दुनिया छोड़ गई ‘युवा मां’ रीमा, हिन्दी सिनेमा में दौड़ी शोक की लहर

By: Team Aapkisaheli | Posted: 18 May, 2017

दुनिया छोड़ गई ‘युवा मां’ रीमा, हिन्दी सिनेमा में दौड़ी शोक की लहर
गुरुवार 18 मई को एक दुखद समाचार मिला अभिनेत्री रीमा लागू का निधन। 58 साल की ‘युवा मां’ का दिल का दौरा पडने से निधन हो गया। समाचार सुनने के बाद यादों के जेहन में एक निश्छल मुस्कराता चेहरा दौडने लगा। बोलती मुस्कराती आंखें और मोहक मुस्कान के साथ चेहरे पर नजर आने वाली मासूमियत कुछ ऐसा था रीमा लागू का आकर्षण जो बरबस अपनी ओर खींचता था। हिन्दी फिल्मों में निरूपाराय के बाद मां की भूमिका में सर्वाधिक चर्चित और प्रशंसित रही थी रीमा लागू। उनके निधन से हिन्दी सिनेमा में ‘मां’ की भूमिका का जो स्थान रिक्त हुआ है उसकी भरपाई होना बेहद मुश्किल नजर आता है। संभावना यह भी बनती है कि अब फिल्मों में ‘मां’ की भूमिका को लिखा जाना कम किया जा सकता है। रीमा लागू को चार बार—मैंने प्यार किया (1989), आशिकी (1991), हम आपके हैं कौन! (1995) और वास्तव (2000) के लिए बेस्ट स्पोर्टिंग एक्ट्रेस फिल्मफेयर पुरस्कार के लिए नामित किया गया था।

नब्बे के दौर के उन तमाम नायकों की मां की भूमिका में नजर आईं रीमा जो आज हिन्दी फिल्मों के सुपर सितारों में शामिल होते हैं। संजय दत्त, सलमान खान, गोविन्दा, काजोल, माधुरी दीक्षित, जूही चावला जैसे सितारों की वो परदे पर नजर आने वाली स्थायी मां थीं। मंसूर अली खान के निर्देशन में बनी ‘कयामत से कयामत तक’ वो पहली फिल्म थी जिसने उन्हें मां के रूप में एक पहचान दिलवाई। इसके बाद रीमा लागू, 90 के दशक की फेवरिट मां बन गई। उनकी मासूम सी आवाज, भोलापन लिए चेहरा उन्हें इस ढांचे में बेहतरीन तरीके से फिट कर गया। अरुणा राजे की ‘रिहाई’ में विवादित चरित्र निभाने के बाद राजश्री प्रोडक्शन ने उन्हें ‘मैंने प्यार किया’ में सलमान खान की मां के रूप में परदे पर उतारा।

‘मैंने प्यार किया’ में उनके द्वारा निभाया गया मिडिल ऐज मां का किरदार दर्शकों को बहुत पसंद आया। कयामत से कयामत और मैंने प्यार किया ने हिन्दी सिनेमा में ‘मां’ की भूमिका को बदला। अब ‘मां’ आकर्षक और युवा नजर आने लगी। अपनी उम्र के अनुरूप उसे परदे पर उतारा जाने लगा। महेश भट्ट ने अपनी फिल्म ‘आशिकी’ में रीमा लागू को एकल मां के रूप में परदे पर दिखाया। रीमा लागू की भूमिका ने नई सोच, नई दिशा महिला समाज को दी। पति द्वारा छोडी गई महिला आत्महत्या करके अपनी जिन्दगी खत्म करने के स्थान पर अपनी इच्छा शक्ति के चलते अपनी औलाद का पालन पोषण करती। हालात को देखते हुए पुत्र विद्रोही होता है लेकिन वह समाज के लिए घातक नहीं बनता।

रीमा लागू ने सर्वाधिक फिल्में सलमान खान के साथ कीं। सलमान खान की फिल्मों में उनका हल्का फुल्का दिलकश किरदार रहा लेकिन शाहरुख खान के साथ उन्होंने निखिल अडवाणी के निर्देशन में बनी कल हो न हो में जो भूमिका निभाई वह अविस्मरणीय रही। धीरे-धीरे अपनी मौत की तरफ जाते पुत्र को देखना, इसके बाद भी उसे हिम्मत देना और फिर दुनिया के सामने मुस्कराते हुए नजर आना,ख्यह किरदार उनकी अभिनय की पराकाष्ठा थी।

हंसती मुस्कराती मां के इतर उन्होंने महेश मांजरेकर की फिल्म ‘वास्तव’ में संजय दत्त की मां की भूमिका की। यह ‘मदर इंडिया’ की नर्गिस का परिष्कृत रूप था। मेहबूब खान ने जहां मां के हाथों को फौलादी बनाया था वहीं महेश मांजरेकर ने उसे और मजबूती देते हुए उसे इतना मजबूत बनाया कि वह स्वयं अपने बेटे को इच्छा मृत्यु दे देती है। ‘वास्तव’ में संजय दत्त के बराबर रीमा लागू को तवज्जो मिली थी। उनकी यह भूमिका उनके द्वारा की गई 90 से ज्यादा फिल्मों में सबसे ‘यादगार’ भूमिका रही है।

गोविन्दा की मां के रूप में नजर आई रीमा लागू ने ‘जिस देश में गंगा रहता है’ में पहली बार अपने बालों को सफेद कराया था। यह पहली ऐसी फिल्म थी जिसमें उनके चेहरे पर झुर्रियों को दर्शाया गया था। वरना उन्होंने अपनी हर फिल्म में स्वयं को युवा ही दर्शाया था। रीमा लागू ने टेलीविजन पर बहुत काम किया। उन्होंने लगभग 9 धारावाहिकों में विभिन्न भूमिकायें निभाई। उन्हें टीवी पर तूतू-मैंमैं में निभाई सास की भूमिका के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पहला टेलीविजन का पुरस्कार मिला था। वर्ष 1994 से 2000 के मध्य डीडी नेशनल और स्टार प्लस पर इस धारावाहिक का प्रसारण हुआ था। इन दिनों रीमा लागू महेश भट्ट के धारावाहिक ‘नामकरण’ में दादी की भूमिका में नजर आ रही थीं।


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