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अंक 13 का रहस्य

By: Team Aapkisaheli | Posted: 10 Nov, 2017

अंक 13 का रहस्य
अंक 13 में अनजाना भय, चेतावनी छिपी हुई है फिर भी अंक 13 को कुछ शुभ भी कहा जा सकता है। अंक 13 से प्रभावित व्यक्ति निरंतर कठिनाइयों से जूझते हुए, निरंतर संघर्ष करते हुए विजयश्री का वरण करते हैं। मानव जीवन भी एक संघर्ष है। मोक्ष प्राप्त हेतु जातक को विभिन्न योनियों से गुजरना प़डता है अर्थात् निरंतर मृत्यु से संघर्ष करते-करते ही मोक्ष प्राप्त संभव है। राजस्थानी में एक कहावत है तीन-तेरह कर देना अर्थात् परेशान करना या बनाया काम बिग़ाड देना अधिकांश लोग आज भी तीन और तेरह से भयभीत हैं। अटल बिहारी वाजपेयी के जीवन से भी 13 का गहरा संबंध रहा। उनका प्रधानमंत्रित्व काल प्रथम बार 13 दिन ही रहा फिर भी वाजपेयी ने शपथ ग्रहण हेतु, 13 तारीख को चुना तो उनकी सरकार भी 13 महीने चली लेकिन पुन: वाजपेयी ने 13वीं लोकसभा के प्रधानमंत्री के रूप में, 13 दलों के सहयोग से 13 तारीख को ही शपथ ली। लेकिन फिर 13 को ही पराजय भी देखनी प़डी।
विब्सटन चर्चिल का जीवन भी अनिश्चितताओं से भरा रहा। वीर दुर्गादास का जन्म भी 13 अगस्त को हुआ। पिता ने दुर्गादास व उनकी पत्नी को निकाल दिया अर्थात् बचपन में पिता का साथ नहीं मिला और फिर कालांतर में अपने स्वामी की रक्षा हेतु कितना संघर्ष करना प़डा। अपने स्वामी को राजसिंहासन दिला दिया लेकिन स्वामी से इस सेवक का रिश्ता अच्छा नहीं रहा। अंतिम दिनों में उसे स्वामी से अलग स्वैच्छिक रूप से होना प़डा। वहीं 22 तारीख को मृत्यु हुई अर्थात् जन्म व मृत्यु पर 4 का प्रभाव हावी रहा। इनका लक्ष्य राज दिलाना भी पूर्ण हुआ।
यदि किसी चंद्र पंक्ष में 13 दिन (तिथि क्षय के कारण) रह जाएं तो वह पक्ष अशुभ माना जाता है। इसी प्रकार किसी वर्ष में 13 महीनें हो जाएं अर्थात् अधिक मास आए तो अधिक मास को भी शुभ नहीं माना जाता है लेकिन आत्म कल्याण अर्थात् मोक्ष की चाह रखने वालों हेतु, यह पुरूषोत्तम मास शुभ है। महाभारत का 13 दिन तक का युद्ध तो कौरवों के पक्ष में रहा लेकिन फिर पांडवों का पल़डा भारी होने लगा।
जैन धर्म में भी आचार-विचार एवं व्यवहार की शिथिलता बढ़ने लगी तो आचार्य भिक्षु ने तेरह साधु एवं तेरह श्रावकों के साथ तेरापंथ की स्थापना की। प्रारंभ में इन्हे भी विरोधियों का सामना करना प़डा लेकिन वर्तमान में तेरापंथ, जैन धर्म संप्रदाय के रूप में विख्यात है। ईसा मसीह ने भी अपने 13 शिष्यों के साथ जिस दिन भोजन किया, वही उनके जीवन का अंतिम दिन था लेकिन उसके तीन दिन पश्चात् ही वे पुन: जीवित हो उठे अर्थात् 13 सदस्यों के साथ भोजन कर कुछ प्रसिद्धि हेतु जीवन संघर्ष कराया फिर तीन दिन पश्चात् ही उनकी प्रसिद्धि प्रारंभ हुई।
अत: 13 अंक का भय एक अनावश्यक तथ्य है। सत्य तो यह है कि आप 13 के अंक से खेलना शुरू करें और कुछ दृढ़ निश्चय एवं लक्ष्य रखकर, अंतिम क्षण तक संघर्ष करें, आपकी जीत सुनिश्चित है।

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