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बदलें खुद की नकारात्क सोच को

By: Team Aapkisaheli | Posted: 28 Feb, 2012

बदलें खुद की नकारात्क सोच को
हमें सदैव दूसरों को बदलने से पहले खुद को बदलने के बारे में सोचना चाहिए। हमे दूसरों के बजाय पहले खुद की सोच का सकारात्मक बनासन होगा। सकारात्मक सोच परिस्थितियों में ही नहीं दृष्टिकोण में बदलाव लाती है। नकारात्मक सोच कई घरों को बर्बाद कर चुकी है। नकारात्मक सोच के कारण हसंते खेलते वैवाहिक जीवन में दरार पैदा हो जाती है। जब कहीं पर भी कोई भी कुछ भी घटता हो तो उसे अपने साथ जोडकर न सोचें, कि आपके परिवार के सदस्य भी ऎसा ही करते हैं, जबकि ऎसा कु छ भी नहीं होता। अनेक महिलाएं पति के ऊपर बेवजह शक करती रहती हैं, जो भविष्य में दांपत्य की असुरक्षा का संकेत है ऎसी महिलाओं के लिए जरूरी है , कि वो सकारात्मक विचार रखें, अच्छा सोचेंगी, तो अच्छा व्यवहार कर पाएंगी। नकारात्मक सोचने पर बुरे परिणाम भुगतने पड सकते हैं। ध्यान रखिए विवाद ग्रस्त बातें मधुर मुस्कान से मिनटों में हल हो जाती हैं, जबकि आपका गरम स्वभाव जरा सी बात का भी बतंगड बना सकता है।
परिवर्तन: परिवर्तन संसार का नियम है। चाहे वह प्रकृ ति हो मनुष्य हो या समय, परिवर्तन तो होना ही है। कई बार हम अलग-अलग परिस्थितियों में खुद को बदलते रहते हैं लेकिन इस बदलाव के परिणाम भी अलग-अलग हो सकतेे हैं। कई बार यही बदलाव खुशी और उत्साह लाता है, तो कई बार अशांति और उदासी में डूबो देता है। परंतु यदि सामान्य जौर पर देखा जाए, तो बदलाव एक अवश्यभावी प्रक्रिया है। इसका अच्छा परिणाम तभी आता है, जब हम उसे केवल बाहरी तौर पर ही नहीं बल्कि आंतरिक तौर पर करें। यह आंतरिक परिवर्तन सकारात्मक होना चाहिए। जब हम गुणवत्ता वाली सोच सृजित करना शुरू करेंगे। धीरे-धीरे हमारे भीतर जागृति आती जाएगी। सकारात्मक अनुभूति के लिए सोच परिष्कृ त करें।
हावी न होने दें: कभी भी नकारात्मक विचारों को खुद पर हावी न होने दें।
दरअसल जब हम दूसरों के प्रति अपने दृष्टिकोण और सोच में सकारात्मक बदलाव लाएंगे, तो दूसरा हमारे प्रति नकारात्मक सोच ही नहीं सकता। मान लीजिए किसी के प्रति हम सकारात्मक सोच रहे हैं, और वह हमारे प्रति नकारात्मक सोच रहा है, पर यह प्रक्रिया ज्यादा देर तक स्थायी नहीं रह सकती । जरूर सामने वाला हमारी सकारात्मक सोच के प्रति नतमस्तक होगा और हमारे करीब आकर अपनापन हमसूस करेगा।
खुद में लाएं बदलाव: व्यक्ति से ही समाज का निर्माण होता है। व्यक्ति को दूसरों को बदलने से अच्छा है अपने अंदर बदलाव लाना , लेकिन लोग खुद को नहीं देखते बल्कि दूसरों को नसीहत का पाढ पढाते रहते हैं। इंसान के इसी दुष्टिकोण ने पारिवारिक, सामाजिक विघटन से लेकर अनावश्यक स्वार्थ संघर्ष और भ्रष्टाचार तक कई दुष्टप्रवृतियों को उत्पन्न किया है। छोटी-छोटी बातों पर लडाई,रोड रेज,संयुक्त परिवार की तो दूर की बात है एकल परिवारों में दांपत्य संबंधों तक का टूटना, रिश्वतखोरी, छोटी-छोटी बातों के निहायत निमA कोटि की चालाकियां ये सब हमारी नकारात्मक सोच का नतीजा है।
क्या करें: सबसे पहले यह जरूरी है, कि आप चीजों को किस नजरिये से देखते हैं, अगर आप मन से गरीब हैं तो आप जैसा गरीब कोई नहीं अगर आप सोचते हैं आपके पास खुशी है, प्यार है, परिवार है, दोस्त हैं, पॉजिटिव सोच है तो आप जैसा अमीर दुनियां में कोई नहीं। दिखावे से हमेशा दूर रहने का प्रयास करें। दूसरों को देखकर उनकी सही बातों को अपनाये, मगर गलत बातों पर उनकी होड करना आपके भविष्य के लिए सही नहीं। हर इंसान को अपने समाज के प्रति जिम्मेदारी निभानी चाहिए, आप अपने बहुत से छोटे-छोटे कार्यो द्वारा भी अपने सोशल कंसर्न लोगों तक पहुंचा सकते हैं। अक्सर लोग सामने वाले को दोष देने लगते हैं, कि वह क्यों नहीं हमारे मुताबिक चल रहा ! जबकि हम खुद को एक पल भी देखने समझने की कोशिश नहीं करते कि क्या हम ठीक कर रहे हैं? जब हम यह सोचते हैं, कि सामने वाला क्यों नही बदल रहा, तो नकारात्मकता हमारे ऊपर हावी होने लगती है, फिर हमारी पूरी की पूरी ऊर्जा व्यर्थ हो जाती है, जिसका असर व्यक्तित्व को प्रभावित करता है। सोच बदलने से परिदृश्य बदल जाता है, सामने जो व्यक्ति है, वह तो वैसा ही है जैसा था। परिस्थितियां भी वैसी हैं, जैसी थीं। बस हम सोच में परिवर्तन लाकर स्थिति को सकारात्मक बना देते हैं। दूसरों के प्रति नकारात्मक सोच सिर्फ झगडे व कलह का ही कारण बनती है, संबंधों को बनाती नहीं बल्कि बिगाडती है, इसलिए नकारात्मक सोच से जितना जल्दी हो सके, बाहर आने का प्रयास करें।

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