फिल्म समीक्षा : प्रेमातीत है जिस्म-2, इसलिए जरूर देखें

By: Team Aapkisaheli | Posted: 04 , 2012

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फिल्म समीक्षा : प्रेमातीत है जिस्म-2, इसलिए जरूर देखें
फिल्म का पहला संवाद है आई एम अ पोर्न स्टार..यह संवाद सनी लियोन की इमेज, दर्शकों की उत्कंठा और फिल्म को लेकर बनी जिज्ञासा को समाप्त कर देती है। पहले ही लंबे दृश्य में निर्देशक अपनी मंशा स्पष्ट कर देती है। पिछले दो दिनों से अखबारी और इलैक्ट्रोनिक मीडिया में पूजा भट्ट निर्देशित फिल्म जिस्म-2 के चर्चे हैं। तथाकथित फिल्म समीक्षकों ने इसे स्तरहीन, उबाऊ, वाहियात फिल्म करार दिया है। वैसे यह हरेक समीक्षक का अपना-अपना नजरिया है, हमारा अपना नजरिया है। ऊपरी तौर पर देखने पर तो जिस्म-2 दर्शकों को बेकार लगती है, अगर इसे गौर से और गहराई से देखा जाए तो यह पूजा भट्ट द्वारा निर्देशित फिल्मों में सर्वश्रेष्ठ फिल्म है। उन्होंने फिल्म के शीर्षक और कथानक को पहले दृश्य में ही स्पष्ट कर दिया है। बडी बेबाकी से उन्होंने उसे दर्शकों के सामने रखकर दर्शकों की उन जिज्ञासाओं और उत्सुकता को शांत कर दिया है जो यह सोचकर फिल्म देखने आए थे कि उन्हें इस फिल्म में कुछ ऎसे दृश्य देखने को मिलेंगे जिसकी उन्होंने सिर्फ कल्पना की है, लेकिन सेंसर बोर्ड की मेहरबानी से उनकी सभी आशाएं धूमिल हो जाती है। पूजा भट्ट स्वयं एक अभिनेत्री रही हैं और उनके पिता जाने माने फिल्मकार हैं। कभी दर्शकों के लिए काश, अर्थ और सारांश बनाने वाले महेश भट्ट स्वयं को आर्थिक नुकसान से बचाने के लिए जब फिल्मों में सैक्स और अश्लीलता परोसने लगे उनकी तिजोरी भरती गई, लेकिन पूजा भट्ट विशेष फिल्म्स के बैनर तले फिल्में नहीं बनातीं। उनकी फिल्मों का एक अलग किस्म का सौंदर्य रहता है, जिसे वह स्वयं रचती हैं। जिस्म 2 का सौंदर्य मनमोहक है। सेट, लोकेशन, कलाकारों के परिधान, दृश्य संरचना, चरित्रों के संबंध में सौंदर्य की छटाएं दिखती हैं। जिस्म 2 खूबसूरत फिल्म है। देह दर्शन के बावजूद यह अश्लील नहीं है। इस फिल्म के अंतरंग दृश्यों में सान्निध्य है। हिंदी फिल्मों के अंतरंग दृश्य मुख्य रूप से अभिनेत्रियों की झिझक और असहजता के कारण सुंदर नहीं बन पाते। सनी लियोन देह के प्रति सहज हैं। पूजा भट्ट की स्पष्टवादिता और खुलेपन से उन दर्शकों को दिक्कत हो सकती है जो स्वयं को शुद्ध मानते हैं। पूजा भट्ट ने परदे पर देह की जो छवियां पेश की हैं वह तारीफ-ए-काबिल है। उनके इस काम में सनी लियोन ने पूरा सहयोग दिया है। जिस अंदाज में सनी लियोन ने इज्ना की भूमिका निभाई है, बॉलीवुड की कोई भी तथाकथित सक्रिय और बोल्ड अभिनेत्रियां इस भूमिका में फीकी और कृत्रिम नजर आती, जबकि सनी लियोन वास्तविक लगती हैं। उनका अपनी देह को पेश करने का एक अंदाज है, उसमें एक कशिश है, खूबसूरती और आकर्षण है। महेश भट्ट का कथानक मूल रूप से बदले पर आधारित है। एक नारी का एक पुरूष से बदला, जिसके लिए वह अपने जिस्म को इस्तेमाल करती है। बॉलीवुड में जिस तरह की फिल्में बन रही हैं उसे देखते हुए यह कहा जा सकता है कि जिस्म-2 समय से पूर्व की फिल्म की है। फिल्म में अखरती है तो सिर्फ कलाकारों की चयन प्रक्रिया, अगर पूजा पुरूष्ा किरदारों के लिए रणदीप हुड्डा और अरूणोदय सिंह के स्थान पर किन्हीं दो नए सितारों को लेती तो शायद वे कथानक और परिकल्पना के साथ ज्यादा न्याय करते। हालांकि रणदीप अरूणोदय से कहीं ज्यादा प्रभावी रहे हैं। अरूणोदय सुदर्शन हैं, लेकिन अभिनय में उन्हें अभी अभ्यास करना होगा। फिल्म के नाटकीय दृश्यों में वे प्रभावहीन लगते हैं। वहीं रणदीप हुड्डा ने कबीर को पर्दे पर जीवन्त किया है। वे कबीर के द्वंद्व को बखूबी व्यक्त करते हैं। वायलिन बजाते हुए वे किरदार के दर्द को बयान करते हैं। इस फिल्म में सनी लियोन सरप्राइज करती हैं। उम्मीद नहीं रहती है कि वह अभिनय करती नजर आएंगी, लेकिन इज्ना के प्रेम, दंश, दुविधा और अकुलाहट को सनी ने अच्छी तरह से व्यक्त किया है। निर्देशक ने उनसे धैर्य से काम लिया है। इज्ना के किरदार को लेखक शगुफ्ता रफीक का पूरा सहयोग मिला है। गुरू के किरदार के साथ आरिफ जकारिया ने न्याय किया है। जिस्म-2 की सबसे बडी खूबी उसका छायांकन है। एक अरसे बाद किसी फिल्म का छायांकन इतना नयनाभिरामी है। पहले दृश्य से लेकर अन्तिम दृश्य तक यह फिल्म नयनों को सुखद अहसास कराती है। कैमरामैन निगम बोम्जान ने कैमरे के संचालन में जो लय दर्शायी है उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता, सिर्फ उसे आंखों से देखा जा सकता है। उन्होंने पूजा भट्ट के सुंदर प्रोडक्शन डिजायन को पर्दे पर साकार किया है। फिल्म का गीत-संगीत फिल्म के अनुकूल है। फिल्म की दूसरी सबसे बडी खूबी इस फिल्म के संवाद हैं। शगुफ्ता रफीक ने किरदारों को उनके मिजाज के मुताबिक संवाद दिए हैं। लंबे समय के बाद ऎसे संवाद सुनाई पडे हैं। हालांकि उनके यह लम्बे संवाद दर्शकों को अखरते हैं। फिल्म का गीत संगीत फिल्म के कथानक और प्रस्तुतीकरण के अनुरूप है। हालांकि इन गीतों को वो लोकप्रियता हासिल नहीं हुई है जो भट्ट कैम्प की अन्य फिल्मों को मिला करती है। संगीत धीरे-धीरे दर्शकों के जेहन में चढता है, यह कुछ ऎसा ही असर करता है जैसा कि शैम्पन को पीने के बाद होता है।
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