शंघाई : क्लाइमैक्स में उलझे दिबाकर

By: Team Aapkisaheli | Posted: 08 Jun, 2012

शाहरूख का महिलाओं का सम्मान, शुरूआत दीपिका से करेंगे!
शंघाई : क्लाइमैक्स में उलझे दिबाकर
कलाकार: अभय देओल, इमरान हाशमी, कल्कि कोचलीन, प्रसन्नजीत, सुप्रिया पाठक, टीना रॉय, फारूख शेख

निर्माता : प्रिया श्रीधरन , अजय बिजली

लेखक निर्देशक : दिबाकर बनर्जी

गीत: कुमार, नीलेश मिश्रा

संगीत : विशाल-शेखर

-राजेश कुमार भगताणी


बॉलीवुड में युवाओं का आगमन सिनेमा माध्यम में उनकी रूचि और विचारों को प्रस्तुत करने का तरीका ऎसा रहा है जिसने भारतीय सिनेमा के परम्परागत ढांचे को बदलने में अहम् भूमिका निभाई है। आज का युवा निर्माता निर्देशक लेखक अपनी विचार व्यक्त करने की स्वतंत्रता का पूरा फायदा उठाते हुए नए और ताजा घटनाक्रमों को परदे उतार कर फिल्म को वास्तविकता का जामा पहनाता है जो दर्शक को भाता है।
ऎसा ही एक प्रयास इस सप्ताह सिने दर्शकों को खोसला का घोंसला, ओए लकी! लकी ओए! और लव सैक्स और धोखा जैसी ऑफ बीट फिल्में बनाने वाले दिबाकर ने दिया है। गत सप्ताह प्रदर्शित हुई राउडी राठौर देखने के बाद इस सप्ताह जब दर्शक निर्देशक दिबाकर बनर्जी की फिल्म शंघाई देखने पहुंचे तो उन्हें शिद्दत के साथ इस बात की कमी खली की वे अपना दिमाग घर छोडकर क्यों आए हैं। पूछने पर जवाब मिला इमरान हाशमी का नाम देखकर सोचा था कि कोई मर्डर स्टाइल की फिल्म होगी लेकिन यहां जब परदे पर दौडती कहानी को समझने का प्रयास किया तब तक फिल्म खत्म हो चुकी थी। राउडी राठौर देखने से पहले आपने जिस दिमाग को घर छोड दिया था, उसे साथ लेकर जाएं और शंघाई देखें। फिल्म अच्छी है। ऎसी फिल्में कभी-कभी बनती हैं लेकिन जब बनती हैं तो देखकर अच्छा लगता है।
शंघाई दिबाकर मुखर्जी की नई फिल्म है। खोसला का घोंसला, ओए लकी! लकी ओए! और लव सैक्स और धोखा जैसी ऑफ बीट फिल्में बनाने वाले दिबाकर ने इस बार एक ऎसे मुद्दे पर फिल्म बनाई जिसके बारे में सुना तो बहुत है लेकिन इसका परिणाम कितना भंयकर होता है यह कभी जानने की कोशिश नहीं की। फिल्म की कहानी भू माफियाओं के इर्द गिर्द बुनी गई है। भारत में जमीन हथियाने के मामले आए दिन होते हैं। कई बार उनके खिलाफ जो आवाजें उठती हैं, उन्हें भी दबा दिया जाता है। फिल्म "शंघाई" ने एक ऎसे गंभीर विषय को हमारे सामने उठाया है, जो कई सवाल खडे कर जाता है और जिसका जवाब हमारे देश के कर्णधारों के पास भी नहीं है।
फिल्म में बिल्डरों, नेताओं की सांठ-गांठ दिखाई गई है, जिसके सामने आम आदमी अपनी ही जमीन छोडने पर मजबूर हो जाता है। कोई आरटीआई कार्यकर्ता जब इसके खिलाफ आवाज उठाता है, तो उसे भी किसी "दुर्घटना" का शिकार होकर अपनी जान से हाथ धोना पडता है। विकास के नाम पर जमीन हडपने को बेताब अमीर और प्रभावशाली लोगों के सामने लाचार आम आदमी की दुविधा को "शंघाई" में दिखाया गया है। दिबाकर ने शुरूआत तो सटीक की है, लेकिन फिल्म खत्म करने की जल्दबाजी में वह थोडा फिसल गए। इससे फिल्म मसाला और थ्रिलर फिल्मों की कैटगिरी में शामिल हो गई। एक बस्ती को उजाडकर वहां इंटरनेशनल बिजनेस पार्क बनाने की प्लानिंग है। ऎसा होता है तो सैकडों लोगों के घर उजडने का खतरा है। दूसरी ओर सरकारी तंत्र के नेता इस योजना को शंघाई का नाम दे रहे हैं। सोशल ऎक्टिविस्ट डॉक्टर अहमदी (प्रसन्नजीत चटर्जी) को इस योजना में सब कुछ काला ही काला नजर आता है। वह बस्ती उजाडकर बिजनेस पार्क बनाने की योजना के विरोध में खुलकर सामने आता है। शंघाई बनाने का सपना देखने वाली लॉबी को यह हजम नहीं होता। डॉक्टर अहमदी की हत्या हो जाती है।
अहमदी की हत्या के बाद जब सरकार विरोधी आवाजें बुलंद होने लगती हैं तो सरकार इस हत्या की जांच के लिए आइएएस अधिकारी टी. ए. कृष्णन (अभय देओल) की अध्यक्षता में एक जांच कमेटी बनाती है। कृष्णन ईमानदार ऑफिसर है। कृष्णन पर सारी सरकारी मशीनरी जांच रिपोर्ट को प्रभावित करने के लिए दबाव डालती है। इस हत्याकांड की जांच के दौरान कृष्णन की मुलाकात जोगी परमार (इमरान हाशमी) और शालिनी सहाय (कल्कि कोचलीन) से होती है, यह दोनों किरदार भी हत्याकांड की अहम कडी बनकर सामने आते हैं।
अभिनय के लिहाज से आईएएस अधिकारी के रोल में अभय देओल पूरी तरह से फिट हैं। अभय देओल ने पहले भी कई फिल्मों में शानदार अभिनय किया है, लेकिन इमरान हाशमी इस फिल्म में लाजवाब लगे हैं। फिल्म में इमरान हाशमी को देखकर लगता है कि उन्हें जिस अर्थपूर्ण किरदार की तलाश थी, वो आखिरकार मिल गई है। जोगी परमार के रोल को इमरान हाशमी ने जीवंत कर दिखाया है। दो वर्ष पूर्व आई वन्स अपॉन ए टाइम इन मुंबई और द डर्टी पिक्चर के बाद इमरान ने एक बार फिर अपनी ऎक्टिंग से छाप छोडी है। पूरी फिल्म को इमरान ने अपने किरदार के द्वारा इस तरह उभारा है कि दर्शक मजबूर होकर उनके लिए तालियां बजाता है। इमरान दिनों दिन अपनी अभिनय प्रतिभा को निखारते जा रहे हैं। कल्कि कोचलीन ने अपने रोल में मेहनत की है। अरसे बाद हिन्दी फिल्मों में वापस लौटे बंगाली सुपर सितारे प्रसन्नजीत ने डॉक्टर अहमदी के किरदार में सराहनीय काम किया है। दिबाकर बनर्जी ने अपने इस पॉलिटिकल थ्रिलर में कडी मेहनत की है। राजनीतिक पार्टियों की रैलियों से लेकर नेताओं के दांवपेच के बीच आइटम सॉन्ग का तडका और नेताओं की लॉबिंग के दृश्यों को उन्होंने पूरी गहराई के साथ दर्शाया है। दृश्यों को कहानी के अनुसार किस प्रकार पेश किया जाए इसका जीता जागता सबूत उन्होंने इस फिल्म के विवादास्पद गीत भारत माता की जय के फिल्मांकन में दिया है। इस गीत में दिबाकर ने आतिशबाजी को ऎसे ढंग से पेश किया कि सेंसर ने गाने को फिल्म का अहम हिस्सा मानकर क्लियर कर दिया। लेकिन दिबाकर फिल्म के क्लाइमैक्स पर मात खा गए हैं और यही चूक उनकी फिल्म को मसाला और थ्रिलर फिल्मों की श्रेणी में ले आती है। मारधाड के दृश्यों को बेवजह लम्बा खींचा गया है। उन्हें आसानी से काटकर छोटा किया जा सकता था। जिस अंदाज में दिबाकर ने फिल्म को फिल्माया है उसे देखते हुए लगा था कि फिल्म लम्बी होगी लेकिन शायद इस फिल्म के सम्पादक फिल्म को जल्दी खत्म करने में थे। इसलिए क्लाइमैक्स से आधा पौन घंटे पहले ही फिल्म अपनी पकड छोडने लगती है। ऎसा क्योंकर किया गया है यह हमारे समझ में नहीं आया है। शंघाई में विशाल शेखर का संगीत फिल्म के अनुरूप है। कुल मिलाकर शंघाई ऎसा तडका है जो गम्भीरता के साथ फिल्म देखने वालों को अपनी तरफ आकर्षित करेगा। परिवार के साथ बैठकर इसका आनन्द नहीं लिया जा सकता है।
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