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आपका बच्चा बने सब की आंखों का तारा

By: Team Aapkisaheli | Posted: 02 May, 2012

आपका बच्चा बने सब की आंखों का तारा
आजकल पेरेंटिंग भी एक चैलेंज है। आज के बच्चो स्मार्ट होते हैं,यदि उन्हें समझदारी से हैंडल न किया गया तो उनके दिलो-दिमाग पर खराब असर हो सकता है। यदि आप चाहते हैं कि आपका बच्चाा अनुशासित,जिम्मेदार और सबकी आंखों का तारा बने और आप आदर्श पेरेंट कहलाएं तो ये ट्रिक्स आजमाएं- क हर बात में मीन-मेख न निकालें और न बात-बात पर उसे रोकें-टोकें। अगर उसे कुछ समझाना ही है तो उसके दोस्तों के सामने नहीं, अकेले में और प्यार से समझाएं, इससे बच्चाा आपकी बात भी समझ जाएगा और उसे बुरा भी नहीं लगेगा। क बच्चाा जब भी कोई अच्छा काम करे या उसे छोटी-सी उपलब्धि भी मिले तो उसकी प्रशंसा करना न भूलें। उसे शाबाशी दें। पैरेंट्स की प्रशंसा बच्चो के अंदर नया आत्मविश्वास जगाती है और भविष्य में वो और भी बेहतर परफॉर्म करता है।
क बच्चो को बचपन से ही सॉरी और थैंक्यू कहना सिखाएं। घर आए मेहमानों या बडे-बुजुर्गो को यथोचित सम्मान देना सिखाएं। ध्यान रखें कि बच्चाों में सही आचार-व्यवहार के बीज बचपन में ही बोए जा सकते हैं। साथ ही स्वयं भी सही आचार-व्यवहार अपनाएं। जब भी वो आपका कोई काम करे, उसे थैंक्यू बोलें। गलती होने पर सॉरी कहना न भूलें। इस तरह आपको देखकर वो खुद भी इस तरह का व्यवहार करना सीखेगा।
  • क कभी-कभी बच्चो की जिद भी मान लें। उसकी जिद को उसका स्वभाव न समझें। जिद तो बाल सुलभ है। अगर आप थोडी समझदारी से उसके इस स्वभाव को हैंडल करें तो धीरे-धीरे उसकी यह आदत स्वत: ही कम हो जाएगी।
  • क बच्चाों को भी बोलने का मौका दें और उनकी बातों को ध्यान से सुनें भी। आमतौर पर भारतीय परिवारों में पेरेंट्स बोलते हैं और बच्चाों को उनकी बात सुननी पडती है। लेकिन बाल मनोवैज्ञानिकों के अनुसार यदि बच्चाों को अपनी बात कहने का मौका दिया जाए और उनकी बातों को ध्यान से सुना जाए तो उन्हें दिशा देना आसान हो जाता है।
  • क आजकल पेरेंट्स व बच्चाों के बीच रिश्ते फ्रेंडली ज्यादा हो गए हैं, जो अच्छा भी है। लेकिन बच्चाों के साथ दोस्ताना व्यवहार करते समय एक सीमा जरूर निर्धारित करें। अपना पेरेंटल अधिकार बनाए रखें और अनुशासन में रखकर बच्चो को जरूरी दिशा निर्देश दें।
  • क दूसरे बच्चाों से अपने बच्चाों की तुलना न करें। इससे बच्चाों में सुपीरियोरिटी या इनफीरियोरिटी कॉम्पलेक्स आने लगता है। स्कूल में ज्यादा अंक लाने वाले बच्चाों से उनकी तुलना न करें। ध्यान रखें, हर बच्चा दूसरे से अलग होता है। उसके अच्छे गुणों को उभारना हर पैरेंट की जिम्मेदारी है।
  •   बच्चो में बचपन से ही शेयरिंग की आदत डालें। उसे सिखाएं कि उसे अपने खिलौने या चॉकलेट अपने दोस्तों या भाई-बहनों के साथ मिल-बांटकर खेलना-खाना चाहिए। इस तरह वो बचपन से ही सोशल होना सीखेगा। क अपने बच्चाों के बीच ईष्र्या द्वेष की भावना न पनपने दें, न ही ओवर रिएक्ट करें। बच्चाों के आपसी लडाई-झगडे उनके विकास का स्वाभाविक अंग हैं।
  •   बच्चाों को जिम्मेदार और अनुशासित बनाना है तो पहले स्वयं अनुशासित व जिम्मेदार बनें। ध्यान रखें,आपकी लापरवाही बच्चाों को भी लापरवाह बना सकती है और आपकी देखादेखी वह भी मनमानी पर उतारू हो सकता है।
  • बच्चाों को अपने पारिवारिक या आपसी झग़डों का हिस्सा न बनाएं और न ही उन्हें मोहरे के तौर पर इस्तेमाल करें, उनके सामने पारिवारिक पॉलिटिक्स पर चर्चा करने से भी बचें। इससे बच्चाों के दिलोदिमाग पर बुरा असर होता है।
  •  बच्चाों से बहुत अधिक अपेक्षाएं न करें। अक्सर पेरेंट्स अपनी अधूरी महत्वकांक्षा अपने बच्चाों के जरिए पूरी करना चाहते हैं और इसके लिए उन पर दबाव डालते हैं। ऎसे में अगर बच्चाा पेरेंट्स की अपेक्षाओं पर खरा न उतर पाए तो कुंठाग्रस्त हो जाता है व उसका स्वाभाविक विकास रूक जाता है।
  • बच्चो को अनुशासन सिखाएं, लेकिन उन्हें अनुशासन के दायरे में बांधकर न रखें। हम जैसा कहते हैं, वैसा ही करो या तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई ऎसा करने की, वाली भाषा न बोलें। इस तरह बच्चो के व्यक्तित्व का समुचित विकास नहीं हो पाता।
  •  बच्चाों के सामने गाली-गलौच या अपशब्द वाली भाषा का प्रयोग न करें वरना बच्चा भी वैसी ही भाषा बोलेगा और न बच्चाों के सामने अनावश्यक झूठ बोलें।
  • बच्चाों के लिए वक्त निकालें। कहीं ऎसा न हो कि आपने बच्चो के लिए नियम-कायदे बना दिए,उसकी जरूरत की सारी चीजें मुहैया करा दीं लेकिन खुद को इतना व्यस्त कर लिया कि बच्चाों के लिए समय ही नहीं बचता आपके पास। ध्यान रखें, बच्चाों के विकास और दिनचर्या में शामिल होना भी बच्चाों के संपूर्ण विकास का हिस्सा है। क कोई भी फंक्शन या फेमिली गेट-टुगेदर हो तो बच्चाों को साथ जरूर ले जाएं। इससे वो सोशल बनता है। पारिवारिक व सामाजिक परम्पराओं की उपेक्षा न करें। हमारी परंपराओं से बच्चो बहुत कुछ सीखते हैं।
  • बच्चो के मन में कोई जिज्ञासा या सवाल हो तो उसे डांटकर चुप करने की कोशिश न करें। समझदारीपूर्वक उसके सवालों का जवाब दें और जिज्ञासाओं को शांत करें ताकि वह भ्रमित न हो।
  •  कई पेरेंट्स बच्चाों को इतनी छूट दे देते हैं कि वे लापरवाह बन जाते हैं। किसी तरह की सीमाएं या अंकुश न लगाने से भी बच्चाों के बिगडने का डर रहता है। खिलौना हो या पुस्तक-स्वतंत्रता हो या जिम्मेदारी-न उसे समय से पहले दें, न जरूरत से ज्यादा, ताकि वो चीजों व भावनाओं की कद्र करना जाने।
  •  बच्चो को आत्मनिर्भर बनना सिखाएं। कई पेरेंट्स अत्यधिक लाड में आकर छोटे-छोटे काम भी बच्चो को नहीं करने देते और यही बच्चो की आदत बन जाती है। लेकिन आप ऎसा न करें। उसे अपने बिखरे खिलौने खुद समेटने के लिए कहें। अगर उसके हाथ से कोई चीज गिर जाए तो उसे ही साफ करने दें। ऎसा करने से वो बचपन से ही जिम्मेदार व आत्मनिर्भर बनेगा।

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