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नवदुर्गा- नौ रूपों की नित पूजा

By: Team Aapkisaheli | Posted: 16 Oct, 2012

नवदुर्गा- नौ रूपों की नित पूजा
नवरात्रों के नौ दिन देवी दुर्गा के नौ रूपों की अलग-अलग पूजा की जाती है।
1. शैलपुत्री- देवी का प्रथम रूप शैलपुत्री का है। पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण इन्हें शैलपुत्री के नाम से प्रसिद्धि प्राप्त हुई। बैल पर सवार भगवती अपने दाहिने हाथ मे त्रिशूल तथा बाएं हाथ मे कमल का फूल का धारण करती हैं। इनके सिर पर आधा चन्द्र और सोने का मुकुट शोभा पाता है। अपने पूर्वजन्म में ये देवी सती थीं और इन्होंने कठिन तपस्या करके भगवान शिव को प्रसन्न कर पति रूप मे प्राप्त किया था। मनोवांछित सिद्धि के लिए इनकी पूजा नवरात्रा के प्रथम दिन की जानी चाहिए।
2. ब्रहाचारिणी
- देवी दुर्गा का दूसरा स्वरूप ब्रहाचारिणी का है। देवी के इस रूप मे कठोर तपस्या और धैर्य का सम्मिश्रण है। कठिन तपस्या करने के कारण इनकी प्रसिद्धि ब्रrाचारिणी के नाम से हुई। इनके दाहिने हाथ में जप माला, बाएं हाथ मे कमण्डलु और सिर पर सोने का मुकुट शोभा पाता है। देवी का यह रूप भक्तों और सिद्धि पाने के इच्छुकों को अनंत फल देने वाला है। इनकी उपासना से मानव में धैर्य, त्याग और वैराग्य की बढ़ोत्तरी होती है। सर्वत्र सिद्धि और विजय पाने के नवरात्रा के दूसरे दिन देवी ब्रहाचारिणी की पूजा की जानी चाहिए।
3. चन्द्रघण्टा- देवी दुर्गा का तीसरा रूप चन्द्रघण्टा के नाम से जाना जाता है। इनके मस्तक पर घंटे के आकार में चन्द्रमा सुशोभित होता है इसलिए इन्हें चन्द्रघण्टा कहा जाता है। इनके दस हाथ हैं जिनमें से दाहिने ओर के चार हाथों मे क्रमश: अभय मुद्रा, धनुष, बाण और कमल हैं और पांचवां हाथ उनके गले में स्थित माला पर है। इनके बाई ओर के हाथों मे क्रमश: कमण्डलु, वायु मुद्रा, खड्ग, गदा और त्रिशूल हैं। इनके गले मे फूलों का हार, कानों में सोने के आभूषण और सिर पर सोने का मुकुट है। इनका वाहन सिंह है। ये दुष्टों के दमन और विनाश के लिए हमेशा तत्पर रहती हैं इसलिए इनकी आराधना करने वाले पराक्रमी और निर्भय होते हैं। भक्ति और मुक्ति पाने के लिए देवी नवरात्रा के तीसरे दिन देवी चन्द्रघण्टा की पूजा की जानी चाहिए।
4. कूष्माण्डा- देवी का चौथा स्वरूप कूष्माण्डा कहलाता है। अपनी मंद मुस्कान से अण्ड और ब्रहाण्ड को उत्पन्न करने के कारण इनकी प्रसिद्धि कूष्माण्डा के नाम से हुई। अपने हासे से ब्रहाण्ड का निर्माण करने के कारण ये सृष्टि में आदिशक्ति कहलाई। इनका शरीर सूर्य की कांति के समान है। इनकी आठ भुजाएं हैं इसलिए ये अष्टभुजा भी कहलाती हैं। इनके दाहिनी ओर के हाथों में क्रमश: कमण्डलु, धनुष, बाण और कमल सुशोभित हैं तथा बाई ओर के हाथ में अमृत कलश, जप माला, गदा और चक्र हैं। इनके कानों में सोने के आभूषण और सिर पर सोने का मुकुट है। ये सिंह पर विराजमान हैं। समस्त रोग, शोक के विनाश के लिए तथा आयु, यश, बल और आरोग्य की प्राप्ति के लिए नवरात्रा के चौथे दिन इनकी पूजा की जानी चाहिए।
5. स्कन्दमाता- मां दुर्गा का पांचवां स्वरूप स्कन्दमाता कहलाता है। स्कन्द का एक नाम कार्तिकेय भी है। इन्होंने देवताओं के शत्रु तारकासुर का वध किया था। कार्तिकेय की माता होने के कारण देवी दुर्गा का पांचवां स्वरूप स्कन्दमाता के नाम से अधिक प्रसिद्ध है। इनकी चार भुजाएं हैं। दाहिनी ओर की एक भुजा से कार्तिकेय को पक़डकर गोद मे बिठाए हुए हैं और दूसरी भुजा में कमल का फूल धारण किए हुए है। इनके बाई ओर की एक भुजा मे वरमुद्रा और दूसरी मे कमल का फूल है। इनके सिर पर सोने का मुकुट और कानों सोने के ही आभूषण हैं। इनका वाहन भी सिंह ही है। भक्तों की समस्त इच्छाओं की पूर्ति और मोक्ष की प्राप्ति प्राप्ति के लिए नवरात्रा के पांचवें दिन इनकी पूजा की जानी चाहिए।
6. कात्यायनी- मा दुर्गा का छठा स्वरूप कात्यायनी कहलाता है। महर्षि कात्यायन के यहां पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण इन्हें कात्यायनी कहा जाता है। इनके विषय मे एक आश्चर्यजनक तथ्य पढने को मिलता है कि इन्होंने आश्विन कृष्ण चतुर्दशी को जन्म लिया और आश्विन शुक्ल सप्तमी, अष्टमी व नवमी को महर्षि कात्यायन द्वारा पूजा भी ग्रहण कर ली। आश्विन शुक्ल दशमी को इन्होंने महिषासुर का वध किया था। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को सहज सुलभ बनाने के लिए नवरात्रा के छठे दिन इनकी पूजा की जानी चाहिए।
7. कालरात्रि- मां दुर्गा के सातवें स्वरूप कालरात्रि के शरीर का रंग अंधेरे की तरह काला, सिर बाल बिखरे हुए और गले में चमकती हुई माला है। इनके श्वास प्रश्वास से अग्नि की ज्वालाएं निकलती हैं और इनका वाहन गधा है। इनके दाई ओर की दो भुजाओ मे अभय और वरमुद्रा तथा बाई ओर लोहे का कांटा और तलवार है। अपने स्वरूप से भयानक होते हुए भी ये सदैव शुभफल प्रदान करती हैं इसलिए इनका नाम शुभंकरी भी है। किए गए कार्यो के शुभफल प्राप्ति के लिए नवरात्रा के सातवें दिन इनकी पूजा की जानी चाहिए।
8. महागौरी- मां दुर्गा का आठवां स्वरूप महागौरी के नाम से विख्यात है। ये गौरवर्ण तथा श्वेत वस्त्र, आभूषण धारण करती हैं। इनकी आयु आठ वर्ष मानी जाती है। इनकी चार भुजाएं हैं। दाई ओर की दो भुजाओं में वरमुद्रा और त्रिशूल, बाई ओर की भुजाओं मे डमरू और अभय मुद्रा सुशोभित हैं। इनका वाहन वृषभ है। इनकी उपासना अमोघ और तुरन्त फल देने वाली है और पूर्व संचित पापों का विनाश भी इनकी पूजा से हो जाता है, ऎसी मान्यता है। सभी प्रकार के कल्याण और सभी मनोरथों को सिद्ध करने के लिए नवरात्रा के आठवें दिन इनकी पूजा की जानी चाहिए।
9. सिद्धिदात्री- मां दुर्गा का नवां स्वरूप सिद्धिदात्री के नाम से जाना जाता है और वे अपने भक्तों को आठों प्रकार की सिद्धियां देने में सक्षम हैं। देवी प्राण में ऎसा उल्लेख मिलता है कि भगवान शंकर ने भी इन्हीं की कृपा से सिद्धियों को प्राप्त किया था। इनकी चार भुजाएं हैं, दाई ओर की दो भुजाओं मे गदा और चक्र और बाई ओर की दो भुजाओं में पद्म और शंख सुशोभित हैं। इनके सिर पर सोने का मुकुट और गले में सफेद फूलों की माला है। ये कमल पर आसीन हैं और केवल मानव ही नहीं बल्कि सिद्ध, गंधर्व, यक्ष, देवता और असुर सभी इनकी आराधना करते हैं। संसार में सभी वस्तुओं को सहज और सुलभता से प्राप्त करने के लिए नवरात्रा के नवें दिन इनकी पूजा की जानी चाहिए।

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