राउडी राठौर : हर सफल फिल्म का सीक्वल नहीं बन सकता

By: Team Aapkisaheli | Posted: 16 Jun, 2012

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राउडी राठौर : हर सफल फिल्म का सीक्वल नहीं बन सकता
बॉलीवुड में इन दिनों नई पुरानी सफल फिल्मों के सीक्वल का दौर चल रहा है। हर वो निर्माता अब सीक्वल का निर्माण कर रहा है जिसकी किसी फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर कोई विशेष कारनामा किया है। वैसे भारतीय हिन्दी सिनेमा में बॉक्स ऑफिस रिपोर्ट के आधार पर फिल्मों का आकलन किया जाता है। जबकि कई ऎसी फिल्में भी बनती हैं जो बॉक्स ऑफिस पर तो कोई कमाल नहीं कर पाती हैं लेकिन दर्शकों को अन्दर तक झिंझोड देती हैं। लेकिन उन फिल्मों का सीक्वल बनाने का विचार निर्माता निर्देशकों को नहीं आता है। हालिया प्रदर्शित हुई और बॉक्स ऑफिस पर 115 करोड का व्यवसाय करने में सफल हुई अक्षय कुमार की फिल्म राउडी राठौर के सीक्वल की चर्चाओं का दौर जारी है। इस फिल्म के सह निर्माता यूटीवी इस फिल्म के सीक्वल पर तुरन्त प्रभाव से काम करना चाहता है। उसकी सोच है कि इस वक्त राउडी दर्शकों के ऊपर हावी है ऎसे में अगर जल्द ही इसका सीक्वल घोषित कर दिया जाएगा तो उसे बॉक्स ऑफिस पर इसका फायदा मिलेगा। इस फिल्म के सीक्वल के लिए यूटीवी के सीईओ सिद्धार्थ राय कपूर ने निर्देशक को संकेत भी दे दिए हैं। उन्होंने कह दिया है कि इस फिल्म का सीक्वल इस फिल्म की पटकथा से पहले की पटकथा और बाद की पटकथा पर हो सकता है। कपूर का कहना है कि इसके हम हमारे सह निर्माता संजय लीला भंसाली और निर्देशक प्रभु देवा के साथ बैठकर बातचीत करेंगे। यह सही है कि राउडी राठौर ने बॉक्स ऑफिस पर जबरदस्त व्यवसाय किया है। लेकिन यह फिल्म दर्शकों की उन उम्मीदों पर खरी नहीं उतरती है जिनके लिए सिनेमा को जाना जाता है। इस फिल्म में जिन चालू मसालों का उपयोग किया गया है वह आम जिन्दगी में उन्हीं जगहों पर नजर आता है जहां पर अशिक्षा और गन्दगी का माहौल है। आज भारतीय युवा, विशेषकर आम मध्यमवर्गीय, जिस माहौल में रह रहा है, पल रहा है, बढ रहा है वहां इस तरह की हरकतें पसन्द नहीं की जाती हैं। इनकी वह सिर्फ कल्पना कर सकता है और यही राउडी राठौर की सफलता की सबसे बडी कुंजी है। जब आम भारतीय युवा कल्पना लोक में उडान भरता है वह स्वयं को अशिष्टता की हदों के पार जाकर देखना पसन्द करता है, जिसे वह वास्तविक जिन्दगी में नहीं देख पाता है और जब सिनेमा के माध्यम से उसकी कल्पना उसके सामने आती है, वह उसका दीवाना हो जाता है और उसके पीछे भागता है लेकिन जब वास्तविकता के आंगन पर खडा हो जाता है तो वह उसे हिकारत की दृष्टि से देखने लगता है। ऎसे में यह सोचना कि हर सफल फिल्म का सीक्वन बनना चाहिए, गलत है। राउडी राठौर में ऎसा कोई बिन्दु निर्देशक ने अन्त में नहीं छोडा, जहां से शुरूआत करके उसका सीक्वल बनाया जा सके। भारत में विशुद्ध रूप से किसी भी फिल्म का सीक्वल आज तक नहीं बन पाया है। अब जितनी भी फिल्मों के भाग-दो प्रदर्शित हुए हैं वे सब फ्रेंचाइजी के तौर पर आए हैं। जिनके सफल शीर्षकों को सफलता के साथ दोहराया गया है। जैसे राज-2, मर्डर-2, जन्नत-2, भेजा फ्राइ-2 इत्यादि। यूटीवी और संजय लीला भंसाली को मिलकर इस तरह का ड्रामा रचना चाहिए जिसके लिए संजय लीला भंसाली को जाना जाता है। दर्शक आज भी संजय लीला भंसाली से यही उम्मीद करता है वो फिर से परदे पर देवदास, हम दिल दे चुके सनम और ब्लैक जैसा जादू जगाने में कामयाब होगा। कहते हैं एक असफलता से कभी सफलता का दामन नहीं छोडना चाहिए। यह सही है कि पिछले कुछ वर्षो से संजय लीला भंसाली को असफलता मिल रही है लेकिन इससे यह नहीं समझना चाहिए कि उनकी निर्देशक पकड या विषय गम्भीरता पर सोच बदल गई है। दर्शकों को आज भी उनसे उनके स्तर की फिल्म की उम्मीद है।
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