बिट्टू बॉस : फिल्म समीक्षा

By: Team Aapkisaheli | Posted: 14 Apr, 2012

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बिट्टू बॉस : फिल्म समीक्षा
बैनर : वाइड फ्रेम पिक्चर्स, वायकॉम 18 मोशन पिक्चर्स
निर्माता : कुमार मंगत पाठक
निर्देशक : सुपवित्र बाबुल
संगीत : राघव साचर
कलाकार : पुलकित सम्राट, अमिता पाठक


तमाम प्रकार के प्रोमोशन के बावजूद बॉक्स ऑफिस पर बिट्टू बॉस की निराशाजनक शुरूआत हुई। इस फिल्म को देखने के बाद एक सवाल मन उठा कि दर्शक को इस फिल्म में क्या ज्यादा पसन्द आएगा। सिर्फ फिल्म का नायक पुलकित सम्राट ही ऎसा नजर आता है जिसे देखने को मन करता है। अपने किरदार में उन्होंने जो ऊर्जा प्रदान की है वह उनके भविष्य के प्रति आशाएँ जगाती है।

अपने प्रोमोज द्वारा दर्शकों को चेहता बनाने वाली फिल्म बिट्टू बॉस की पटकथा पर अगर ध्यान दिया जाता तो यह एक अच्छी और बेहतरीन फिल्म बन सकती थ्री। अपने फिल्मांकन के अंदाज से यश चोपडा की बैंड बाजा बारात की याद दिलाने वाली इस फिल्म की सबसे बडी कमजोरी इसकी पटकथा है। पटकथा लेखक ने अगर थोडी सी समझादारी दिखायी होती तो दर्शकों को जो संदेश वे देना चाहते हैं उसमें सफलता मिलती। कहानी को जिस तरह से आगे बढाया गया है वो विश्वसनीय नहीं है और किसी तरह फिल्म को खत्म किया गया है।

फिल्म की कहानी पंजाब के छोटे शहर में रहने वाले बिट्टू (पुलकित सम्राट) के इर्द गिर्द घूमती है, जो अपने शहर का स्टार है। शादियों में वीडियो शूटिंग करता है। लोकप्रिय इतना है कि जब तक वह न पहुंचे रस्म अदायगी रोक दी जाती है। एक शादी में मृणालिनी (अमिता पाठक) नामक लडकी पर बिट्टू मर मिटता है। धीरे-धीरे वह मृणालिनी के दिल में अपनी जगह बना लेता है। मृणालिनी उसे इस बात का अहसास कराती है कि जिन्दगी सिर्फ मस्तमौला होकर नहीं गुजारी जा सकती। इसे आरामदायक बनाने के लिए पैसे की जरूरत होती है। मृणालिनी के द्वारा पैसे को महЮव दिए जाने पर वह शॉर्टकट का रास्ता अपनाता है और अपने एडिटर वर्मा (राजेन्द्र सेठी) के कहने पर शिमला जाकर ब्ल्यू फिल्में शूट करने का काम करता है। बिट्टू दिल का बहुत अच्छा है और उससे यह काम नहीं होता। उल्टे वह कैमरे से नजर रख एक लडकी की रक्षा करता है। पति-पत्नी के बीच प्यार पैदा करता है। किस तरह से मृणालिनी का वह दिल जीतता है, यह फिल्म के क्लाइमैक्स में दिखाया गया है। फिल्म के प्लॉट में काफी सम्भावनाएँ थी लेकिन लेखक ने अपनी लेखनी में कमी कर दी जिससे यह फिल्म एक साधारण फिल्म बनकर रह गई।

सुपवित्र बाबुल की यह पहली फिल्म है। इससे पहले उन्होंने छोटे परदे के लिए क्रिएटिव निर्देशक के तौर पर काम किया है। उनमें बेहतरीन निर्देशक की सम्भावनाएँ नजर आती हैं। लेकिन उन्हें अभी बहुत कुछ सीखना होगा। कहानी को परदे पर कहने की कला को और निखारना होगा। उन्होंने अपने कलाकारों से अच्छा काम लिया है और कुछ इमोशनल सीन अच्छे फिल्माए हैं। कथाकार के तौर पर सुपवित्र बाबुल असफल रहे हैं। मध्यान्तर से पूर्व का हिस्सा उन्होंने जिस उत्साह और मजे से फिल्माया है अगर उतनी ही मेहनत मध्यान्तर के बाद के हिस्से पर की जाती तो निश्चित रूप से दर्शक इस फिल्म के दीवाने होते। फिल्म का सबसे बेहतरीन पक्ष पुलकित सम्राट का अभिनय है। उन्होंने बिंदास और मस्त मौला बिट्टू के किरदार को पूरी शिद्दत के साथ जिया है। अपने पहनावे, चाल ढाल और संवाद बोलने की अदा से उन्होंने छोटे कस्बे के युवक को पेश करने में पूरी तरह से सफलता प्राप्त की है।

जिस अंदाज में उन्होंने अभिनय किया है वह आने वाले समय में बॉलीवुड में पिछले दो साल से सक्रिय रणवीर सिंह के लिए खतरा बन सकते हैं। अमिता पाठक को फिल्म में इसलिए मौका मिल गया क्योंकि वे निर्माता की बेटी हैं। इसके बावजूद फिल्म के दूसरे हिस्से में वे लम्बे समय तक गायब रहीं। फिल्म का छायांकन अच्छा है। कैमरामैन ने पंजाबी परिवारों के रीति रिवाजों को खूबी से कैमरे में कैद किया है। शादी ब्याह के मौके पर इन परिवारों में होने वाली हंसी ठिठोली को भी रोचक अंदाज में पेश किया है। गीत संगीत की दृष्टि से भी फिल्म कुछ कमजोर है। इस तरह की पटकथाओं में संगीत की बडी अहमियत होती है। संगीतकार राघव साचर अगर कडी मेहनत करते तो निश्चित रूप से कुछ अच्छी धुनें दे सकते थे जिनकी बदौलत भी दर्शक सिनेमा हॉल तक खींच सकते थे। कुल मिलाकर बिट्टू बॉस एक औसत दर्जे की फिल्म है।
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