सजदे किए हैं लाखों, लाखों दुआएं मांगी पाएं है मैंने फिर तुझे
By: Team Aapkisaheli | Posted: 01 Nov, 2012
भारतीय पत्नी की सारी दुनिया, उसके पति से शुरू होती है उन्हीं पर समाप्त होती है। शायद चांद को इसीलिए इसका प्रतीक माना गया होगा क्योंकि चांद भी धरती के कक्षा में जिस तन्मयता, प्यार समर्पण से वो धरती के इर्द-गिर्द रहता है, हमारी भारतीय औरतें उसी प्रतीक को अपना लेती हैं। यह पावन व्रत किसी परंपरा के आधार पर न होकर, युगल के अपने ताल-मेल पर हो तो बेहतर है। जहां पत्नी इस कामना के साथ दिन भर निर्जला रहकर रात को चांद देखकर अपने चांद के शाश्वत जीवन की कामना करती है, वह कामना सच्चे दिल से शाश्वत प्रेम से परिपूर्ण हो, न कि सिर्फ इसलिए हो की ऎसी परंपरा है।
यह तभी संभव होगा जब युगल का व्यक्तिगत जीवन परंपरा के आधार पर न जाकर, प्रेम के आधार पर हो, शादी सिर्फ एक बंधन न हो, बल्कि शादी नवजीवन का खुला आकाश हो, जिसमें प्यार का ऎसा वृक्ष लहराए जिसकी जडों में परंपरा का दीमक नहीं प्यार का अमृत बरसता हो, जिसकी तनाओं में बंधन का नहीं प्रेम का आधार हो। जब ऎसा युगल एक दूसरे के लिए करवा चौथ का व्रत करके चांद से अपने प्यार के शाश्वत होने का आशीर्वचन माँगेगा तो चांद ही क्या, पूरी कायनात से उनको वो आशीर्वचन मिलेगा। करवा चौथ महज एक व्रत नहीं है, बल्कि सूत्र है, विश्वास का कि हम साथ-साथ रहेंगे, आधार है जीने का कि हमारा साथ न छूटे। आज हम कितना भी आधुनिक हो जाएं, पर क्या ये आधुनिकता हमारे बीच के प्यार को मिटाने के लिए होनी चाहिए। रिश्तों में अपनत्व का मिट जाना, फालतू का अपने संस्कृति पर अंगुली उठाते रहना।
हम यह भूल जाते हैं कि परंपरा वक्त की मांग के अनुसार बनी होती है, वक्त के साथ परंपरा में संशोधन किया जाना चाहिए पर उसको तिरस्कृत नहीं करना चाहिए, आखिर यही परम्परा हमारे पूर्वजों की धरोहर है। आखिर हम आधुनिकता का लबादा ओढकर कब तक अपने धरोहर को, अपने ही प्यार के वृक्ष को काटते रहने पर तुले रहेंगे। करवा चौथ जबरन नहीं प्यार से, विश्वास से मनाइए, इस यकीन से मनाइए कि आपका प्यार अमिट और शाश्वत रहे। किसी ने सच ही कहा है- करवा चौथ है विश्वास का त्यौहार।