बैंक गवर्नर सुब्बाराव के फटके से लगा उद्योग को झटका

By: Team Aapkisaheli | Posted: 19 Jun, 2012

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बैंक गवर्नर सुब्बाराव के फटके से लगा उद्योग को झटका
मुंबई। दो दिन पहले ही रिजर्व बैंक गर्वनर सुब्ब्ााराव ने वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी की मांग को अनसुना कर आर्थिक विकास की दर में कटौती करते हुए बाजार और सरकार को हिला दिया। केंद्रीय बैंक ने रीपो दर को 8 फीसदी और नकद आरक्षी अनुपात सीआरआर को 4.75 फीसदी पर बरकरार रखा है। मध्य तिमाही मौद्रिक समीक्षा में एक कदम आगे बढते हुए रिजर्व बैंक आर्थिक विकास को पटरी पर लाने की जिम्मेदारी सरकार के ऊपर डाल दी है। कें द्रीय बैंक ने कहा, मौजूदा विकास-महंगाई हालात का हमारा विश्लेषण कहता है आर्थिक विकास में सुस्ती के लिए कई कारण जिम्मेदार हैं, खासतौर पर निवेश का सुस्त माहौल और ब्याज दरों में इसकी भूमिका बेहद छोटी है। नीतिगत दरों में कटौती नहीं होने से दरों में कम से कम 25 आधार अंक कटौती की उम्मीद कर रहा बाजार बेहद निराश हुआ।

पिछले हफ्ते 1.4 फीसदी चढने वाला बंबई स्टॉक एक्सचेंज का सेंसेक्स केंद्रीय बैक की घोषणा के बाद 244 अंक गिरकर 16,705.83 पर बंद हुआ। नेशनल स्टॉक एक्सचेंज का निफ्टी भी 75 अंक टूटकर 5,064.25 पर बंद हुआ। हालांकि इस दौरान ब्रॉन्ड प्रतिफल मे इजाफा हुआ। बाजार में गिरावट की सबसे ज्यादा मार बैंकिंग और रियल एस्टेट कंपनियों के शेयरों पर पडी। केंद्रीय बैंक के इस कदम से उद्योग जगत काफी निराश हुआ। गोदरेज समूह के चेयरमैन गोदरेज ने कहा वित्त मंत्री ने भी कहा है कि उन्हें नीतिगत दरों में कटौती की उम्मीद थी। ऎसा लगता है कि केंद्रीय बैंक की प्राथमिकताएं कुछ और है। अनजाने में ही सही लेकिन इस मौद्रिक नीति समीक्षा ने नॉर्थ ब्लॉक में प्रणव मुखर्जी के उत्तराधिकारी के लिए एजेंडा तय कर दिया है। एजेंडा आर्थिक विकास को रफ्तार देने के लिए आपूर्ति को बेहतर बनाना व सब्सिडी के बोझ पर नियंत्रण रखना,जो सार्वजनिक निवेश की राह में रोडा बना हुआ है और यह आर्थिक विकास के लिए महत्वपूर्ण है।

केंद्रीय बैंक ने कहा, आर्थिक विकास को गति देने की कोशिश के बजाय अभी नीतिगत दरों में कटौती करने से मुद्रास्फीतिक दबाव बढ सकता है। बैंक ने कहा कि अप्रैल में की गई नीतिगत दरों में कटौती यह सोचकर की थी कि मुद्रास्फीति प्रबंधन के लिए जरूरी वित्तीय सुदृढीकरण प्रक्रिया को गति मिलेगी और आपूर्ति हालात भी सुधरेंगे। हालांकि मुखर्जी ने इस पर अपनी निराशा को छिपाते हुए कहा कि महंगाई के ऊंचे स्तर को देखते हुए रिजर्व बैंक ने यह फैसला लिया होगा। मुखर्जी ने कहा, मध्य तिमाही समीक्षा में रिजर्व बैंक के गर्वनर के लिए वित्त मंत्री से सलाह-मशविरा करना जरूरी नहीं है। रिजर्व बैंक ने कहा है कि वह उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर ध्यान देगा, जो अब दहाई्र के आंकडों में पहुंच गया है। रिजर्व बैक ने कहा कि राजकोषीय सुदृढीकारण, खुदरा मुद्रास्फीति और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चो तेल के भाव में आ रही गिरावट का फायदा देसी बाजार में कीमतों तक नहीं पहुंचने के कारण ही मुद्रास्फीति बढ रही है।

इस दौरान सरकार द्वारा जारी आंकडों के अनुसार खुदरा मुद्रास्फीति मई में बढकर 10.36 फीसदी हो गई जबकि अप्रैल में यह 10.26 फीसदी थी। केंद्रीय बैंक ने कहा कि रूपये में आ रही गिरावट के कारण कच्चो तेल के भाव घटने का फायदा नहीं मिल पा रहा है। रिजर्व बैंक ने निर्यात ऋण पुनर्वित सीमा को 15 फीसदी से बढाकर 50 फीसदी कर दिया। बैंक के इस कदम से बैंकिंग प्रणाली मे अतिरिक्त 30,000 करोड रूपये की नकदी आएगी। हालांकि बैंकरों का कहना है कि इस कदम से नकदी हालात पर कोई खास असर नहीं पडेगा। सिटी गु्रप की अर्थशास्त्री रोहिणी मलकानी ने कहा, इस साल नीतिगत दरों में 50-75 अंक कटौती की हमारी उम्मीद काफी हद तक ईधन मूल्य और निवेश माहौल पर सरकार फैसले पर टिकी है।
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