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सर्दियों के दिनों में इन स्थानों पर प्रकृति अपनी बाहें फैलाकर करती है स्वागत

By: Team Aapkisaheli | Posted: 20 Dec, 2022

सर्दियों के दिनों में इन स्थानों पर प्रकृति अपनी बाहें फैलाकर करती है स्वागतसर्दियों के दिनों में इन स्थानों पर प्रकृति अपनी बाहें फैलाकर करती है स्वागत
सर्दियों के दिनों में इन स्थानों पर प्रकृति अपनी बाहें फैलाकर करती है स्वागत
जीरो गांव, अरुणाचल प्रदेश
जीरो एक सुरम्य शहर है, जो अरुणाचल प्रदेश की राजधानी ईटानगर से 115 किमी दूर स्थित है। इस कस्बे की सुंदरता ने बहुतों का ध्यान आकर्षित किया है, जिसके कारण इसे यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल के रूप में सूचीबद्ध किया गया है। समुद्र तल से 1500 मीटर की ऊँचाई पर स्थित, जीरो में पहाडिय़ाँ हैं जो बांस और देवदार के पेड़ों से धान के खेतों से घिरी हुई हैं। यह शहर एक बहुत ही दोस्ताना आदिवासी समूह का घर है, जिसे अपातानी जनजाति के नाम से जाना जाता है। अपातानी जनजाति के बारे में एक अनोखा तथ्य यह है कि इस जनजाति की महिलाएँ चेहरे पर टैटू बनवाने की प्रथा का अभ्यास करती थीं ! ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि उनका मानना था कि अपतानी जनजाति की महिलाएँ इतनी सुंदर होती हैं कि उन्हें अपने चेहरे पर टैटू बनवाना पड़ता है ताकि अन्य जनजातियों के पुरुष उन्हें चुरा न सकें!

जीरो घूमने का सबसे अच्छा समय
ज़ीरो घूमने का सबसे अच्छा समय गर्मियों के दौरान जीरो का शांत वातावरण इसे छुट्टियों के लिए एक पसंदीदा जगह बनाता है। अप्रैल से जून के गर्मियों के महीनों के अलावा, जीरो साल भर अपेक्षाकृत सुखद रहता है। हालाँकि, सितंबर का महीना यात्रा करने का है यदि आप हर साल होने वाले जीरो म्यूजिक फेस्टिवल में भाग लेना चाहते हैं।


कैसे पहुंचा जाये
अरुणाचल प्रदेश में जीरो हवाई अड्डे पर पहुंचने के बाद जीरो गांव के लिए बस लें।

माणा गांव, उत्तराखंड
उत्तराखंड में आप आज तक एक से एक बढक़र खूबसूरत जगहों पर घूमे होंगे, लेकिन कभी आपने ऐसी जगह को एक्सप्लोर किया है, जहां से सीधा स्वर्ग का रास्ता दिखता हो या फिर खूबसूरत नजारा आपको मंत्रमुग्ध कर देता हो? अगर नहीं, तो चलिए आज हम आपको भारत के उस आखिरी गांव माणा के बारे में जानकारी देते हैं, जिसे देखने के लिए न केवल देसी पर्यटक बल्कि विदेशी पर्यटकों को भी सबसे ज्यादा देखा जाता है।

इस गांव के आसपास कई देखने लायक जगह मौजूद हैं। यहां सरस्वती और अलकनंदा नदियों का भी संगम देखने को मिलता है। साथ ही यहां कई प्राचीन मंदिर और गुफाएं भी हैं, जिन्हें देखने के लिए लोगों की भीड़ रहती है। गांव की ऊंचाई समुद्र तल से 18,000 फुट ऊंची है, जहां से वादियों की खूबसूरती देखने लायक है। बद्रीनाथ से तीन किमी की दूरी पर बसे इस गांव की सडक़ें पहले कच्ची थी, जिस वजह से यहां लोगों को जाने में परेशानी होती थी, लेकिन अब सरकार ने यहां पक्की सडक़ों की सुविधा करवा दी है। अब पर्यटक यहां आसानी से जा सकते हैं।

बद्रीनाथ दर्शन करने वाले लोग आखिरी गांव माणा भी घूमने जरूर आते हैं। यहां ठंड भी अच्छी खासी देखने को मिलती है। बर्फ पडऩे की वजह से ये जगह बर्फ से ढकी रहती है, जिस वजह से यहां के स्थानीय लोग सर्दी शुरू होने से पहले नीचे स्थित चमोली जिले में चले जाते हैं।
इस गांव में आने वाले लोग भीमपुल भी जरूर जाते हैं, ऐसा कहा जाता है कि पांडवों ने स्वर्ग जाने के लिए इसी मार्ग को चुना था। यहां दो पहाडिय़ां हैं, जिसके बीच में एक बड़ी खाई भी है, पांडवों के समय में इसे पार करना बेहद मुश्किल भी था। उस समय भीम ने यहां दो बड़ी-बड़ी शिलाएं डालकर पुल बनाया था। आज भी लोग इसे स्वर्ग जाने का रास्तद्म समझकर इस रास्ते का इस्तेमाल करते हैं।

माणा में एक चाय की दुकान भी है, जिसके बोर्ड पर भारत की आखिरी चाय की दुकान लिखा हुआ है। दूर-दूर से आने वाले लोग इस दुकान के सामने बड़े शौक से खड़े होकर फोटो खिचवाते हैं। इस गांव के आगे कोई रास्ता नहीं है, बस आगे आपको भारतीय सेना देखने को मिल जाएगी।

कैसे पहुंचा जाये
आप देहरादून, हरिद्वार और ऋषिकेश से सीधे माणा गांव के लिए बस टिकट बुक कर सकते हैं।


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