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किस काम का स्ट्रेट फॉरवर्ड होना

By: Team Aapkisaheli | Posted: 09 Oct, 2012

किस काम का स्ट्रेट फॉरवर्ड होना
आज की लाइफस्टाइल में जहां एक-दूसरे को मान-सम्मान देने की परंपरा कम होती जा रही है, वहीं शब्दों को नाप-तौल कर बोलने का भी रिवाज नहीं रहा। अगर इसका विरोध दर्ज कराया जाए तो जवाब मिलता है, हम तो भई स्ट्रेट फॉरवर्ड हैं, जो कहते हैं मुंह पर ही कह देते हैं आप कह तो देती हैं, लेकिन क्या आपने कभी यह सोचा है कि आपकी कथित सीधी-खरी बात आपको अपने नजदीकी रिश्तों से कितना दूर कर रही है अगर कोई आपसे ऎसे बोलेगा तो क्या आपको बुरा नहीं लगेगा। लेकिन जिन महिलाओं को शब्दों के बाण फेंकने की आदत होती है, वे धीरे-धीरे अपनों से कटती जाती हैं। ऊपरी दिखावे में बेशक सम्मान मिल जाए, लेकिन दिल से प्यार उन्हीं को मिलता है जो कटाक्ष करने से बचती हैं और अपनी बात को सलीके से कहती हैं। दरअसल, हम बाहर से अच्छे बने रहते हैं। लोग हमारे व्यवहार की तारीफ करते हैं। जो हमारे कुछ नहीं लगते, उनकी सोच हमारे लिए मायने रखती है, लेकिन जो हमारे अपने होते हैं हम उन्हें ही हल्के में लेते हैं। अपनी खीज, झल्लाहट और हताशा का शिकार हम अपनों को ही बना लेते हैं। जबकि वे हकदार होते हैं हमारे प्यार, समर्पण और सम्मान के।
पति-पत्नी के बीच कटाक्ष
पति-पत्नी के बीच टोंट रोजमर्रा की बात है, लेकिन इसे तकरार का नाम देकर हल्का बना दिया जाता है तुमने ये कैसी चाय बनाई है इतनी बडी हो गई हो, खाना बनाना भी नहीं आता, दिन भर घर में सोती रहती हो, तुम्हारी गलत आदतें ही सीख रहे हैं बच्चे, तुम्हें तो सिर्फ मायका सुहाता है, मेरे घर वालों से क्या लेना देना, चुप रहो, तुम जो कहती हो वो कभी भी नहीं होता, आदि आदि। पति के ये कटाक्ष आम हैं, मगर पत्नी भी कहां बाज आती है, ऑफिस में ऎश करते हो और क्या, तुम्हें तो पैसा उडाने की लगी रहती है, गलत आदतें पाल रखी हैं तुमने, तुम्हें क्या, गुलछर्रे उडाओ जैसे ताने देने में कोई कंजूसी नहीं करती। लडाई बढती है तो हदें पार हो जाती हैं।
अपनों को दुख ना दें
अकेले में सोचें आपने कैसे शब्द इस्तेमाल किए हैं। रिश्ते खुशी देते हैं, इन्हें सहेजना भी आना चाहिए। कटाक्ष करने वाले कारणों को न ढूंढें। जो देंगे, वही हमें प्राप्त होगा। प्यार के बदले प्यार और नफरत के बदले नफरत। अपनों की गलती माफ भी की जा सकती है। करीबी रिश्ते की अहमियत समझें और उसकी कद्र करें। कभी-कभी ऎसे कटाक्ष जिंदगीभर के नश्तर बन जाते हैं। बोलने वाला अपने दिल की भडास शब्दों के जरिए निकाल देता है और यह सोचता भी नहीं कि उसने जो विष उगला है उसका प्रभाव ताउम्र रहने वाला है कई बार मजाक या शिकायत भरे लहजे में कही गई बात भी घाव बना जाती है और जब ये घाव अपनों के दिए हों तो पीडा और भी गहरी हो जाती है।

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