NSG सदस्यता पर भारतीय मीडिया पर भड़का चीन, US नहीं है महाशक्ती नसीहत

By: Team Aapkisaheli | Posted: 28 Jun, 2016

NSG सदस्यता पर भारतीय मीडिया पर भड़का चीन, US नहीं है महाशक्ती नसीहत
पेइचिंग। NSG में भारत की सदस्यता में रोड़ा बनने पर देश के भीतर हुई तीखी प्रतिक्रिया और प्रधानमंत्री के इस बयान के बाद कि अब हम चीन जैसे देश से भी आंखें मिलाकर बात करते हैं। परन्तु  चीन के सरकारी मीडिया ने परोक्ष रूप से भारत को चेतावनी दी है। चीन के आधिकारिक मीडिया ने कहा है कि भारत को यह समझ लेना चाहिए कि अमेरिका का स्पोर्ट प्राप्त कर लेने से पूरी दुनिया का समर्थन हासिल करना नहीं होता है।

हालांकि चीनी सरकारी मीडिया ग्लोबल टाइम्स ने इस मामले में भारत सरकार के सभ्य व्यवहार से संतुष्टि जतायी है लेकिन इंडियन मीडिया और भारत के नागरिकों को आड़े हाथों लिया है। परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) ने पिछले हफ्ते दक्षिण कोरिया की राजधानी सोल में समग्र बैठक की थी। इसी हफ्ते गुरुवार शाम को एनएसजी के सभी सदस्यों ने स्पेशल कॉन्फ्रेंस में हिस्सा लिया था। इस कॉफ्रेंस में परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) पर हस्ताक्षर नहीं करने वाले देशों को एनएसजी में शामिल करने पर बात हुई थी। चीन का कहना है कि कम से कम 10 देशों ने नॉन एनपीटी देशों को एनएसजी की सदस्यता देने का विरोध किया था।


चीन के सरकारी मीडिया ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है, भारत ने एनपीटी पर हस्ताक्षर नहीं किया है लेकिन वह एनएसजी जॉइन करने को लेकर सबसे ज्यादा सक्रिय था। सोल में मीटिंग शुरू होने से पहले भारतीय मीडिया में इसे लेकर काफी गहमागहमी रही। कुछ मीडिया घरानों ने दावा किया कि 48 सदस्यों वाले एनएसजी देशों में से 47 ने भारत की सदस्यता का समर्थन किया है जबकि केवल चीन विरोध कर रहा है।

अखबार ने लिखा है, ‘1975 में एनएसजी के गठन के बाद से ही स्पष्ट है कि सभी सदस्यों का एनपीटी पर हस्ताक्षर होना अनिवार्य है। यह संगठन का प्राथमिक सिद्धांत है। अभी भारत पहला देश है जो बिना एनपीटी पर हस्ताक्षर किए एनएसजी सदस्य बनने की कोशिश कर रहा है। यह चीन और अन्य एनएसजी सदस्यों के लिए सिद्धांत की सुरक्षा में भारत की सदस्यता का विरोध करना नैतिक रूप से प्रासंगिक है।’

चीन के आधिकारिक मीडिया ने लिखा है, हालांकि इस मामले में भारतीय लोगों की प्रतिक्रिया काफी तीखी रही। भारत के कुछ मीडिया घरानों ने चीन को गाली देना शुरू कर दिया। कुछ भारतीयों ने चीन निर्मित वस्तुओं के बहिष्कार की बात कही। इसके साथ ही ब्रिक्स समूह से भारत के हटने की मांग भी की गई। भारत को एनएसजी में बिना एनपीटी पर हस्ताक्षर किए शामिल होने की शक्ति अमेरिकी समर्थन से मिली।

दरअसल वॉशिंगटन और भारत के रिश्तों में चीन को रोकना निहित है। अमेरिका का भारत के साथ बढ़ती करीबी का मुख्य उद्देश्य को चीन का सामना करना है। ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है, ‘अमेरिकी ही पूरी दुनिया नहीं है। अमेरिकी समर्थन का मतलब यह नहीं हुआ कि भारत ने पूरी दुनिया का समर्थन हासिल कर लिया। यह बुनियादी तथ्य है, भले इसकी भारत ने पूरी तरह से उपेक्षा की। भारतीयों का चीन पर आरोप का कोई मतलब नहीं है।

 चीनी कदम अंतरराष्ट्रीय मापदंडों पर आधारित है लेकिन भारत की प्रतिक्रिया उसके राष्ट्रीय हित से जुड़ी है। हाल के वर्षों में साफ दिखा है कि पश्चिम की दुनिया ने भारत को खूब शाबाशी दी है और चीन का विरोध किया है। भारत इनका दुलारा बन गया है। हालांकि दक्षिण एशियाई देशों की जीडीपी चीन का महज 20 फीसदी है। पश्चिमी देशों की आंखों में चीन चुभता है। भारत की अंतरराष्ट्रीय चापलूसी इनके लिए सुखद है।

ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है, ‘मिसाइल टेक्नॉलजी कंट्रोल रेजीम (एमटीपीसी) में भारत को नया सदस्य बनाया गया है। चीन को इसमें जगह नहीं दी गई है। इस खबर को लेकर चीनी नागरिकों में लहर नहीं फैली। अंतरराष्ट्रीय रिश्तों में धक्कों से निपटने में चीनी नागरिक ज्यादा परिपक्व हैं। कई भारतीय आत्म केन्द्रित और आत्मतुष्ट हैं।

दिलचस्प यह है कि भारत की सरकार ने इस मामले में सभ्य तरीके से बातचीत की। जाहिर है नई दिल्ली के लिए झल्लाना कोई विकल्प नहीं हो सकता। भारत के राष्ट्रवादियों को व्यहार सिखाना चाहिए। ये देश को बड़ी शक्ति बनाना चाहते हैं परन्तु इन्हें महाशक्तियों के खेल की समझ नहीं है।

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