बर्थडे स्पेशल: टोक्यो ओलंपिक के कांस्य पदक ने लवलीना को दी थी पहचान

By: Team Aapkisaheli | Posted: 02 Oct, 2024

बर्थडे स्पेशल: टोक्यो ओलंपिक के कांस्य पदक ने लवलीना को दी थी पहचान
नई दिल्ली । ओलंपिक, विश्व और एशियन चैंपियनशिप में पदकों के साथ, कुछ ही वर्षों  में भारतीय मुक्केबाज़ लवलीना बोरगोहेन की सफलता शानदार रही है। दो अक्टूबर को जन्मी लवलीना बुधवार को अपना 27वां जन्मदिन मनाएंगी।  

हालांकि, एक छोटे से गांव से अंतरराष्ट्रीय पोडियम तक के सफ़र में, युवा मुक्केबाज़ को चार साल से अधिक का समय लगा।

2 अक्टूबर, 1997 को असम के गोलाघाट ज़िले के बरोमुखिया नामक एक सुदूर गांव में जन्मी लवलीना बोरगोहेन के परिवार को बचपन में गुजारा करने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा। लेकिन इसने लवलीना के पिता को अपने बच्चों की खेल महत्वाकांक्षाओं का समर्थन करने से नहीं रोका।

लवलीना और उनकी दो बड़ी बहनों ने मॉय थाई को अपनाया, जो किक-बॉक्सिंग का एक रूप है। दोनों बहनों ने इसमें राष्ट्रीय स्तर पर भी प्रतिस्पर्धा की है।

हालांकि, लवलीना ने बॉक्सिंग में ही असली पहचान पाई। साल 2012 में अपने स्कूल में भारतीय खेल प्राधिकरण (साई) बॉक्सिंग ट्रायल में भाग लेने के दौरान, लवलीना बोरगोहेन की प्रतिभा ने पदुम बोरो का ध्यान अपनी तरफ़ खींचा। आख़िर में वह उनके बचपन के कोच बने।

लवलीना ने 2012 में 14 साल की उम्र में गुवाहाटी के नेताजी सुभाष रीजनल सेंटर में अपनी बॉक्सिंग ट्रेनिंग की शुरुआत की थी। उन्होंने साल 2012 में जूनियर नेशनल चैंपियनशिप और सर्बिया में साल 2013 के नेशन वूमेंस जूनियर कप में रजत पदक जीतकर कम समय में ही पदुम बोरो के विश्वास को हकीकत में बदल दिया।

लवलीना ने पहला बड़ा अंतरराष्ट्रीय मेडल 2017 एशियाई मुक्केबाजी चैंपियनशिप में हासिल किया, जो कि कांस्य पदक था। यह एक बड़ी उपलब्धि थी जिसकी वजह से उन्हें ऑस्ट्रेलिया के गोल्ड कोस्ट में हुए 2018 राष्ट्रमंडल खेल के लिए भारतीय टीम में जगह मिली।

उन्हें गोल्ड कोस्ट 2018 में क्वार्टर-फाइनल में हार का सामना करना पड़ा। लेकिन नई दिल्ली में हुई विश्व चैंपियनशिप में वेल्टरवेट डिवीज़न में उन्होंने कांस्य पदक के साथ साल का समापन किया।

असम की मुक्केबाज ने उसी श्रेणी में रूस के उलान-उदे में 2019 विश्व चैंपियनशिप में एक और कांस्य पदक अपने नाम किया।

विश्व चैंपियनशिप में जीते गए पदकों की वजह से लवलीना को बॉक्सिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया को टोक्यो 2020 ओलंपिक के लिए एशियाई क्वालीफायर में भेजने के लिए विश्वास दिलाने में मदद मिली।

लवलीना ने मार्च 2020 में एशियाई ओलंपिक क्वालीफायर के क्वार्टर-फाइनल में उज्बेकिस्तान की मफतुनाखोन मेलिएवा को मात दी। इसके साथ ही सेमीफाइनल में पहुंचकर उन्होंने वेल्टरवेट वर्ग (69 किग्रा) में भारत के लिए ओलंपिक कोटा हासिल किया।

टोक्यो 2020 ओलंपिक और 2020 विश्व चैंपियनशिप को कोविड-19 की वजह से एक साल के लिए स्थगित कर दिया गया था, लेकिन इससे लवलीना बोरगोहेन के उत्साह में कोई कमी नहीं आई। उन्होंने ख़ुद को पदक का दावेदार बनाने के लिए कड़ी मेहनत की और सबसे बड़े मंच पर शोहरत हासिल की।

दिग्गज मैरी कॉम सहित कुल 9 भारतीय मुक्केबाजों ने टोक्यो 2020 ओलंपिक में भारतीय चुनौती पेश की थी, जिनमें से सिर्फ़ लवलीना ने ही पदक जीतकर देश का नाम रौशन किया।

क्वार्टर-फाइनल में लवलीना की भिड़ंत चीनी ताइपे की 2018 विश्व चैंपियन चेन निएन-चिन से हुई। वह एक ऐसी प्रतिद्वंद्वी थीं, जिसे भारतीय मुक्केबाज अपने पिछले तीन प्रयासों में हराने में नाकाम रही थीं। हालांकि, लवलीना ने चौथी बार हार का सिलसिला तोड़कर जीत हासिल की।

लवलीना बोरगोहेन को सेमीफाइनल में तुर्की की 2019 विश्व चैंपियन और आख़िरी बार की स्वर्ण पदक विजेता बुसेनाज सुरमेनेली से हार का सामना करना पड़ा था, लेकिन शीर्ष चार में पहुंचकर वह कांस्य पदक जीतने में कामयाब रहीं।

वेल्टरवेट वर्ग (69 किग्रा) पेरिस 2024 के लिए ओलंपिक डिवीज़न नहीं था , इसलिए लवलीना को टोक्यो ओलंपिक के बाद मिडिलवेट डिवीज़न (75 किग्रा) में प्रतिस्पर्धा करनी पड़ी। इस साल हुए पेरिस ओलंपिक में लवलीना की लगातार दूसरा कांस्य पदक जीतने की उम्मीदें क्वार्टर फाइनल मुकाबले में पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की शीर्ष वरीयता प्राप्त ली कियान से हारने के साथ समाप्त हो गयीं।

प्रीतम सिवाच

प्रीतम रानी सिवाच का जन्म 2 अक्टूबर 1974 को हुआ था। वह एक पूर्व फील्ड हॉकी खिलाड़ी हैं, जिन्होंने भारत की महिला राष्ट्रीय फील्ड हॉकी टीम का प्रतिनिधित्व किया। उन्होंने भारतीय महिला हॉकी टीम की कप्तान के रूप में भी काम किया । 2008 में, उन्हें अनुभव का अतिरिक्त खजाना लाने के लिए ओलंपिक क्वालीफायर के लिए टीम में शामिल होने के लिए वापस बुलाया गया था । टीम के ओलंपिक के लिए क्वालीफाई नहीं करने के बाद, सिवाच ने एक साक्षात्कार में कहा, हम उतने बुरे नहीं हैं जितना परिणाम दिखाते हैं। यह केवल चूके हुए अवसरों का मामला था।  उन्होंने आखिरी बार टीम के साथ तब खेला था जब टीम ने 2002 के राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक जीता था ।

--आईएएनएस

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