भारतीय डिफेंस की कलई खुली

By: Team Aapkisaheli | Posted: 05 , 2012

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भारतीय डिफेंस की कलई खुली
ओलम्पिक खेलों में सिर्फ तीन मैचों के बाद भारतीय डिफेंस की कलई पूरी तरह से खुल गई है। जर्मन फार्वड ने जिस तरह मनचाहे अंदाज में गोल किए, देखकर हैरानी हो रही थी कि भारतीय डिफेंडरों को क्या हो गया है। जर्मन स्ट्राइकरों ने एक के बाद एक पास लेकर जिस तरह भारतीय सर्कल में घुसपैठ की, भारतीय डिफेंडर मूक दर्शक ही नजर आए। जर्मन स्ट्राइकरों को चुनौती देने वाला कोई नहीं था। यह देखकर अच्छा नहीं लगा। भारतीय जर्सी पहने खिलाडियों ने एक इकाई के रूप में अच्छा प्रदर्शन नहीं किया जो खेदजनक है। कुछ खिलाडियों ने व्यक्तिगत स्तर पर बेहतरीन प्रदर्शन किया लेकिन टीम का प्रदर्शन अच्छा नहीं था। भारतीय टीम 5-2 से भी अधिक अंतर से हार सकती थी। दो मैचों में शर्मनाक प्रदर्शन के बाद भारतीय हॉकीप्रेमियों को सुधार की उम्मीद थी लेकिन ऎसा हुआ नहीं। तीन गोल करने वाले जर्मन स्ट्राइकर फ्लोरियन फुश और ओलिवर कोर्न ने जिस तरह आसानी से गोल किए, उससे भारतीय डिफेंस बगलें झांकता नजर आया। जर्मनी को स्टार खिल़ाडी çR स्टोफर जेलेर से खास प्रदर्शन की जरूरत ही नहीं प़डी। भारत के नजरिये से देखें तो कप्तान की भूमिका पर सवाल उठते हैं। कप्तान भरत छेत्री की भूमिका क्या है जबकि वह अहम मैचों में गोलकीपर के रूप में भी पहली पसंद नहीं हैं। गोलकीपर को कप्तान बनाना और 16 सदस्यीय टीम में बैकअप के रूप में दूसरा गोलकीपर रखना अजीब है जबकि दुनिया की सभी टीमों में एक ही गोलकीपर है। भारत की कप्तानी ब़डे सम्मान की बात है लेकिन छेत्री को अपनी भूमिका पर आत्ममंथन करना चाहिए। यह अजीब स्थिति है कि पिछले छह या सात टूर्नामेंट में जो टीम का नियमित गोलकीपर भी नहीं है, वह कई सीनियर खिलाç़डयों के रहते कप्तान है। यह हैरानी की बात है कि राष्ट्रीय महासंघ, चयनकर्ता और कोचिंग स्टाफ ने ऎसे हालात क्यों बनने दिए। प्रदर्शन से लगता है कि टीम शीर्ष टीमों के खिलाफ खेलने के लिए शारीरिक या मानसिक तौर पर तैयार नहीं थी। सरकार और राष्ट्रीय महासंघ ने इतना पैसा खर्च किया है लेकिन यह तय है कि टीम शीर्ष टीमों के खिलाफ खेलने को तैयार नहीं है। ओलंपिक के बाद क्या होगा।
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