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रिश्तों से दूर होते बच्चे

By: Team Aapkisaheli | Posted: 16 Feb, 2012

रिश्तों से दूर होते बच्चे
हर रिश्ते की अपनी अहमियत होती है और जरूरी है कि हम उस रिश्ते की मर्यादा को समझे और अपने बच्चों को भी समझाएं। ईट-पत्थरों की दीवारों में जब रिश्तों का एहसास पनपता है तभी वह घर कहलाता है। कितने ही ऎसे रिश्ते हैं जो हमारे संबंधों का आधार होता है और हमें जीवनभर ये रिश्ते निभाने होते हैं। लेकिन आज की हाईप्रोफाइल और भागदौड भरी जिंदगी में हम रिश्तों की अहमियत को भूलते जा रहे हैं। हमारी बिजी लाइफ हमे रिश्तों से दूर कर रही है। इसका उसर हमारे बच्चों पर भी पडता है। तभी तो आज के बच्चे रिश्तों की अहमियत को नहीं समझते।
रिश्तों से अनजान बच्चे:
जब बच्चा पैदा होता है तो उसके जन्म से ही उसके साथ कई रिश्ते जुड जाते हैं। लेकिन इन रिश्तों में से कितने ऎसे होते हैं जिन्हें वे निभा पातें हैं। ऎसा इसलिए नहीं कि बच्चों को उन रिश्तों की अहमियत का नहीं पता बल्कि इसलिए कि क्योंकि हम खुद उन रिश्तों से दूर हैं। बच्चों में संस्कार की नींव माता-पिता द्वारा ही रखी जाती है। अगर माता-पिता ही रिश्तों को तवя┐╜ाो नही देते तो बच्चे तो इन से अनजान रहेंगे ही।
विघटित होते परिवार:
आज समाज संयुक्त परिवार का प्रचलन घटता जा रहा है और एकल परिवार का प्रचलन बढ गया है। पहले जहां बच्चों का पालनपोषण संयुक्त परिवार में होता था, वहीं आज के बच्चों का परिवार एकल है। संयुक्त परिवार में बच्चा दादा-दादी, चाचा-चाची, ताऊ-ताई, बुआ के साथ साथ रहकर बडा होता था। आज बच्चा सिर्फ अपने माता-पिता को ही जानता है। एकल परिवार में होने के कारण बच्चे अपने खून के रिश्तों को भी नहीं समझते और जब बच्चा खून के रिश्तों को समझेगा ही नहीं, तो उस में रिश्तों के प्रति सम्मान और अपनापन कहां से आएगा! आज के बच्चे अपनी संस्कृति और सभ्यता से भी अनजान होते जा रहे हैं। आज के अभिभावकों के पास इतना समय ही नहीं है कि वे अपनी सभ्यता और संस्कृति से उन्हें अवगत करा सकें।
व्यस्त जीवनशैली
आज हमारी जीवनशैली इतनी व्यस्त हो गई है कि व्यक्ति के पास खुद के लिए समय नहीं है। ऎसे में रिश्ते निभाने और बच्चों को उन की अहमियत बताने का समय किस के पास है? जिंदगी की रफ्तार में इंसान अपने रिश्तों को अनदेखा करता जा रहा है। इसी अनदेखी की प्रवृति के कारण उस के नजदीकी रिश्ते धीरे-धीरे खत्म होते जा रहे हैं। हमारे पास इतना समय नहीं हे कि हम अपने रिश्तेदारों से मिल सकें। ऎसे में हमारे बच्चो रिश्तों की अहमियत क्या समझेंगे। उन्हें तो लगता है, बस यही हमारा परिवार है। बच्चों का कोमल मन तो वही सीखता है, जो वे देखते हैं।
दिखावा
आज जमाना दिखावे का हो गया है। इसी दिखावे के कारण सारे रिश्ते, परंपराएं एक तरफ हो गई हैं। आज की लाइफस्टाइल हाईटैक हो गया है। अगर फलां रिश्तेदार के पास गाडी है और हमारे पास नहीं, तो कैसे भी कर के हमारी कोशिश होती है कि हम गाडी खरीद लें ताकि हम भी गाडी वाले कहलाएं। अभिभावकों के ऎसे आचरण का प्रभाव बच्चों पर काफी पडता है। वे भी बडों की नकल करते हैं और दूसरे बच्चों से कंपीटिशन करते हैं। जहां रिश्तों में कंपीटिशन और दिखावा आ जाता है वहां रिश्तों की स्वाभाविकता खत्म हो जाती है।
मैं और मेरे:
आज मैं और मेरे की भावना इतनी प्रगल हो गई है कि व्यक्ति को सिर्फ अपनी पत्नी और बच्चे ही दिखाई देते हैं। दूसरे रिश्तों को वे उन के बाद ही स्थान देते हैं। मैं और मेरे की इस भावना के चलते बच्चे भी इसे अपना लेते हैं और फिर उन्हें सिर्फ खुद से मतलब होता है। बच्चा मां-बाप से ही सीखता है कि उस का परिवार है बाकी लोग दूसरे लोग हैं। मैं और अपने की इसी भावना ने आज रिश्तेनातों में और भी खटास पैदा कर दी है। ऎसे में बच्चे रिश्तों की अहमियत को क्या समझेंगे। हम जैसा बोएंगे वैसा ही तो काटेंगे। आधुनिकता की अंधी दौड में हमें रिश्तों के महत्व को बिलकुल नहीं भूलना चाहिए। हमें अपने बच्चों को पारिवारिक परंपराओं और रिश्तों के महत्व को जरूर समझाना चाहिए। बच्चों को यह जानना बहुत जरूरी है कि चाचा-चाची,दादा-दादी,नाना-नानी से उन का क्या रिश्ता है।
समझाएं रिश्तों का महत्व:
अपने रिश्तेदारों का खुले दिल से स्वागत करें ताकि आप के बच्चे भी रिश्ते के महत्व को समझें। महीने में 1 दिन निकालें, उस दिन बच्चों की किसी रिश्तेदार से मिलाने ले जाएं,उन्हें बताएं कि वे उन के क्या लगते हैं। हफ्ते मे 1 दिन बाहर रहने वाले रिश्तेदारों से फोन पर बातें करें और बच्चों से भी करवाएं। कभी बच्चों के सामने अपने रिश्तेदारों की शिकायत न करें। इससे बच्चों के मन में गलत भावनाएं पैदा होती हैं। बच्चों के सामने रिश्तेदारों के स्टेटस की बात बिलकुल न करें। ऎसा बिलकुल न कहें कि फलां रिश्तेदार हमारे बराबर का नहीं है वगैरह।

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