उस सलाहकार के बारे में पूरी जांच-पडताल कर लेना बहुत जरूरी है क्यों कि उसकी सलाह को मानते हुए ही आप अपने बहुत सारे पैसे और जिंदगी का एक साल दांव पर लगाने जा रहे हैं। जीवन की जो हसीन तस्वीर जो आपको दिखाई जाए उसके सच-झूठ का पता लगाना बहुत जरूरी है अन्यथा आपकेजीवन के सपने कटु अनुभवों में बदल सकते हैं। प्रोफेशनल सलाह भी गलत रही कुछ नासमझ छात्र और उनके माता-पिता जो इस मामले में पूरी जानकारी नहीं रखते और यह मानकर चलते हैं कि पैसा खर्च करना ही काफी है। विदेशी शिक्षा के मामले में प्रोफेशनल सलाह उन्हें थाली में परोसी मिल जाएगी। लेकिन ऎसा नहीं होता, ज्यादातर मामलों में छात्र, उनके परिजन जायज और बेईमान सलाहकार में अंतर नहीं कर पाते। अक्सर सही सलाहकार की पहचान करने में वे छात्र नाकाम होते हैं जो सलाहकार के पास जाने से पहले पूरी तैयारी नहीं करते। जिसकी शुरूआत कुछ बुनियादी सवालों से होती है। उदाहरण के तौर पर, आप विदेश क्यों जाना चाहते हैंक् कौन-सा कोर्स करना चाहते हैंक् इसकी वजह क्या है और कहां से यह कोर्स करना फायदेमंद रहेगाक् जिस संस्थान में आवेदन करना चाहते हैं उस पर कुल कितना खर्च आएगाक् और खर्च कैसे जुटाएंगेक् यदि आप इन बुनियादी सवालों का जवाब नहीं दे सकते और अपनी संतुष्टि नहीं कर पाते तथा सलाह के लिए भाग रहे हैं तो जान लीजिए कि वे मुसीबत को न्यौता दे रहे हैं। बेईमान सलाहकार आपको शिकार बनाने को तैयार बैठे हैं। सीधी बात यह है कि जब तक आप गहन आत्ममंथन और आत्म मूल्यांकन नहीं करते, बाहरी सलाह बहुत उपयोगी नहीं रहती। ये सामान्य विवेक की बातें हैं लेकिन अधिकांश छात्र यहीं मात खा जाते हैं। बहुत से छात्र इस मामले में होमवर्क नहीं करते है। सलाह की जरूरत विदेश में शिक्षा के मामले में सबसे ब़डा दांव छात्रों और उनके माता-पिता का ही लगा होता है-वे पैसा, समय और कòरियर का जोखिम लेते हैं। लेकिन खुद से ज्यादा भरोसा कंसल्टेंट्स पर करते हैं। छात्रों के आलस्य और अज्ञानता को भुनाते हुए बेईमान कंसल्टेंट उन्हें गुमराह करने से नहीं हिचकते हैं। उनकी ज्यादा दिलचस्पी फीस और अपने कमीशन में होती है। ये उनका धंधा है और उन्हें इससे कोई सरोकार नहीं कि जिस सेवा के लिए पैसे दिए हैं, वह आपके काम की है भी या नहीं। यसदि आपने अपनी जरूरत और रूचि पर गहराई से मंथन किया है तो चीजें एकदम स्पष्ट होंगी और हो सकता है कि बाहरी सलाह की आपको कतई आवश्यकता नहीं प़डे। फिर भी यदि आप एजुकेशनल कंसल्टेंट के पास जाते हैं तो यह निश्चित कर लें कि उनकी सेवाओं का इस्तेमाल अपने फायदे के लिए कर रहे हैं, न कि वे आपसे फायदा उठाएं। जो छात्र अपने मकसद को लेकर एकदम स्पष्ट होते हैं, वे इस बारे में पर्याप्त शोध कर चुके होते हैं और समझ जाते हैं कि कौन-सा एजेंट उन्हें बेवकूफ बना रहा है। जहां तक उन छात्रों का सवाल है, जिनका लक्ष्य येन-केन-प्रकारेण एडमिशन पाना है, वे शिक्षण संस्थान या कोर्स की गुणवत्ता पर ध्यान देने की जरूरत नहीं समझते हैं। ऎसे लोग धोखेबाज एजेंटों के लिए मोटी कमाई का जरिया बन जाते हैं। सही कंसल्टेंट आइए जानते हैं कि सही सलाहकार किस तरह काम करते हैं। शुरूआत वे छात्रों की रूचि के क्षेत्र, उनका एप्टीट्यूड, उनके ग्रेड की जानकारी से करते हैं। उसके बाद जानने की कोशिश करते हैं कि छात्र की दिलचस्पी किस तरह के कòरियर्स में है। उनकी वित्तीय क्षमता का भी अंदाजा लगाते हैं और इस तरह प्राप्त जानकारियों के आधार पर सुझाव देते हैं कि छात्र के लिए कौन-सा कोर्स और संस्थान उचित रहेगा। ऎसे सलाहकार छात्र को पर्याप्त होमवर्क करने की सलाह देते हैं और यूनिवर्सिटी अथवा कॉलेज से खुद संपर्क करने को प्रोत्साहित करते हैं। इस किस्म के कंसल्टेंट्स यह परख लेते हैं कि यदि छात्र की अभिरूचि बायोइंजीनियरिंग में है तो वे उसे एमबीए करने की सलाह नहीं देंगे। इसके अलावा यदि आप उम्दा संस्थानों में जाने योग्य नहीं हैं, लेकिन एक सी ग्रेड कॉलेज (जिनका धुंआधार प्रचार किया जाता है) से बेहतर में प्रवेश की योग्यता रखते हैं तो आपको स्पष्ट बता देंगे। वे आपको ऎसे कॉलेजों में जाने कीउ सिर्फ सलाह देंगे, जिनमें आप अकादमिक, वित्तीय औरसांस्कृतिक दृष्टि से फिट बैठते हों। न कि उन कॉलेजों की मार्केटिंग करेंगे।

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