फिल्म समीक्षा हर दिल अजीज है तेरी मेरी कहानी

By: Team Aapkisaheli | Posted: 23 Jun, 2012

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फिल्म समीक्षा हर दिल अजीज है तेरी मेरी कहानी
निर्माता : इरोज इन्टरनेशनल, कुणाल कोहली लेखक, निर्देशक : कुणाल कोहली संवाद : कुणाल कोहली गीत : प्रसून जोशी संगीत : साजिद वाजिद -राजेश कुमार भगताणी विशाल भारद्वाज की फिल्म कमीने में पहली बार एक साथ काम करने वाले शाहिद कपूर और प्रियंका चोपडा को पुन: परदे पर एक साथ पेश करने का जिम्मा लेते हुए कुणाल कोहली ने अपनी फिल्म का ताना-बाना बुना और इसमें कोई शक नहीं कि उन्होंने हम तुम के बाद पहली बार कोई दिलकश और दिल छूने वाली कहानी को परदे पर सशक्तता के साथ उतारा है। फिल्म का हर फ्रेम देखने लायक है अखरता है तो सिर्फ कमजोर गीत संगीत का पक्ष, अगर इस पर वे सजगता के साथ ध्यान देते तो निश्चित रूप से तेरी मेरी कहानी अविस्मरणीय प्रेम कहानी होती। इसे उसी तरह से याद किया जाता जिस तरह से आज बॉबी, एक दूजे के लिए, लव स्टोरी, कयामत से कयामत तक को याद किया जाता है। फिर भी हम कुणाल कोहली को एक बेहतरीन फिल्म के लिए साधुवाद देते हैं। 1910 से 2012 के तीन अलग-अलग दौर की इस प्रेम कहानी का पूर्व जन्म कोई लेना देना नहीं है। हालांकि फिल्म के प्रोमोज से यही आभास मिल रहा था, लेकिन यह कोई पूर्व जन्म की कहानी न होकर अलग-अलग दौर में प्रेम अभिव्यक्ति के अंदाज-ए-बयां का सफर है। फिल्म का सार और संदेश यही है कि समय चाहे जितना बदल जाए, प्यार अपने रूप-स्वरूप में एक सा ही रहता है। समय के हिसाब से हर काल में उसकी अभिव्यक्ति और लक्षणों में बदलाव आ जाता है, लेकिन प्रेमी युगलों की सोच, धडकनें, मुश्किलें, भावनाएं, और उम्मीदें कभी नहीं बदल पातीं। कुणाल कोहली की तीन दौर की इस प्रेम कहानी में दो दौर में प्रेम त्रिकोण है और तीसरी में सामान्य प्रेम कहानी है। इस कहानी में आठ किरदार मुख्य रूप से सामने आते हैं। कुणाल कोहली ने तीनों दौर की कहानियों को पेश करने का नया शिल्प चुना है। दोराहे तक लाकर वे तीनों प्रेम कहानियों को छोडते हैं और फिर से कहानी को आगे बढाते हुए एक राह चुनते हैं, जो प्रेमी-प्रेमिका का मिलन करवाती है। इन कहानियों की सबसे बडी खूबी यह है कि इसमें कोई खलनायक नहीं है। उनकी शंकाएं, उलझनें और अपेक्षाएं ही कहानी को आगे बढाती हैं। फिल्म निर्देशक के रूप में कुणाल कोहली का काम बेहद सराहनीय है। निर्देशन के साथ-साथ उन्होंने इस फिल्म की पटकथा और संवादों पर भी भरपूर मेहनत की है, जो दर्शकों को महसूस होती है। कुणाल कोहली ने तीनों दौर के प्रेमी-प्रेमिका के रूप में प्रियंका चोपडा और शाहिद कपूर के हिसाब से उनकी भाषा, वेशभूषा और परिवेश में फर्क दिखाया है। इस मामले में उनकी टीम की जितनी तारीफ की जाए उतनी कम है। उन्होंने शाहिद कपूर के पात्र में विश्वसनीयता दिखाने के लिए जिस अंदाज में उर्दू का इस्तेमाल किया है, वह काबिले तारीफ है। खास कर भाषा और परिवेश की भिन्नता उल्लेखनीय है। संवाद लेखक के तौर पर जहां कुणाल कोहली दर्शकों को प्रभावित करते हैं वहीं प्रोडक्शन डिजाइनर मुनीश सप्पल का काम भी सराहनीय है। मुनीश सप्पल ने 1910, 1960 और 2012 के काल को वास्तु और वस्तुओं से सजाया है। वास्तु निर्माण में उन्होंने बारीकी का ध्यान रखा है। पृष्ठभूमि में दिख रहा परिवेश फिल्म को जीवंत बनाता है। उनकी योग्यता पर किसी प्रकार उंगली नहीं उठायी जा सकती है। संवादों की भाषा में कुणाल कोहली ने काल के भेद अनुसार उर्दू, हिंदी और हिंग्लिश का उपयोग किया है। अभिनय में प्रियंका चोपडा और शाहिद कपूर ने लाजवाब अभिनय किया है। परदे पर इन दोनों कैमिस्ट्री गजब की है। उन्होंने 1910 में आराधना-जावेद, 1960 में रूखसार-गोविंद और 2010 में राधा-कृष्ण के किरदार निभाए हैं। दोनों ने काल विशेष के अनुसार न सिर्फ अपना लहजा बदला है, बल्कि उस दौर के अनुरूप अपनी शारीरिक लोच को परदे पर उतारा है। बहुत कम ऎसे अभिनेता होते हैं जिन्हें एक ही फिल्म में तीन अलग अलग किरदारों को निभाने का मौका मिलता है। शाहिद और प्रियंका ने अपने उम्दा अभिनय से फिल्म में तीनों किरदारों को बहुत ही खूबसूरत तरीके से पेश किया है। शाहिद और प्रियंका की कैमिस्ट्री इस फिल्म का सबसे मजबूत पहलू है। कमीने के बाद एक बार फिर से उनके बीच का ये कनेक्शन बॉक्स ऑफिस पर अपनी किस्मत आजमाएगा। शाहिद और प्रियंका के अलावा फिल्म में नेहा शर्मा और प्राची देसाई का अभिनय भी काफी उम्दा है। इस तीन दौर की कहानी में 1910 और 1960 के दौर दर्शकों को ज्यादा प्रभावित करते हैं। 2012 के दौर में वे थोडे असफल नजर आते हैं। उनका यह दौर थोडा बिखरा-बिखरा नजर आता है। इसके साथ ही कुछ और ऎसी बातें हैं जो दर्शक को अखरती हैं जैसे फिल्म के कुछ पहलू शायद असल जिंदगी से कहीं अलग नजर आएं आपको जैसे 1910 के दशक में शाहिद का कैसोनोवा का रूप, 2012 में किरदारों का पिछले जन्म की बातों को याद करना, ये सभी बातें फिल्म को वास्तविकता से कोसों दूर कर देती हैं। इसके अतिरिक्त फिल्म का गीत संगीत दर्शकों को प्रभावित करने में पूरी तरह से असफल रहा है। वैसे तो प्रसून जोशी बहुत अच्छे गीत लिखते हैं लेकिन इस फिल्म में वे कुणाल का वैसा साथ नहीं दे पाए हैं जैसा उन्होंने उनकी फिल्म हम तुम में दिया था। ऎसा इसलिए हुआ लगता है कि हम तुम प्रसून जोशी की पहली फिल्म थी और हर अभिभावक को अपना पहला बच्चा बहुत प्यारा होता है, वह उसकी परवरिश सबसे हटकर करता है। साजिद वाजिद अब तक केवल सलमान खान की फिल्मों में ही बेहतर संगीत दे पाए हैं। यहां भी वे निराश करते हैं। केवल एक गीत जब से मेरे दिल को उफ जरूर दर्शकों को शम्मी कपूर और मुमताज की फिल्म ब्रहमचारी के आजकल तेरे मेरे प्यार के चर्चे हर जबान पर सबको मालूम है और सबको खबर हो गई, की याद दिलाता है। इस गीत को कुणाल कोहली ने उसी अंदाज में फिल्माया है बदला है तो सिर्फ शाहिद कपूर और प्रियंका के पहनावे का रंग।
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