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अलग-अलग हैं चिंता और डिप्रेशन, एक नजर इनके अन्तर पर

By: Team Aapkisaheli | Posted: 27 Nov, 2021

अलग-अलग हैं चिंता और डिप्रेशन, एक नजर इनके अन्तर पर
अलग-अलग हैं चिंता और डिप्रेशन, एक नजर इनके अन्तर पर
वर्तमान में हर दूसरे शख्स से यह सुनाई देता है कि वह चिंता का शिकार है या फिर वह डिप्रेशन का शिकार हो गया है। अधिकांश लोग चिंता और डिप्रेशन (अवसाद) को एक ही मानते हैं। जबकि यह दोनों अलग-अलग हैं। चिंता कोई बीमारी नहीं है। यह एक भावना है, जिसमें आप खुद को मानसिक और भावनात्मक रूप से बहुत ही दबा हुआ महसूस करते हैं, यह किसी भी स्थिति या कारण की वजह से हो सकती है। लोग कई बार उम्मीदों के पूरे न होने या किसी से कोई अपेक्षा पूरी न होने या किसी अपने से दूर जाने के कारण भी चिंता करने लगते हैं। आज की रोजमर्रा की जिंदगी में तनाव, टेंशन, चिंता, फ्रिक जैसे शब्द आम हो गए हैं क्योंकि, आजकल हर कोई इन समस्याओं से घिरा हुआ खुद को पाता है।

डिप्रेशन (अवसाद) यह एक ऐसा तनाव है, जिससे व्यक्ति लंबे समय से ग्रस्त होता है। इसमें व्यक्ति खुद को बहुत ही डिप्रेस्ड और दबा हुआ महसूस करता है। यह किसी भी पूर्व समय में घटित घटनाओं की वजह से होता है। जिस घर में कोई व्यक्ति या महिला डिप्रेशन की बीमारी से ग्रस्त होता है वहाँ कभी सुकून चैन महसूस नहीं होता है। एक व्यक्ति के पीछे पूरा परिवार उसे भुगतता है। चिंता और अवसाद (डिप्रेशन) दोनों ही मानसिक पीड़ा है और इनके लक्षण भी लगभग एक जैसे होते हैं। हालांकि, यह दोनों ही एक दूसरे से बहुत अलग हैं।

आइए डालते हैं एक नजर डिप्रेशन और चिंता पर...

1. चिंता हमेशा वर्तमान कारणों को लेकर होती है। वर्तमान में यदि आप किसी विषय को लेकर परेशान हैं तो यह आपकी चिंता का कारण हो सकता है जबकि डिप्रेशन अर्थात् अवसाद पूर्व में घटित हो चुके कारणों से होता है। अवसाद में व्यक्ति तभी पड़ता है जब वह बार-बार अपने अतीत में झांकता है जहाँ उसे कुछ न कुछ ऐसा दिखाई देता है जो उसके मनमुताबिक नहीं होता है, इसी के चलते वह डिप्रेस्ड हो जाता है।

2. चिंता वर्तमान में चल रही समस्या का समाधान होते ही दूर हो जाती है, जबकि अवसाद (डिप्रेशन) लंबे समय तक रहता है। बहुत कम लोग ऐसे होते हैं जो अवसाद से उभर पाते हैं। अवसाद से उभरने का एक ही तरीका है वह यह कि यदि आप इस बीमारी से ग्रस्त हैं तो आप स्वयं को पिछली बातों से उभारते हुए स्वयं को व्यस्त रखने का प्रयास करें। साथ ही व्यक्तियों की कही गई बातों पर बिलकुल गौर न करें।

3. यदि चिंता का इलाज नहीं किया जाता, तो व्यक्ति तनावग्रस्त और चिंता विकार जैसी दिक्कतों का सामना करता है। वहीं दूसरी ओर डिप्रेशन उर्फ अवसाद का इलाज नहीं किया गया, तो व्यक्ति के भीतर खुद को हानि पहुंचाने के विचार आने लगते हैं। हालांकि ऐसा बहुत कम होता है। ज्यादातर ऐसे मामलों में व्यक्ति अपने परिजनों से किसी न किसी बात पर उलझता है। वह यह सोचता है कि जिस तरह से मैं परेशान हो रहा हूं वैसे ही दूसरा भी हो।

4. चिंता या तनाव के कारण एड्रेनालाइन का स्तर बढ़ जाता है लेकिन, अवसाद में मस्तिष्क में थकान बढ़ जाती है। चिंता यदि कम हो, तो वो लाभदायक भी साबित हो सकती है लेकिन, डिप्रेशन से सिर्फ नुकसान ही होता है। चिंता के कारण स्पष्ट होते हैं लेकिन, अवसाद का कोई भी कारण हो सकता है।

5. चिंता को समाज सहज नजरिए से देखता है लेकिन, अवसाद को सामाजिक रूप से अपमानजनक माना जाता है। लगातार चिंता करते रहने से इंसान एंजाइटी का भी शिकार हो जाता है। एंजाइटी का शिकार हो चुका इंसान बहुत ज्यादा चिंता करता है। अगर कोई शख्स कम से कम 6 महीनों के समय में अधिकांश दिन, या तो अपने स्वास्थ्य, काम, सामाजिक बातचीत, रोजमर्रा की परिस्थितियों के बारे हद से ज्यादा सोचता है और परेशान रहता है तो यह एक बहुत ही गंभीर लक्षण है कि वो चिंताग्रस्त है।

#गोरापन पल भर में...अब आपके हाथों में


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