दरगाह विवाद गहराया, नो एंट्री का बॉलीवुड ने किया विरोध

By: Team Aapkisaheli | Posted: 23 July, 2012

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दरगाह विवाद गहराया, नो एंट्री का बॉलीवुड ने किया विरोध
अजमेर। राजस्थान के अजमेर में सूफी संत हजरत ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह में फिल्म कलाकारों और धारावाहिक निर्माताओं द्वारा उनकी फिल्मों एवं धारावाहिकों की सफलता के लिए सजदा एवं मन्नत मांगने को लेकर दरगाह दीवान सैय्यद जैनुअल आबेदीन के बयान से एक नया विवाद पैदा हो गया है।

दरगाह दीवान सैय्यद आबेदीन के इस बयान पर खादिमों और उनकी संस्था अंजुमन के पदाधिकारियों ने तीखा विरोध व्यक्त करते हुए इसे सस्ती लोकप्रियता पाने का हथकंडा बताया है। अंजुमन सैयदजादगान के पूर्व सचिव और खादिम सरवर चिश्ती ने दरगाह दीवान के बयान पर आपत्ति जताते हुए कहा कि इस दरगाह में इस तरह का कोई भेदभाव नहीं है। यहां हर धर्म के लोग आते हैं और मन्नतों की झोलियां फैलाते हैं। उन्होंने कहा कि जियारत कराने का हक केवल खादिमों का है, इसलिए दरगाह दीवान को इस मामले में बोलने का कोई हक नहीं है। उन्होंने कहा कि दरगाह दीवान अपने आप को दरगाह का मुखिया प्रदर्शित करना चाहते हैं जबकि दरगाह ख्वाजा अधिनियम 1955 में स्पष्ट है कि खादिम दरगाह दीवान एवं दरगाह कमेटी के अपने-अपने कार्यक्षेत्र निर्धारित हैं। अधिनियम के अनुसार दरगाह दीवान मुलाजिम हैं और उन्हें दो सौ रूपए प्रतिमाह मानदेय मिलता है।

अंजुमन सैयद जादगान के सचिव वाहिद हुसैन अंगारा ने कहा कि ख्वाजा साहब के दरबार में हर रोज लाखों जायरीन जियारत के लिए आते हैं। मुराद और दुआ व्यक्ति के निजी मामले हैं। कौन क्या मांग रहा है यह कैसे निश्चित किया जा सकता है। अंजुमन शेखजादगान के सह सचिव एस नसीम अहमद चिश्ती ने कहा कि ख्वाजा साहब का दरबार सभी 36 कौमों के लिए खुला है और हर व्यक्ति अपनी अकीदत के लिए यहां आता है। उसकी मन्नत और दुआ पर आपत्ति करना सही नहीं है। दरगाह दीवान को इस तरह के मुद्दे उठाने के बजाय जायरीन की सुविधा की ओर ध्यान देना चाहिए। गौरतलब है कि दरगाह दीवान जैनुअल आबेदीन ने रविवार एक बयान जारी कर फिल्मी कलाकारों, निर्माता और निर्देशकों द्वारा फिल्मों और धारावाहिकों की सफलता के लिए मन्नत मांगने को इस्लामी शरियत और सूफीवाद के मूल सिद्धान्तों के खिलाफ बताते हुए ऎसे कृत्यों को नाकाबिले बर्दाश्त बताया है। उन्होंने ऎसे संवेदनशील मुद्दे पर इस्लामिक विद्वानों और शरीअत के जानकारों की खामोशी चिंताजनक बताते हुए देश के प्रमुख उलेमाओं को इस मसले पर शरीअत के मुताबिक खुलकर अपनी राय का इंतजार करने की अपील की जिससे मुसलमानों के इतने बडे धर्म स्थल पर हो रहे गैर शरई कार्यो पर अंकुश लग सके।
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