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अपने आप से भी करें प्यार

By: Team Aapkisaheli | Posted: 16 Oct, 2012

अपने आप से भी करें प्यार
खुद से प्रेम करना और दूसरों से प्रेम करना-ये दोनों बातें एक-दूसरे पर निर्भर करती हैं। दूसरों के लिए जीना नहीं सीखते तो खुद से भी प्यार नहीं कर सकते और खुद से प्यार नहीं कर सकते तो दूसरों के लिए भला कैसे जीना सीखेंगे। जब हम स्वयं अपने भीतर से खुश और संतुष्ट होते हैं तभी हमारी उपस्थिति दूसरों को भी प्रसन्न कर पाती है।
अपने बारे में सोचना कोई अपराध नहीं है, लेकिन न सोचना अवश्य ऎसा त्याग है जिससे किसी का भला नहीं होता। रोजमर्रा के जीवन से कुछ उदाहरण लेकर इस धारणा को स्पष्ट किया जा सकता है- यानी सभी के पास समस्याओं और शिकायतों का पुलिंदा है, कोई खुश नहीं है। अपने इर्द-गिर्द मौजूद हर संबंध के बारे में सोच रहे हैं लोग, नहीं सोच रहे हैं तो सिर्फ अपने बारे में। कोई इसलिए परेशान है कि उसका साथी उससे आगे निकल गया, वह वहीं है, कोई सोचता है उसकी तकलीफें कभी खत्म नहीं होंगी, कोई तो इसलिए भी परेशान है कि दूसरे खुश क्यों और कैसे दिखते हैं! कई समस्याएं तो हम केवल इसलिए खडी कर रहे हैं क्योंकि हमारे पास और बडे काम नहीं हैं, सार्थक उद्देश्य नहीं हैं। जीवन सिर्फरोजी-रोटी कमाने का सामान बनकर रह गया है।
खुद से प्यार करना इसलिए जरूरी है क्योंकि यदि आप खुद से प्रेम नहीं करते तो कोई दूसरा आपसे कैसे प्रेम कर सकता है! महात्मा बुद्ध इसकी दार्शनिक व्याख्या कुछ ऎसे करते हैं, स्वयं के बनो, खुद की सराहना करो और अपने स्व से प्रेम करो, ब्र±मांड की हर चीज से आपको खुद प्रेम हो जाएगा। दूसरी ओर महान चिंतक अरस्तू इसे जीनियस और अयोग्य व्यक्तियों के संदर्भ में परिभाषित करते हुए कहते हैं, जीनियस खुद अपना सर्वोत्तम मित्र होता है और वह अपनी निजता का पूरा आनंद लेता है, जबकि वह व्यक्ति जिसमें कोई गुण या योग्यता नहीं है, खुद अपना सबसे बडा शत्रु होता है और वह अपनी तनहाई से डरता है। विलियम शेक्सपियर खुद से घृणा करने को बहुत बडा अपराध मानते हैं।
यदि आप दूसरे से प्रेम करना चाहते हैं तो जरूरी है कि खुद को जानें-समझें और अपने स्वाभिमान से प्रेम करें। कई पर्तो में खुद को छुपाने के बजाय गुण-अवगुणों के साथ खुद को स्वीकारें तभी सकारात्मक ढंग से खुद को बदलना भी सीखेंगे अन्यथा खुद के आलोचक बने रह जाएंगे। याद रखें कि आप अपने ही जैसे व्यक्ति हैं, किसी दूसरे की प्रतिलिपि न बनें, अपने जैसे बनें। खुद के बनकर देखें, अपनी गलतियों-अवगुणों को अपनाकर देखें।

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