1 of 1 parts

स्वस्थ और सुरक्षित रहें नन्हीं आंखें

By: Team Aapkisaheli | Posted: 02 July, 2012

स्वस्थ और सुरक्षित रहें नन्हीं आंखें
आंखें कुदरत का दिया हुआ अनमोल तोहफा है बडे हो जाने पर तो हम इस तोहफे को सहेज कर रख लेते हैं और आंखों का पूरा ध्यान रखते हैं। लेकिन बच्चो इतने मासूम होते हैं कि वो ऎसा नहीं कर सकते। प्यारे-प्यारे बच्चो की छोटी-छोटी आंखों में भी कई तरह की प्रॉब्लम्स हो जाती है जिन्हें आप पहचान नहीं पाते और बच्चो बता नहीं पाते हैं। ऎसे में माता-पिता को ही बच्चो की आंखों से सम्बन्धित परेशानियों को ध्यान में रखना चाहिए और समय-समय पर आंखों का चैकअप करवाते रहना चाहिए। द ऎकेडमी ऑफ ऑप्थेमोलॉजि और द अमेरिकन ऎकेडमी आप्टीमेटीक ऎसोसिएशन का सुझाव है कि बच्चो की आंखों की जांच छ:महीने, तीन साल, पांच साल की उम्र में हो जानी चाहिए। हालांकि स्कूल में बच्चो की आंखों की जांच होती है लेकिन फिर भी आंखों से सम्बन्धित परेशानियां का पता नहीं लग पाता। इसलिए नन्हीं आंखों की जांच नियमित रूप से किसी अच्छे आई स्पैलिस्ट से करवानी चाहिए।
लक्षण- बच्चो की दृश्य क्षमता जीवन के पहले महीने या पहले साल में तेजी से विकसित होती है। ऎसे में आपको अपने बच्चो की जांच किसी भी तरह के लक्षण समाने आने से पहले या लक्षण पता लगते ही करा लेनी चाहिए। इसके लिए बच्चो के व्यवहारिक लक्षणों पर नजर रखें जोकि उसकी देखने की क्षमता से सम्बन्धित हो। अगर किसी बच्चो को देखने में परेशानी हो, तो उसकी पढाई से सम्बन्धित जांच की जानी चाहिए। बच्चो की दोनों आंखें एक साथ काम नहीं करती तो यह उसकी विजुअल मोटर स्कील और स्कूल उसके प्रदर्शन को प्रभावित करता है। माता-पिता बच्चो की आंखों से सम्बन्धित निम प्रॉब्लम्स पर गौर करें, यह निम लक्षण इस बात के संके तक हैं कि बच्चो की आंखें जरूरी है जैसे-तिरछी आंखें, एक-दूसरे से अलग दिशा में देखती हों, जरूरत से ज्यादा पलके झपकना, लाल हो जाना, पानी से भरी आंखें, पलक पर सफेद पपडी जमना और मितली या भारीपन लगना, आंखों में जलन या खुजली आदि होना। चैकअप का टाइम- अगर बच्चो की आंखों से जुडी परेशानी नहीं भी है तो उसकी नियमित जांच में गाइड का काम कर सकती है, निम अंतराल में बच्चों की आंखों की जांच करानी चाहिए।
6 महीने में- अगर पारिवारिक इतिहास है तो यह जाने के लिए की बच्चें को कोई दिक्कत तो नहीं है।
3 साल में - जब बच्चा 3 साल हो जाए, तो उसकी आंखों की जांच जरूर करवाएं।
5 साल मे- स्कूलिंग शुरू करने से पहले, इसके बाद हर तीसरे साल में आंखों की नियमित जांच करवानी चाहिए।
आंखों की यह-यह होती हैं जांच-
छोटे बच्चो की आंखों की जांच के लिए कुछ खास टैस्ट डिजाइन किये गये हैं, जिनसे आंखों की बीमारियों का पता लगया जाता है। इससे किसी तरह का दर्द नहीं होता है। टैस्ट में चटक रोशनी, रंगीन लेन्स या चार्ट शामिल हो सकता है। यह ऎसे टैस्ट होते है जिनमें बच्चो को कुछ बताने, रंग या शब्द आदि का ज्ञान होना जरूरी होता है इन टैस्ट की सहायता से आंखों से सम्बन्धित सभी प्रकार की परेशानियों का पता लग जाता है।
अन्य जरूरी बातें-
बच्चो के खान-पान में विटामिन ए भरपूर मात्रा में हों, खाद्य पदार्थ में हरी सब्जियों और पीले फल को शामिल करें।बच्चो а को बहुत नजदीक से टीवी ना देखने दे साथ ही टीवी देखते समय कमरे में चारो ओर रोशनी पर्याप्त होनी चाहिए। इस तरह कम्प्यूटर मोबाइल का लम्बे समय से प्रयोग करने से भी आंखों पर असर पडता है और मायोपिया की सम्भावना बढ जाती है। दोनों आंखों की अलग-अलग जांच कराएं,क्योंकि कई बार एक आंख तो ठीक होती है लेकिन दूसरी आंख में प्रॉब्लम होती है।

Mixed Bag

News

рд░рд┐рдВрдХреВ рд╕рд┐рдВрд╣ рдХреЗ рдкрд┐рддрд╛ рдиреЗ рдХрд╣рд╛,рдмрд╣реБрдд рдЙрдореНрдореАрджреЗрдВ рдереА, рдЙрд╕рдХрд╛ рджрд┐рд▓ рдЯреВрдЯ рдЧрдпрд╛ рд╣реИ
рд░рд┐рдВрдХреВ рд╕рд┐рдВрд╣ рдХреЗ рдкрд┐рддрд╛ рдиреЗ рдХрд╣рд╛,рдмрд╣реБрдд рдЙрдореНрдореАрджреЗрдВ рдереА, рдЙрд╕рдХрд╛ рджрд┐рд▓ рдЯреВрдЯ рдЧрдпрд╛ рд╣реИ

Ifairer