क्या बदली है भारत में महिलााओं की स्थिति
By: Team Aapkisaheli | Posted: 03 Aug, 2012
हमारे समाज में लडके-लडकियों को मिलने या साथ खेलने को यदा-कदा ही बढावा दिया जाता है। किशोरावस्था के मुश्किल दौर में प्रवेश से पहले और युवावस्था में पहुँचने तक लौंगिंग अलगाव सम्बन्धी दकियानूसी बंदिशे लगाई जाती हंै। यहां लाखों लडकियों की विवाह 18 साल से पहले हो जाता है। जिस कारण उन्हें किशोरवय या खुद को समझने-जानने का अनुभव नहीं मिल पाता है।
समाज में पुरूषों की बहादुरी, बोल चाल-व्यवहार, शारीरिक बल में सख्ती की क्षमता और रोना ना आने जैसे पुरूषोचित गुणों की तारीफ होती है जबकि लडकियों को विनम्रता, कोमलता, धीरे बोलना और खासतौर से घरेलू दायित्व निभाना जैसे чस्त्रायोंचित ग्रहण करने के लिए हौसला बढाया जाता है। हालांकि पिछडेेपन और असमानता के ये रूप आज बदल रहे हैं पर रफ्तार धीमी है। इस बीच भारत के तेज रफ्तार पूँजीवादी बाजारी शक्तियों और सेवा क्षेत्र के तेज विस्तार ने जिस नई संस्कृति को जन्म दिया है, वह इन रूपों पर चढा परंपरा और आधुनिकता का अजीबो-गरीब मिश्रण सामने ला रही है। जैसे कन्या भ्रुण हत्या की कुरीति समाज के अभावग्रस्त हिस्सों के बजाए सम्पन्न व शिक्षित लोगों में ज्यादा फैली है। जैसे-जैसे लडकियों स्कूल, कालेज जाने और श्रमशक्ति में शामिल होने लगी हैं, वे अधिक स्वाधीन और आत्मविश्वासी बन गई हैं।
इसके चलते पुरूषों में नई असुरक्षा और डर पनप रहा है। इसी कारण वह महिलाओं को भरसक नियंत्रण में रखना और तरह-तरह से उनकी आजादी सीमित करना चाहते है। हाल में असम की राजधानी गुवाहाटी में एक युवती पर गम्भीर लैंगिग हमले की घटना ने आम जन को हिला दिया भारतीय दण्ड संहिता के अधीन पंजीयत अपराधों में महिलाओं के विरूद्ध हिंसा की घटनाएं सबसे तेजी से बढ रही हैं। बंगलुरू के पब में श्रीराम सेना के उन्मादियों द्वारा महिलाओं पर हमले और सार्वजनिक अपमान और मुंबई जैसे कास्मोपालिअन माने जाने वाले महानगर में अनुपयुक्त परिधान पहनने वाली महिलाओं को निवस्त्र करना तक मौजूद है।
महिलाओं की स्थिति को सुधारने के उपाय
इस पुरूषवादी पूर्वाग्रह से निजात व्यापक और सघन अभियान चलाए बिना सम्भव नहीं और इसमें प्रगतिशील बुद्धिजीवियों, प्रबुद्ध राजनेताओं और चिंतित नागरिकों की सहभागिता जरूरी है। फिलहाल स्त्री को मिली संविधान प्रदत्त समानता, स्वतंत्रता और भेदभाव से मुक्ति के आधिकार की रक्षा प्रशासने की जिम्मेदारी है। उसे लैंगिक संवेदनशीलता के पाठयक्रम चला महिलाओं की सुरक्षा व स्वतंत्रता की मुहिम में लगा जाना चाहिए।