तीसरी लहर के प्रभाव को कम करने के लिए वैक्सीन, कोविड व्यवहार महत्वपूर्ण

By: Team Aapkisaheli | Posted: 26 Jun, 2021

तीसरी लहर के प्रभाव को कम करने के लिए वैक्सीन, कोविड व्यवहार महत्वपूर्ण
नई दिल्ली। भारत में कोरोनावायरस की दूसरी लहर ने काफी कहर ढाया है। हालांकि अब संक्रमण की रफ्तार कमजोर जरूर पड़ गई है, मगर साथ ही संभावित तीसरी लहर को लेकर भी चिंता बनी हुई है। इस बीच अच्छी खबर यह है कि कुछ चिकित्सा विशेषज्ञों का कहना है कि संभावित तीसरी लहर के, हाल ही में कहर बरपाने वाली दूसरी लहर जितनी गंभीर या खतरनाक होने की संभावना नहीं है। दिल्ली के सरकारी अस्पतालों के वरिष्ठ डॉक्टरों का मानना है कि अगली लहर सितंबर और अक्टूबर के दौरान आने की संभावना है, लेकिन अगर कोविड के उचित व्यवहार का ठीक से पालन नहीं किया गया, तो यह भी संभव है कि यह लहर अगस्त से ही शुरू हो जाए।

भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के सदस्य डॉ. एन. के. अरोड़ा ने आईएएनएस से बात करते हुए कहा, कोविड के उचित व्यवहार के साथ टीकाकरण बाद की लहर के प्रभाव को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। विश्लेषण इंगित करता है कि लगभग सभी कोविड के टीके, चाहे वह भारत में बने हों या विदेशों में, कोविड के खिलाफ अत्यधिक प्रभावी हैं। 100 प्रतिशत नहीं, लेकिन अब यह साबित हो गया है कि टीके नुकसान को कम करेंगे। यह मौतों की संख्या को कम करते हैं, इसका मतलब है कि हमारे पास घातक महामारी को नियंत्रित करने के लिए कुछ तो है। इसलिए टीकाकरण अगली लहर में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला है।

हालांकि, डॉ. अरोड़ा ने कहा कि यह नए वेरिएंट और उनके ट्रांसमिशन और प्रभावशीलता के स्तर पर भी निर्भर करेगा, क्योंकि हर नया वेरिएंट, जो एक के बाद एक उभर कर सामने आ रहे हैं, अलग हैं।

भारत में कोविड-19 महामारी की पहली लहर जनवरी 2020 के अंत में शुरू होकर सितंबर के मध्य में चरम पर पहुंच गई थी। फरवरी 2021 के मध्य से शुरू होने वाली दूसरी लहर की तुलना में पहली लहर अपेक्षाकृत हल्की थी। दूसरी लहर ने भारत में कहर ढाया और यह पूरे देश में अधिक विस्फोटक तरीके से फैली।

डॉ. अरोड़ा ने आगे कहा कि घातक दूसरी लहर के पीछे एक प्रमुख कारक बी.1.1.7 (अल्फा वेरिएंट) और बी.1.617.2 (डेल्टा वेरिएंट) जैसे अधिक संक्रामक रूपों का उभरना है, जिनमें से हाल के महीनों में भूमिका बाद वाले वेरिएंट ने अधिक संक्रामक के तौर पर प्रमुख भूमिका निभाई है।

डॉ. अरोड़ा ने कहा, हमें यह समझने की जरूरत है कि एक के बाद एक नए वेरिएंट सामने आएंगे, लेकिन हमें हर नए वेरिएंट के पीछे दौड़ने के बजाय सुरक्षात्मक समाधान पर ध्यान देने की जरूरत है।

हाल ही में, आईसीएमआर ने इंपीरियल कॉलेज लंदन (यूके) के साथ मिलकर टीकाकरण प्रयासों के तेजी से पैमाने पर एक अध्ययन किया है, जो डॉ. अरोड़ा के अनुसार बीमारी की वर्तमान और भविष्य की लहरों को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

राजीव गांधी सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल (आरजीएसएसएच) के चिकित्सा निदेशक डॉ. बी. एल. शेरवाल ने आईएएनएस से बात करते हुए कहा, यह पता चला है कि मौजूदा डेटा सकुर्लेटिंग स्ट्रेन का समर्थन नहीं करता है, जिससे अधिक गंभीर बीमारी हो रही है, खासकर अधिक मौतों के मामले में यह ज्यादा गंभीर है। दूसरी बात यह है कि हमारे पास बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं, जिन्हें पहले ही संक्रमण हो चुका है। इसलिए इस बात की बहुत अधिक संभावना है कि अगली लहर पिछली लहर की तरह गंभीर न हो।

डॉ. शेरवाल ने आगे सलाह दी कि लोगों को जितना हो सके, संचार के डिजिटल मोड का उपयोग करना चाहिए, जिससे शारीरिक बैठकें कम होंगी।

उन्होंने कहा, कोविड-19 महामारी की लगातार दो लहरों के बाद, अधिकांश लोग संचार के डिजिटल मोड के अभ्यस्त हो गए हैं और उन्हें अपनी सुरक्षा कारणों से इसका उपयोग करना चाहिए। (आईएएनएस)

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