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शादी की पाठशाला

By: Team Aapkisaheli | Posted: 13 Jan, 2012

शादी की पाठशाला
कहते हैं ना कि लडकियां शादी के बाद बहुत परिप` हो जाती हैं। दरअसल शादी वह पाठशाला है, जो उनको बहुत कुछ सिखाती है। जरा सोचिए शादी से पहले का एकदम बेफिक्र, मस्त और जिम्मेदारियों से मुक्त जीवन। यही मस्त, लापरवाह लडकी जब शादी के बंधन में बंधती है, तो धीरे-धीरे नए परिवेश के साथ तालमेल बिठाना सीखती है। शादी लडकियों की जिंदगी का बहुत अहम पडाव है, जिससे उनके मन की भावनाएं, इच्छाएं और ऎसी जरूरतें जो माता-पिता के घर में पूरी नहीं हो सकीं, जुडी होती है। अपनी अधूरी इच्छाएं वे ससुराल में पति के सहयोग से पूरी करना चाहती हैं। शादी मूलत: इस धारणा पर आधारित है कि अब मुझे बहुत से सुख मिलेंगे और मेरा जीवन बहुत खुशहाल हो जाएगा। लेकिन इस सबके लिए बहुत मेहनत और समर्पण की जरूरत होती है। ये उम्मीदें तब तक पूरी नहीं हो पाती हैं, जब तक वह खुद को उनके अनुसार ढाल नहीं लेती हैं। शादी उन्हें बहुत कुछ सिखाती है और सही मायनों में परिपक्व करती हैं। शादी के बाद ल़डकियां कब, कैसे, क्या सीखती हैं-
मिजाज पर काबू करना
शादी के पहले उनका मिजाज एकदम अलग होता है। वे अपने करिअर के बारे में ज्यादा सोचती और प्लानिंग करती है। उन्हें ज्यादा आजादी मिली होती है। लेकिन शादी के बाद उन्हें अपनी सोच, रवैए और व्यवहार में बदलाव लाना जरूरी हो जाता है। धीरे-धीरे वे समझ पाती हैं कि अब उनकी जिंदगी कई दूसरे लोगों के साथ जुड गयी है। वे इस बात की ओर ध्यान देना शुरू करती हैं कि उनके सास-ससुर और पति की क्या जरूरते हैं। उनका परिवार किस तरह का है। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार आजकल लडकियां ऎसे परिवार से आती हैं, जहां उनको कहीं आने-जाने, फैसला लेने, घूमने-फिरने की पूरी स्वतंत्रता होती है। शादी के बाद वे अपने आपको अचानक भिन्न माहौल में पाती हैं। ससुरालवाले कुछ माइनों में काफी रूढिवादी हो सकते हैं। यह फर्क बहू के गले नहीं उतरता है और काफी परेशानियां खडी हो जाती हैं, जबकि अपनी और परिवार की खुशहाली के लिए सामंजस्य बिठना बहुत जरूरी है। अगर अपने अंदर परिवर्तन नहीं लाया जाएगा और मैं-मैं-मैं का राग अलापा जाता रहेगा, तो कभी भी ससुराल से कोई मदद नहीं मिलेगी। ये बदलाव दोनों ओर से जरूरी होते हैं, पर नई बहू को ज्यादा एडजस्ट, ज्यादा समझौता करना होता है और परिवार के हिसाब से खुद को ढालना होता है, क्योंकि वह किसी के परिवार में शामिल हो रही है, इसलिए अपनी कोशिशों से उसको नए घर में अपनी जगह बनानी होती है।
खुद को बहू समझना
यदि वह ऎसे परिवार से आयी है, जहां उसे खूब खुलापन मिला है, पर ससुराल में सिर ढकना है, पैर छूने हैं, सुबह उठकर चाय बनानी है, तो वह सबसे पहले एक सीमा तय करती है कि उसको कहां, कितना सामंजस्य स्थापित करना है। उसको यह फर्क समझ में आता है कि ससुराल उसके मायके वाले परिवार से जुदा है। उसे अहसास होता है कि मायके जितनी आजादी यहां नहीं मिल सकती है। यहां मैं एक बेटी नहीं जिम्मेदार बहू हूं। बहू की पहचान घर से जु़ड जाती है। समझदार लडकियां जानती हैं कि यदि वे खुद को उस घर के हिसाब से नहीं ढालेंगी, अपनी ही चलाएंगी तो मुश्किल हो जाएगी। परिवार की खुशी के लिए अपने रवैये में तो वे परिवर्तन लाती ही हैं और यह समझती हैं कि इसी तरह मेरी मां ने भी खुद को बदला होगा और संबंधों को निभाया होगा।
मौजूदगी का अहसास कराएं
बहू परिवार का हिस्सा है, इस बात का अहसास जगाने के लिए किसी भी बहू के लिए यह बिलकुल जरूरी नहीं है कि वह पूरी तरह से अपनी इच्छाओं को त्याग दे, बल्कि अपनी मौजूदगी का गहराई से अहसास कराए। कभी-कभी ऎसा भी होता है कि लडके के माता-पिता एडजस्ट करने को बिलकुल तैयार नहीं होते हैं। ऎसे में पत्नी पति को ही समझा सकती है कि उसकी क्या जरूरतें हैं और पति अपनी पत्नी को परिवार में उसकी जगह दिलाए। अक्सर पति या बेटा अपनी पत्नी व माता-पिता के बीच फंस जाता है। उसको समझ नहीं आता कि पत्नी क्यों नहीं माता-पिता के अनुसार चलतीक् एक समझदार पत्नी जानती है कि यदि वह अपने सास-ससुर की बात-बात पर शिकायतें करेगी, तो पति माता-पिता के साथ-साथ पत्नी से भी दूर होने लगेगा। वह नकारात्मकता को लाए बिना अपनी सोच और धारणाओं से उनको रूबरू कराने की कोशिश करती है।
पहचान बनानी हैं
शादी के बाद यदि घरेलू महिला के रूप में रहना पडे, तो उनमें कुंठा आ जाती है, क्योंकि वे पढी-लिखी हैं। यदि वे अपनी रूचियों को बढाएं, तो पहचान खुदबखुद बन जाएगी। ऎसा नहीं है कि बहू सिर्फ परिवार का हिस्साभर है, बल्कि उसकी अपनी जिंदगी भी है। इस बात को वे किस तरह से रखती हैं, वह बहुत मायने रखता है। मसलन बोलने का लहजा क्या हैक् विनम्रता से बात कर रही हैं या ताने मार रही हैं। ठीक है कि उनकी अपनी रूचियां हैं, लेकिन नए परिवार का हिस्सा कैसे बन सकती हैं, इसके लिए भी प्रयासरत रहें। यदि वे आपसे खुश रहेंगे, तो आपका साथ देंगे। यदि वे खुश नहीं रहेंगे, तो सोचेंगे कि यह हर समय अपने ही बारे में सोचती है और खुद में कोई बदलाव नहीं लाती है। माहौल की भिन्नता के कारण पति-पत्नी में मेलमिलाप नहीं हो पा रहा है। वहां बडों की इ”ात करना व नैतिक मूल्य बहुत महत्व रखते हैं। वहीं पति एकदम मॉर्डन है और वो चाहता है कि उसकी वाइफ स्मार्ट हो। पत्नि अपना घर संभालना चाहती है, हाउसवाइफ की तरह रहना चाहती है। यहां पत्नी के लिए जरूरी है कि वह थोडा स्मार्ट हो और खुद को प्रजेंटेबल बनाए। पति के लिए समझना जरूरी है कि जो महिलाएं बहुत आजादी चाहती हैं, उनके साथ ज्यादा दिक्कत आ सकती है। दोनों समझें कि दोनों अलग परिवारों से, अलग माहौल और अलग मिजाजवाले लोगों के बीच से आए हैं। जब तक एक-दूसरे के परिवारों की पृष्ठभूमि नहीं समझेंगे, तब तक दूसरे के माहौल में रचबस नहीं पाएंगे, क्योंकि हर कोई अपने में बदलाव लाने का कारण जानना चाहता है।
जिम्मेदारियां बांटें
कई बार बहू पर सारी जिम्मेदारी डाल दी जाती है। ऎसा उन परिवारों में होता है, जहां मां की मृत्यु के बाद घर संभालने के लिए बहू लायी जाती है। यह बात बहू पर भी निर्भर करती है कि वह जिम्मेदारियों का सारा बोझ ढोने के बजाय उनका बंटवारा करे। घर में किसी बडे व्यक्ति या पति से मदद ले कर धीरे-धीरे जिम्मेदारियां उठाना सीखे। जिम्मेदारियां उठाने वाले इंसान को सराहा जाना जरूरी है। इससे उसको सहारा मिलता है और उसका हौसला बुलंद होता है। ऎसे परिवार में जहां बहू को सराहना नहीं मिलती और जरा सी गलती होने पर आसमान सिर पर उठा लिया जाता है, वहां काम करने वाले का मन हटता जाता है। ऎसा होने पर बहू परिवार में जिससे उसकी निकटता बन गयी हो, उसके माध्यम से या पति के माध्यम से जो बाकी सदस्यों से बरताव चाहती है, उन तक बात को पहुंचाए। पति से खुल कर बोले कि मैं इतना प्रयास करती हूं, आप दो शब्द सराहना के बोलेंगे, तो मुझे अच्छा लगेगा। मन की बात सीधे तरीके से बोलना बहुत जरूरी है। दूसरों की जो बातें दिल को लगती हैं, उन्हें खुलकर बोल दें। अपनी बात कहना भी जरूरी होता है, पर हर समय जवाब-तलब के लिए कमर कसे रहने में भी कोई समझदारी नहीं है, क्योंकि तब लोग आपको गंभीरता से नहीं लेते हैं। आपकी बात का वजन कम होता है। अपनी बात इस तरह रखें कि उनको अपनी गलती का अहसास होने के साथ लगे कि आप गलत बात पर चुप रहने वाली नहीं है। नए जमाने की लडकी से इतने खुलेपन की उम्मीद तो नए जमाने के सास-ससुर व परिवार वाले रखते ही हैं।

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