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गोवर्धन पर्वत से जुडी रोचक कथा

By: Team Aapkisaheli | Posted: 18 Dec, 2017

गोवर्धन पर्वत से जुडी रोचक कथा
इस पर्वत को भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी छोटी उंगली पर उठा लिया था। श्रीगाह्यवर्धन पर्वत मथुरा से 22 किमी की दूरी पर स्थित है। गोवर्धन पर्वत को गिरीराज पर्वत भी कहा जाता है। लोगों का मानना है कि जब रामसेतुबंध का कार्य चल रहा था तो हनुमानजी इस पर्वत को उत्तराखण्ड से ला रहे थे।
लेकिन तभी देववाणी हुई की सेतुुबंध का कार्य पूणे हो गया है, तो यह सुनकर हनुमानजी इस पर्वत को ब्रज में स्थापित कर दक्षिण की ओर पुन: लौट गए। क्या कारण था गोवर्धन पर्वत उठाने का इस पर्वत को भगवान कृष्ण को भगवान ने अपनी चींटी अंगुली से उठा लिया था। कारण यह था कि मथुरा, गोकुल, वंदावन आदि केलोगों को यह अति जलवृद्धि से बचाना चाहते थे। जगरवासियों ने इस पर्वत के नीचे इक होकर अपनी जान बचाई। अति जलवृद्धि इंद्र ने कराई थी । लोग इंद्र से डरते थे और डर के मारे सभी इंद्र की पूजा करते थे, तो कृष्ण ने कहा थ कि आप डरना छोड दें मैं यहां हूँ ना।

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क्यों करते हैं परिक्रमा- सभी हिन्दूजनों के लिए इस पर्वत की परिक्रमा का महžव है। वल्लभ सम्प्रदाय के वैष्णवमार्गी लोग तो इसकी परिक्रमा अवश्य ही करते हैं क्योंकि वल्लभ संप्रदाय में भगवान कृष्ण के उस स्वरूप की आराधना की जाती है जिसमें उन्होंने बाएं हाथ से गोवर्धन पर्वत उठा रखा है और उनका दायां हाथ कमर पर है। इस पर्वत की परिक्रमा के लिए समूचे विश्व से कृष्णभक्त, वैष्णवजन और वल्लभसंप्रदाय के लोग आते हैं। यह पूरी परिक्रमा सात कोस अथा्रत लगभग 21 किलोमीटर है। परिक्रमा मार्ग में पडने वाले प्रमुख स्थल आन्यौर, जातिपुरा, मुखार्विद मंदिर, राधाकुं ड मानसी गंगा, पूंछरी का लौंठा, कुसुम सरोवर, दानघाटी इत्यादि हैं। गोवर्धन में सुरभि गाय, ऎरावत हाथी तथा एक शिला पर भगवान कृष्ण के चरण चिद्ध है।

परिक्रमा की शुरूआत वैष्णवजन जातिपुरा से और सामान्यजन मानसी गंगा से करते हैं और पुन: वही पहुंच जाते हैं। पूंछरी का लौठा में दर्शन करना आवश्यक माना गया है, क्योंकि यहां आने से इस बात की पुष्टि मानी जाती है कि आप यहां परिक्रमा करने आए है। यह अर्जी लगाने जैसा है। पूंछरी का लौठा क्षेत्र राजस्थान में आता है

वैष्णवजन मानते है कि गिरीराज पर्वत के ऊपर गोविंदजी का मंदिर है। कहते है कि भगवान कृष्ण यहां शयन करते हैं। उक्त मंदिर में उनका शयनकक्ष है। यहीं मंदिर में स्थित गुफा है जिसके बारे में कहा जाता है कि यह राजस्थान स्थित श्रीनाथद्वारा तक जाती है।

गोवर्धन की परिक्रमा का पौराणिक महव है। प्रत्येक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी से पूर्णिमा तक लाखों भक्त यहां की सप्तकोसी परिक्रमा करते हैं।

इस पर्वत की स्थिति क्या सचमुच ही पिछले पांच हजार वर्ष से यह स्थ्त ही रोज एक मुnी खत्म हो रहा है या कि शहरी करण और मौसम की मार ने इसे लगभग खत्म कर दिया। आज यह कछुए की पीड जैसा भर रह गया है।

हालांकि स्थानीय सरकार ने इसके चारों और तारबंदी कर रखी है फिर भी 21 किलोमीटर के अण्डाकार इस पर्वत को देखने पर ऎसा लगता हैकि मानो बडे-बडे पत्थरों के बीच भूरी मिट्टी और कुछ घास जबरन भर दी गई हो। छोटी-मोटी झाडियां भी दिखाई देती है।

पर्वत को चारो तरफ से गोवर्धन शहर और कुछ गांवों ने घेर रखा है। ध्यान से देखने पर पता चलता है कि पूरा शहर ही पर्वत पर बसा है, जिसमें दो हिस्से छूट गए है उसे ही गिरिराज पर्वत कहा जाता है। इसके पहले हिस्से में जातिपुरा, मुखार्विद मंदिर, पंूछरी का लौठा प्रमुख स्थान है तो दूसरे हिस्से में राधाकुंड, गोविंद, कुंड और मानसी गंगा प्रमुख स्थान है।

बीच में शहर की मुख्य सडक है उस सडक पर एक भव्य मंदिर है, उस मंदिर में पर्वत सिल्ला के दर्शन करने के बाद मंदिर के सामने के रास्ते से यात्रा प्रारम्भ होती है और पुन: उसी मंदिर के पास आकर उसके पास पीछे के रास्ते से जाकर मानसी गंगा पर यात्रा समाप्त होती है।

गोवर्धन पर्वत को गिरीराज पर्वत भी कहा जाता है। पांच हजार साल पहले यह गोवर्धन पर्वत 30 हजार मीटर ऊंचा हुआ करता था और अब शायद 30 मीटर ही रह गया है। पुलस्त्य ऋषि के शाप के कारण यह पर्वत एक मुटी रोज कम होता जा रहा है।

मानसी गंगा के थोडा आगे चलो फिर से शहर की वही मुख्य सडक दिखाई देती है। कुछ समझ में नहीं आता कि गोवर्धन के दोनों ओर सडक है या कि सडक के दोनों और गोवर्धनक् ऎसा लगता है कि सडक, आबादी और शासन की लापरवाही ने खत्म कर दिया है गोवर्धन पर्वत को ।

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