लोहिया की कर्म भूमि पर डिंपल ने रच दिया इतिहास

By: Team Aapkisaheli | Posted: 09 Jun, 2012

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लोहिया की कर्म भूमि पर डिंपल ने रच दिया इतिहास
कन्नौज। विरोधी दलों से मिले वाकओवर और दोनों निर्दलीय प्रत्याशियों के नाम वापस लेने के बाद लोहिया की कर्मस्थली रहे कन्नौज लोकसभा से निर्विरोध जीत हासिल कर सपा की डिंपल यादव ने इतिहास रचने में सफलता हासिल की। डिंपल यह उपलब्धि हासिल करने वाली प्रदेश की दूसरी सांसद हैं। इससे पहले कांग्रेस के पीडी टंडन वर्ष 1952 में हुए उपचुनाव में प्रदेश की इलाहाबाद लोकसभा सीट पर निर्विरोध जीत दर्ज कर यह उपलब्धि हासिल कर चुके हैं। हालांकि मानवेन्द्र शाह भी 1962 में टिहरी से निर्विरोध चुने गये थे पर अब टिहरी क्षेत्र नये प्रदेश उत्तराखंड में है। डिंपल देश में चौथी ऎसी महिला सांसद हैं, जिन्हें यह उपलब्धि हासिल हुयी है। दो दिन तक चले सियासी ड्रामे के बाद जैसे ही संयुक्त समाजवादी दल के प्रत्याशी दशरथ संखवार और निर्दलीय संजीव कटियार ने अपने पर्चे वापस लिये डिंपल की निर्विरोध जीत का रास्ता पूरी तरह साफ हो गया। 14वीं लोकसभा के लिये डिंपल यादव के निर्विरोध चुने जाने की आधिकारिक घोषणा भले ही शनिवार को तीन बजे के बाद होगी, लेकिन सच्चाई यह है कि विरोधी दलों द्वारा मैदान छोडने के बाद उनके नामांकन कराते ही यह तय हो गया था कि डिंपल एक नया इतिहास रचने जा रहीं हैं। यहां एक खास बात और है, जो डिंपल यादव की इस जीत को और खास बना देती है, वह यह कि फिरोजाबाद में विपक्षी दलों ने घेराबंदी कर उन्हें चौदहवीं लोकसभा में जाने से रोका था, लेकिन कन्नौज की जीत ने उन्हें 14वीं लोकसभा में ही पहुंचाया, वह भी निर्विरोध जीत के साथ। स्वयं मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने डिंपल के नामांकन के दिन हुयी सभा में इस बात को लेकर प्रसन्नता जाहिर की कि डिंपल 14वीं लोकसभा की ही सदस्य बनने में सफल होने जा रही हैं। यादव ने डिंपल की ऎतिहासिक जीत का श्रेय नामांकन के दौरान भी और जीत की घोषणा के बाद भी सीधे तौर पर कन्नौज की जनता के प्यार को दे दिया। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के इस्तीफे से रिक्त हुयी कन्नौज लोकसभा सीट पूर्व में भी समाजवाद और इसका झंडा उठाने वालों को हाथों हाथ लेती रही है। देश में समाजवाद के प्रणोता और समाजवादी पार्टी के आदर्श पुरूष डॉ.राममनोहर लोहिया भी वर्ष 1963 के लोकसभा उपचुनाव में इस सीट से जीत कर संसद जा चुके हैं, जिसके बाद से ही इस ऎतिहासिक इत्र नगरी को लोहिया की कर्मस्थली होने का गौरव हासिल हुआ। स्वयं अखिलेश यादव भी सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव के इस्तीफे के बाद हुए उपचुनाव में मैदान में आये कन्नौज ने उन्हें सिर आंखों पर लेकर संसद पहुंचाया। अब यादव के मुख्यमंत्री बनने के बाद इस लोकसभा क्षेत्र ने उनकी पत्नी डिंपल को जिस तरह का रिस्पांस दिया है, उसने यह स्पष्ट कर दिया है कि इत्रनगरी ने उन्हें अखिलेश के उत्तराधिकारी के तौर पर खुले दिल से स्वीकार लिया है। यही नहीं यह भी कन्नौज के लोगों की अखिलेश और सपा से जुडी भावनाएं ही हैं, जिन्होंने सभी विरोधी दलों को कई कदम पीछे हटने और नाममात्र के लिये भी अपना प्रत्याशी मैदान में न उतारने को विवश कर दिया। इस ऎतिहासिक जीत के साथ डिंपल देश की चौथी महिला सांसद और प्रदेश की दूसरी ऎसी सांसद बन गयीं हैं, जिन्होंने निर्विरोध जीत हासिल कर लोकसभा पहुचंने का गौरव हासिल किया। यहां एक खास बात और, वह यह कि भले ही भाजपा और बसपा सरीखे दलों ने कन्नौज की जनता की भावनाओं को भांपने के बाद यह सोच कर डिंपल को वाकओवर दिया हो कि चुनाव में किरकिरी कराने से बेहतर होगा प्रत्याशी मैदान में न उतारना, लेकिन राजनीति में शुचिता और सिद्धांतों के लिये जाने जाने वाले विभिन्न दलों के कई वरिष्ठ नेता इसे अच्छी परंपरा की शुरूआत मानते हैं। इनका कहना है कि अगर हार निश्चित नजर आ रही हो तो चुनाव मैदान में आने का कोई मतलब नहीं।
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