सुहागिन के लिए मंगलसूत्र क्यों. .
By: Team Aapkisaheli | Posted: 16 Jun, 2012
विवाह के अवसर पर वधू के गले में वर मंगलसूत्र पहनाता है। अनेक दक्षिण राज्यों में तो मंगलसूत्र पहनाए बिना विवाह की रस्म अधूरी मानी जाती है। वहां सप्तपदी से भी अधिक मंगलसूत्र का महत्व है। मंगलसूत्र में काले रंग के मोती की लडियों, मोर एवं लॉकेट की उपस्थिति अनिवार्य मानी गई है। इसके पीछे यह मान्यता है कि लॉकेट अमंगल की संभावनाओं से स्त्री के सुहाग की रक्षा करता है जबकि मोर पति के प्रति श्रद्धा और प्रेम का प्रतीक है।
काले रंग के मोती बुरी नजर से बचाते हैं तथा शारीरिक ऊर्जा का क्षय होने से रोकते हैं। ऎसा प्रतीत होता है कि मंगली दोष की निवृत्ति के लिए इसे धारण करने का विधान प्रचलित हुआ होगा। विवाह सिद्धि के लिए शास्त्र सम्मत उपाय लडका-लडकी के विवाह सिद्धि के लिए सबसे पहले श्री एकनाथ महाराज द्वारा रचित श्री रूक्मिणी स्वयंवर नामक ग्रंथ बाजार से खरीदकर ले आएं। उसके बाद गणेशजी की मूर्ति के सामने प्रथम दिन संकल्प करें। संकल्प में समय, स्थान, नाम एंव गोत्र आदि के साथ ही पूजन देवता के नाम, पूजन विधि और कामना आदि की चर्चा अवश्य करें।
यदि संभव हो तो अपने कुलपुरोहित को निमंत्रित करके उनसे संकल्प करवा लें। पुरोहित न मिलने पर आचमन तथा प्राणायाम करके हाथ में अक्षत लेकर ऊंची आवाज में संकल्प करें, फिर थाली में अक्षत छोड दें। बाद में चौरंग या पाटे पर एक नारियल अथवा सुपारी रखकर सांगोपांग गणपति पूजन करें। तत्पश्चात नारियल एवं सुपारी पर अक्षत चढाकर गणेश विसर्जन करें। इसके बाद श्री रूक्मणी स्वयंवर गंरथ का वाचन प्रारंभ करें। पहले दिन संकल्प एवं गणेश पूजन करने के बाद प्रतिदिन यह कर्म करना जरूरी नहीं है। एकनाथ कृत श्री रूक्मिणी स्वयंवर का पाठ निम्नानुसार क्रम से होना चाहिए-
प्रथम दिन- अध्याय क्रमांक 7 से 1,2 से 7
द्वितीय दिन-अध्याय क्रमांक 7 से 3,4 से 7
तृतीय दिन- अध्याय क्रमांक 7 से 5,6 से 7
चतुर्थ दिन- अध्याय क्रमांक 7 से 8,8 से 7
पंचम दिन- अध्याय क्रमांक 7-9-10-7
षष्टम दिन- अध्याय क्रमांक 7-11-12-7
सप्तम दिन- अध्याय क्रमांक 7-13-14-7
अष्टम दिन- अध्याय क्रमांक 7-15-16-7
नवम दिन- अध्याय क्रमांक 7-17-18-7
उपर्युक्त पद्धति से नौ दिन पठन करने का एक पारायण होता है। इस तरह के अठारह पारायण होने चाहिए। यदि बीच में अशौच या मासिकधर्म आ जाए तो वह समाप्त होने पर बाकी पारायण करें। खंडित पारायण पुन: करने की आवश्यकता नहीं है। बहुतांश 18 पारायण समाप्ति के पूर्व ही विवाह निश्चित हो जाता है। विवाह निश्चित होने पर प्रतिदिन एक या तीन दिनों के पारायण करें। असंभव होने पर विवाह के पpात पारायण पूरे क रें। यदि कम दिनों में पारायण पूर्ण करने हों तो प्रतिदिन 7-1-2-7,7-3-4-7 आदि पारायण करें। तीन दिनों का पारायण एक ही समय,एक ही बैठक में तथा एक ही दिन करें। दो या तीन दिनों का पाठ करते समय सुबह, दोपहर तथा शाम में परिवर्तन किया जा सकता है। पारायण काल में सात्विक आहार लें। पारायण पूर्ण होने के बाद भगवान को अभिषेक तथा दंपति भोजन कराएं। बाद में विवाह निश्चित होने तक व्रत का पारायण करते रहें या सिर्फ 7वां अध्याय पढते रहें। विवाह होने के बाद पारायण करने की कोई आवश्यकता नहीं है। यदि पति-पत्नी में वाद विवाद होकर बात तलाक तक पहुंच जाए तो दंपति में से एक या दोनों उपर्युक्त पारायण करें। इससे उनका पुनर्मिलन अवश्य हो जाएगा। ऎसे समय संकल्प में साध्य बदल जाएगा। इस अनुष्ठान में पारायण वाचन हमेशा मध्यम स्वर में करें। मन ही मन इसका वाचन न करें।