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पाइए प्रसव की वेदना से छुटकारा

By: Team Aapkisaheli | Posted: 21 Apr, 2012

पाइए प्रसव की वेदना से छुटकारा
मां बनना हर महिला का सपना होता है पर जाने-अनजाने वह प्रसव के दर्द को लेकर चिंतित रहती है जबकि आज विज्ञान इतनी तरक्की कर चुका है कि प्रसव से कतई नहीं घबराना चाहिए प्रसव की प्रथम अवस्था हल्के दर्द से प्रारंभ होती है। इस अवस्था में गर्भाशय धीरे-धीरे बढता है। करीब 10 सेंटीमीटर मुंह खुलता है। तभी शिशु को बाहर निकलने का मार्ग मिलता है। प्रथम प्रसव में करीब 12 से 16 घंटे और द्वितीय प्रसव में 8 से 12 घंटे लगते हैं। इस दौरान होन वाला दर्द गर्भाशय की मांसपेशियों में होन वाले संकुचन के कारण होता है। जब गर्भाशय का मुंह पूरा खुल जाता है तब शिशु नीचे सरकन प्रारंभ करता है। यह प्रसव की द्वितीय अवस्था है। ये दोनों अवस्थाएं अत्यंत कष्टकारी हैं। कई ग्रामीण, कम पढी-लिखी, मेहनत-मजदूरी करने वाली मजबूत महिलाएं यह दर्द आसानी से सहन कर लेती हैं। परंतु शहरी, नाजुक чस्त्रयां कई बार यह दर्द सहन नहंी कर पातीं और जिद करके आपरेशन द्वारा प्रसव के लिए चिकित्सक को मजबूर करने लग जाती हैं। दर्द से छुटकारा दर्दनाशक दवाइयां व पेथिडिन, डायजापाम, केटमिन, फोर्टविन आदि इंजेक्शन दर्द को कम करते हैं। इससे थोडी नींद भी आती है पर इनसे कभी-कभी शिशु को पहुचने वाली आक्सीजन की मात्रा कम होने की आशंका रहती है। अतएव प्रसव काल में चिकित्सक और नसिं№ग स्टाफ आदि को बहुत सावधान रहना चाहिए। दर्दनाशक सूंघने की दवाई (इन्हेलेशन एनेस्थीसिया) में आक्सीजन और नाइट्रस आक्साइड (हंसाने वाली गैस या लाफिंग गैस) गैस का मिश्रण प्रसूता को सुंघाया जाता है। इसे एंटोनाक्स अपरेटस करते हैं। इसका मास्क प्रसूता स्वयं ही नाक पर रख कर जब तक दर्द हो, सूंघ सकती है। इससे यह लाभ होता है कि शिशु पर कुप्रभाव नहंी प्रडता और प्रसव की सही प्रोगे्रस होती रहती है। बहुत अधिक मात्रा में दवा सूंघने से अधिक नींद की अवस्था हो सकती है और शिशु घबरा सकता है।
ये हैं चमत्कारिक दवाएं
सर्वाधिक महत्वपूर्ण है एपीड्यूरल एनेस्थीसिया।
यह 2 प्रकार का होता है: काडल एपीड्यूरल और लंबर एपीड्युरल। इस विधि से प्रसव में बिलकुल भी दर्द का अनुभव नहीं होता और यह बहुत ही असरकारक है। पीठ में एक पतले से इंजेक्शन की सहायता से सुन्न करने वाली दवा की कुछ मात्रा समय-समय पर अंदर पहुंचाई जाती है। इस के असर से प्रसव के समय होने वाला दर्द बिलकुल बंद हो जाता है जबकि गर्भाशय की मांसपेशियों का संकुचन जाती रहता है अर्थात् प्रसव की सामान्य प्रोग्रेस होती रहती है। एपीड्युरल कैथेटर की सहायता से लिग्नोकेन या ब्यूपिवाकेन नामक दवा शरीर में पहुंचाई जाती है। जब दर्द शुरू हो जाते हैं और बच्चोदानी का मुंह करीब 3 सेटीमीटर खुल जाता है तब यह इंजेक्शन आरंभ किया जाता है। इस दौरान मां और बच्चो की पूरी देखभाल और मानिटरिंग की जाती है। मां की नब्ज, ब्लडप्रेशर आदि की मानिटरिंग की जाती है ताकि यह पता चलता रहे कि वह गर्भ में घबरा तो नहीं रहा। माता को दर्द नहीं हो रहा होता तो वह कुछ बताने मे असमर्थ होती है। लेबर रूम के स्टाफ को ही ध्यान रखना पडता है। कभी-कभी इस दवा के प्रयोग से प्रसव की द्वितीय अवस्था में ज्यादा देर लग सकती है क्योंकि दर्द का कुछ पता न चलने के कारण माता द्वारा जोर नहीं लगाया जाता है तब वैक्यूम या फोरसेप की सहायता से प्रसव कराया जाता है। यह तकनीक एक वरदान है जो माताओं को असहनीय प्रसव प्रसव की वेदना से छुटकारा दिला कर मां बनने के अनुभव को खुशनुमा बना देती है।

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