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शिशु की देखभाल

By: Team Aapkisaheli | Posted: 05 Jun, 2012

शिशु की देखभाल
शादी के बाद पति और पत्नी के बीच में प्रेम व लगाव इतना गहरा होता है। इस बीच दोनों अपने आप को एक-दूसरे को समझने और जानने का प्रयास कर रहे होते हैं कि उनके बीच एक नया मेहमान आ जाता है। इस नए व्यक्तित्व के आगमन से उन पर एक ऎसी जिम्मेदारी आती है जिसे वे अपने नव जीवन के साथ सामंजस्य बैठाते हुए निभाते हैं। पहली बार गर्भधारण कर शिशु को जन्म देने वाली नवयुवतियां शिशु की देखभाल करने में कुछ गलतियां कर जाती हैं। जिससे शिशु रोग विकार से पीडित हो जाते है। जब शिशु गर्भ में होता है तथा उसके जन्म के बाद मां को उसका पालन-पोषण सही तरीके से करना जरूरी होता है। इस सब के बीच पति-पत्नी की जिम्मेदारियां अधिक बढ जाती हैं, खासतौर पर पत्नी की जिम्मेदारी दुगुनी हो जाती हैं, पहले बच्चो को संभालना उसका पालन-पोषण करना, दूसरा घर-परिवार की देखभाल करना इन दोनों जिम्मेदारियों को निभाते हुए, पत्नी का काम अधिक बढ जाता हैं। ऎसे में अगर पति-पत्नी समझदारी से काम नहीं लेते है तो आपसी असहमतियों और मतभेदों के कारण बेवजह विवाद खडा हो जाता है। पत्नी घर के अन्य कामों में ज्यादा समय नहीं दे पाती और न ही पति को समय दे पाती है, ऎसी परिस्थितियों में पति अपने आप को अकेला महसूस करता है। ऎसे में पति अगर बच्चो के कारण पत्नी की बढी जिम्मेदारियों को समझे और पत्नी का पूर्ण रूप से अपना सहयोग करें तो अकेलापन महसूस नहीं होगा और पति-पत्नी के बीच हमेशा प्रेम बना रहेगा।
1. गर्भावस्था में ही शिशु के दांत निकलने शुरू हो जाते लेकिन दांत मसूढों में छिपे रहते है, इसलिए गर्भावस्था में गर्भवती को खाधपदाथों का सेवन करना चाहिए, जिनमें कैल्शियम अधिक मात्रा में लेना चाहिए।
2. गर्भवती महिला को फल, सब्जियों का सेवन भी अधिक मात्रा में करना चाहिए। अनार जामुन, अनानास, नाशपती , मौसंबी, केला, अमरूरद, संतरा, अंजीर,खजूरआदि फलों का सेवन करें इनमें सबसे ज्यादा कैल्शियम की मात्रा होती है जिससे से दांत और अस्थियां बहुत मजबूत होती है।
3. छोटा-सा नवजात शिशु जो न कुछ बोल सकता है और न ही अपनी बात वो किसी से इशारों से आपको समझा सकता है तो ऎसे में वो सिर्फ रो कर ही आप से बात कह पाता है मां को तो सिर्फ अंदाजा लगना होता है कि अब उसे भूख लग रही है, अब उसे गीला या उस के पेट में दर्द हो रहा है। इसलिए तो बच्चो को जन्म देने से भी ज्यादा कठिन हे उसका पालनपोषण उसे किसी भी समय मां की जरूरत हो सकती है चाहे सुबह हो या शाम हर समय किसी न किसी की ड्यूटी पर होना ही चाहिए। पता नही कब जरूरत हो जाएं।
4.शिशु को स्तनपान से सर्वोत्तम आहार मिल जाता हैं। अगर छ: महीने तक शिशु को स्तनपान कराने से उसका स्वास्थ्य संतुलित रहता है। उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता भी विकसित होती है। शिशु स्वस्थ और निरोग रहता है स्तनपान से शिशु के शरीर में जल की मात्रा सही बनी रहती है। स्तपनान करने से स्त्रयां भी स्तन कैंसर से सुरक्षित रहती हैं। प्रसव के बाद स्त्रयां के स्तनों से निकलने वाला कोलेस्ट्रम शिशु को विभिन्न रोगौं के जीवाणुओं के संक्रमण से बचाता है और रोग प्रतिरोधक शक्ति प्रदान करता है। और इससे शिशु के मस्तिष्क में सुरक्षा की भावना विकसित होती है कम से कम छ: महीने बाद शिशु को अलग से गाय, भैंस का दूध दे सकते हैं शिशु को फलों का रस, पतला बना हुआ दलिया, दाल-चावल या खिचडी, चावल की खीर भी दे सकते हैं। स्तनपान दो वर्ष तक करा सकती है इस दौरान स्त्री को अपने पौष्टिक आहार पर भी ध्यान देना चाहिए । आहार में दूध की मात्रा और दूध से बने पदाथोंü का सेवन अधिक करना चाहिए। दूध, पनीर व मक्खन और दूध से बनी खीर का सेवन किया जा सकता है।
5. 2 से 5 वर्ष तक की आयु के बच्चाों को घर में बनने वाला भोजन खिलाना शुरू कर देना चाहिए इस आयु में फास्ट फूड से बच्चो को जितना दूर रखेंगे बच्चो के लिए अतना ही लाभप्रद होता है। बच्चा 5 वर्ष का होते ही संतुलित आहार देना शुरू कर देना चाहिए। संतुलित भोजन में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा और खनिज तत्व से भरपूर खाध पदार्थ हों । ध्यान रहें कि बच्चो के भोजन में मिर्च और दूसरे मसाले कम मात्रा में हों उसे प्रतिदिन हरी-सब्जियां, दाल-चावल अवश्य खिलाएं। मां को बच्चो को खाना खिलाने में दिन भर संघर्ष करना पडता हैं। ऎसे में थोडा सा स्वादिष्ट भी खिला सकती है लेकिन बच्चाों के भोजन में फल-सब्जियां का अवश्य समावेश हों। इस सब से बच्चो को विटामिन व खनिज तत्व मिलते है और फलों को तो बच्चो स्वाद से खाते है मौसम के हिसाब से फलों का सेवन करें संतरा, अनानास, अनार आदि फल बच्चाों को अच्छे भी लगते है और आसनी से इन का सेवन कर सकते है अगर फलों को बच्चो न खाएं तो आप इनका रस बनाकर दे सकती हैं।
6. शारीरिक रूप से निर्बल और रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने के कारण बच्चे शीघ्र ही विभिन्न रोगों के शिकार हो जाते हैं। जन्म के साथ बच्चो पीलिया से भी पीडित हो सकते हैं। पीलिया से पीडित बच्चाों की अस्पताल में चिकित्सा होनी चाहिए। बच्चो को शुद्ध जल का सेवन करना चाहिए।
7.अकसर बच्चो के पेट में दर्द हो जाता है तो थोडी सी हींग पानी में घोलकर नाभि के पास लेप करने से दूषित वायु निष्कासित होने से पेट दर्द ठीक हो जाता है।
8. बच्चो को अतिसार ओर पेट दर्द को रोकने के लिए बच्चो को बोतल से दूध पिलाते समय स्वच्छता का पूरा ध्यान रखना चाहिए और बच्चो को पतला दलिया, दाल-चावल, दही और केला काफी मात्रा में पतला कर के पिलाएं।
9. बच्चो की मालिश प्रतिदिन करनी चाहिए। मालिश से बच्चो का स्वस्थ व निरोग रहते हैं उनमें स्फूर्ति व शक्ति विकासित होती हैं तथा घर- आंगन में स्वस्थ व निरोगी बच्चाों की किलकारियां गूंजती रहती है।
10. बच्चो को बाजारे की खिचडी, ज्वार का उपमा, पनीर, दही, मीठा और ढोकला, दूध की खीर भी खिला सकते है यह आहार 3 वर्ष के बच्चाों के लिए लाभकारी होता है और बच्चाो के स्वस्थ के लिए ठीक होता है।

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