बदल गए शादी के मायने
By: Team Aapkisaheli | Posted: 17 Oct, 2012
विवाह ना सिर्फ एक सामाजिक प्रथा है, बल्कि व्यक्तिगत तौर पर भी एक जरूरत है, लेकिन बदलते दौर के साथ जब सब कुछ इतनी तेजी से बदल रहा है, तो उसका सबसे ज्यादा असर हमारे संबंधों पर ही पडा है और विवाह भी इससे अछूता नहीं। अब शादी ना सात जन्मों का साथ है, ना ही दो दिलों का मिलन। विवाह में भी अब अपनी सुविधानुसार जीने की आजादी और तौर-तरीकों की शर्ते आ गई हैं। विवाह में दो परिवारों संबंध जुडने की बात अब मायने नहीं रखती, बल्कि दो अलग-अलग लोग किस तरह से और कब तक खुशी-खुशी साथ रह सकते हैं, विवाह आज इस बात पर टिके हैं।
क्या-क्या बदलाव आए!
सबसे पहले तो विवाह जिन्दगी की सबसे बडी जरूरत या सबसे बढा निर्णय नहीं रह गया है। विवाह से कहीं ज्यादा जरूरी कЄरियर और आर्थिक आत्मनिर्भरता हो गई है। विवाह के पूरे मायने ही बदल गए हैं। जहां पहले दो बेहतर इंसान और परिवार एक बेहतर रिश्ते के जरिए बेहतर जिन्दगी की कल्पना को ही विवाह की सार्थकता मानते थे, अपने साथी के सुख-दुख में अपना सुख-दुख तलाशते थे, वहीं अब सब कुद बदल गया है। लोग पैसे और स्टेटस में सुख खोजने लगे हैं और आजादी में ही एक बेहतर जिन्दगी की कल्पना की जाने लगी है। विवाह अब एक ऎसे साथी की तलाश बन गया है, जो भले ही हर क्षेत्र में परफेक्ट ना हो, लेकिन खुली सोच जरूर रखता हो। विवाह को अब लडकियां आर्थिक व सामाजिक सुरक्षा के नजरिए से नहीं देखतीं। विवाह में भी अग स्पेस जैसे शब्द घर करते जा रहे हैं। परिवार और समाज अब मायने नहीं रखता, बस, पति-पत्नी ही साथ रहें, लेकिन वहां भी शर्त यह है कि अपने हिसाबा से जीने की आजादी हो। दोनों की सोच प्रैक्टिकल जरूर हुई है, लेकिन पैरक्टिकल होने के चक्कर में भावनाएं कहीं पीछे छूट रही हैं। इस मामले में कुछ परिवर्तन सकारात्मक भी हैं, लेकिन अगर सम्पूर्ण दृष्टि से देखा जाए तो- आज रिश्ते पहले से कहीं ज्यादा टूट रहे हैं। सहनशीलता और त्याग जैसे शब्दों को बेवकूफी समझा जाने लगा है। रिश्तों को बचाए रखनेकी कोशिशें अब शायद की ही नहीं जातीं। अहंकार को आत्मसम्मान का नाम देकर हर छोटी-बडी परिस्थिति को जटिल बना दिया जाता है। एक तरफ जहां जागरूकता बढी, वहीं इन्हीं कानूनों का दुरूपयोग भी अब बढने लगा है। सास-ससुर अगर लडकियों को नहीं भाते, तो उन्हें दहेज विरोधी कानून में फंसाने की धमकी दी जाती है। परिवार में रहना अब किसी को पसंद नहीं, शादी का मतलब अब सिर्फ एक बडा घर, बडी गाडी और बस पति का साथ हो गया है।
क्या किया जाए!
शादी की रस्म को सम्मान के निजरिए से देखना होगा। पैसा और स्टेटस की बजाय अच्छे लाइफ पार्टनर की तलाश की जाए, तो बेहतर है। प्यार सेबहुत काम हो सकते हैं, तो बेवजह ईगो क्यों दिखाएं! नौकरीपेशा या कामयाब होने का यह मतलब नहीं कि कोई भी इंसार घंमडी हो जाए और दूसरों को छोटा समझे। सबसे जरूरी,विवाह को बंधन या आजादी में रोडा कतई ना मानें। विवाह की पवित्रता को पूरा सम्मान दें, फिर देखें बहुत कुछ बदल जाएगा।